Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ] मूलपयडिविहत्तीए फोसणाणुगमो णव चोदसभागा वा देसूणा । सणक्कुमारादि जाव सहस्सारा त्ति विहत्ति केव० खेत्तं पोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो, अह चोदसभागा वा देसूणा । आणद-पाणदआरण-अच्चुद० विहत्ति० केव० खेत्तं पोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो, छ चोदस भागा वा देसूणा।
विशेषार्थ-उक्त तीनों प्रकारके देवोंने वर्तमान कालमें संभव सभी पदोंकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवां भाग प्रमाण क्षेत्र स्पर्श किया है। अतीत कालमें स्वस्थानस्वस्थान और उपपाद पदकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवां भाग प्रमाण क्षेत्र स्पर्श किया है। विहारवस्वस्थान, वेदना, कषाय और वैक्रियिक पदोंकी अपेक्षा अपने आप देशोन साढ़े तीन वटे चौदह राजु और पर प्रयोगसे देशोन आठ वटे चौदह राजुप्रमाण क्षेत्र स्पर्श किया हैं। भवनत्रिक देव स्वयं विहार करते हुए ऊपर सौधर्म-ऐशानकल्प तक और नीचे तीसरे नरक तक जाते हैं। तथा यदि कोई ऊपरका देव लेजाये तो ऊपर अच्युत कल्पतक जासकते हैं। इसप्रकार स्वप्रयोगसे देशोन साढे तीन वटे चोदह राजु और परप्रयोगसे देशोन आठ वटे चौदह राजु क्षेत्र हो जाता है। समुद्धातकी अपेक्षा देशोन नौ वटे चौदह राजुप्रमाण क्षेत्र स्पर्श किया है। यहां नौ राजुसे ऊपर सात राजु और नीचे दो राजु क्षेत्र लेना चाहिये।
सानत्कुमार स्वर्गसे लेकर सहस्रार स्वर्ग तकके मोहनीय विभक्तिवाले देवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग और देशोन आठ वटे चौदह राजु प्रमाण क्षेत्र स्पर्श किया है।
विशेषार्थ-सानत्कुमारसे लेकर सहस्रार स्वर्ग तकके देवोंने वर्तमान कालमें लोकका असंख्यातवां भाग प्रमाण क्षेत्र स्पर्श किया है। अतीतकाल में स्वस्थानस्वस्थानकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवां भाग प्रमाण क्षेत्र स्पर्श किया है। विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय, वैक्रियिक और मारणान्तिक पदोंकी अपेक्षा देशोन आठ वटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्र स्पर्श किया है, क्योंकि, इनका नीचे तीसरे नरक तक और ऊपर अच्युत कल्प तक आना जाना देखा जाता है। उपपाद पदकी अपेक्षा सानत्कुमार-माहेन्द्र कल्पवासी देवोंने देशोन तीन वटे चौदह राजु, ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर कल्पवासी देवोंने देशोन साढ़े तीन वटे चौदह राजु, लान्तव कापिष्ठ-कल्पवासी देवोंने देशोन चार वटे चौदह राजु, शुक्र-महाशुक्र कल्पवासी देवोंने देशोन साढ़े चार वटे चौदह राजु और शतार-सहस्रार कल्पवासी देवोंने देशोन पांच बटे चौदह राजुप्रमाण क्षेत्र स्पर्श किया है।
आनत-प्राणत और आरण-अच्युत कल्पवासी मोहनीय विभक्तिवाले देवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग और देशोन छ वटे चौदह राजु प्रमाण क्षेत्र स्पर्श किया है।
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