Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ]
मूलपयडिविहत्तीए फोसणाणुगमो
६८४. सव्वपंचिंदियतिरिक्ख० विहत्ति० केव० खेत्तं पोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो, सव्वलोगो वा । एवं मणुसअपज्जत्त-सव्वविगलिंदिय-पंचिंदियअपज्जत्ततसअपज्जत्त-बादरपुढवि०पज्ज०-बादरआउ०पज्जत्त-बादरतेउ०पज्ज०-बादरवणप्फदि पत्तेय०पज्ज०-बादरणिगोदपडिहिदपज्जत्ताणं वत्तव्वं । बादरवाउ०पज्जत्त० विहत्ति० लोगस्स संखेज्जदि भागो, सव्व-लोगो वा। मणुस-मणुसपज्जत्त-मणुसिणीणं विहत्ति. पंचिंदियतिरिक्खभंगो । अविहत्ति० ओघभंगो। .
६ ८४. सर्व पंचेन्द्रिय तिथंचोंमें मोहनीय विभक्तिवाले जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भागप्रमाण क्षेत्र और सर्वलोक स्पर्श किया है। इसी प्रकार मनुष्य लब्ध्यपर्याप्त, सब विकलेन्द्रिय, पञ्चेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त, त्रस लब्ध्यपर्याप्त, बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त, बादर अप्कायिक पर्याप्त, बादर अग्निकायिक पर्याप्त, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्त और बादर निगोद प्रतिष्ठित प्रत्येक शरीर पर्याप्त जीवोंके स्पर्शनका कथन करना चाहिये।
विशेषार्थ-पंचेन्द्रियतिर्यंच, पर्याप्त पंचेन्द्रिय तिर्यंच, योनिमती पंचेन्द्रिय तियंच और लब्ध्यपर्याप्त पंचेन्द्रियतियचोंने वर्तमानमें अपने अपने संभव पदोंके द्वारा लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है। इन्हीं चारों प्रकारके तिर्यंचोंने अतीत कालमें मारणांतिक समुद्धात और उपपाद पदकी अपेक्षा सर्वलोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है, क्योंकि, इन दोनों पदोंकी अपेक्षा इनका त्रसनालीके बाहर भी सर्वत्र सद्भाव देखा जाता है । तथा अतीत कालमें शेष पदोंके द्वारा उक्त चारों प्रकारके तिर्यंचोंने लोकका असंख्यातवां भागप्रमाण क्षेत्र स्पर्श किया है जिसका 'सव्वलोगो वा' में आये हुए 'वा' पदसे समुच्चय कर लेना चाहिये । लब्ध्यपर्याप्त मनुष्योंसे लेकर बादर निगोद प्रतिष्ठित प्रत्येकशरीर तकके जीवोंके स्पर्शनमें इन उपर्युक्त तिर्यंचोंके स्पर्शनसे कोई विशेषता नहीं है, इसलिये तिर्यचोंके स्पर्शनके समान ऊपर कहे गये शेष मार्गणास्थानोंमें भी स्पर्शन समझना चाहिये ।
बादर वायुकायिक पर्याप्तकोंमें मोहनीय विभक्तिवाले जीवोंने वर्तमानमें लोकका संख्यातवां भाग प्रमाण क्षेत्र और सर्वलोक स्पर्श किया है।
विशेषार्थ-बादर वायुकायिक पर्याप्त जीवोंका वर्तमान क्षेत्र का विचार क्षेत्रप्ररूपणामें किया है अतः वहांसे जानना। तथा अतीत कालमें उक्त जीवोंने मारणान्तिकसमुद्धात और उपपाद पदकी अपेक्षा सर्वलोक स्पर्श किया है, क्योंकि, अतीतकालकी अपेक्षा इनका सर्वलोकमें गमन और लोकके किसी भी भागसे आकर अन्य जीवोंका इनमें उत्पन्न होना संभव है। तथा अतीत कालमें शेष पदोंके द्वारा इन जीवोंने लोकके संख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका ही स्पर्श किया है जिसका 'सव्वलोगो वा' में आये हुए 'वा' पदसे समुच्चय कर लेना चाहिये।
सामान्य मनुष्य, पर्याप्त मनुष्य और मनुष्यिणियों में मोहनीय विभक्तिवाले जीवोंका स्पर्शन
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