Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ]
मूलपयडिविहत्तीए परिमाणो सव्वजी० केव० ? अणंता भागा। एवं अकसाय-सम्मादिष्टि-खइय० वत्तव्वं । सेसाणं मग्गणाणं णत्थि भागाभागो एगपदत्तादो।
एवं भागाभागो समत्तो। ६७०. परिमाणाणुगमेण दुविहो णिद्देसो ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण मोहपयडीए विहत्तिया अविहत्तिया च केवडिया ? अणंता । एवमणाहारीणं वत्तव्वं ।
७१. आदेसेण णिरयगईए णेरइएमु मोह विहत्ति० केवडि० ? असंखेज्जा । एवं हैं ? अनन्त बहुभागप्रमाण हैं। इसीप्रकार अकषायिक, सम्यग्दृष्टि और क्षायिक सम्यग्दृष्टियोंके कथन करना चाहिये। ये ऊपर जितनी भी मार्गणाएँ कह आये हैं उनसे अतिरिक्त शेष मार्गणाओंमें भागाभाग नहीं होता है, क्योंकि, उनमें एक स्थान पाया जाता है।
विशेषार्थ-अपगतवेदियोंमें नौवें गुणस्थानके अवेदभागसे लेकर सभी गुणस्थानवर्ती और गुणस्थानातीत जीवोंका ग्रहण कर लिया है। अतः उनमें मोहनीय विभक्तिवाले अनन्तवें भागप्रमाण और मोहनीय अविभक्तिवाले अनन्त बहुभागप्रमाण जीव कहे हैं। यही व्यवस्था अकषायिक, सम्यग्दृष्टि और क्षायिक सम्यग्दृष्टियोंके सम्बन्धमें भी जानना चाहिये । विशेष बात यह है कि कषायरहित जीव ग्यारहवें गुणस्थानसे और सम्यग्दृष्टि तथा क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव चौथे गुणस्थानसे होते हैं। अतः इनका भागाभाग कहते समय उस उस गुणस्थानसे लेकर भागाभाग करना चाहिये । प्रारंभसे लेकर यहां जिन मार्गणास्थानोंका भागाभाग कहा गया है उन्हें छोड़कर शेष सभी मार्गणास्थानों में एक स्थान ही पाया जाता है, अतः वहां भागाभाग नहीं बन सकता है ।
इसप्रकार भागाभाग अनुयोगद्वार समाप्त हुआ। ६७०. परिमाणानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकार है, ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश। उनमें ओघकी अपेक्षा मोहनीय विभक्तिवाले जीव और मोहनीय अविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। इसीप्रकार अनाहारक जीवोंके भी कथन करना चाहिये।
विशेषार्थ-बारहवें गुणस्थानके पहले जितने भी संसारी जीव हैं वे सब मोहनीय कर्मसे युक्त हैं। और बारहवें गुणस्थानसे लेकर सभी जीव मोहनीय कर्मसे रहित हैं। इन दोनों राशियोंका प्रमाण अनन्त है, अत: ऊपर मोहनीय विभक्तिवाले जीव और मोहनीय अविभक्तिवाले जीव अनन्त कहे गये हैं। अनाहारकोंमें विग्रहगतिको प्राप्त हुए जीव मोहनीय कर्मसे युक्त होते हैं और प्रतर तथा लोकपूरण समुद्धातगत सयोग केवली, अयोगकेवली तथा सिद्ध जीव मोहनीयसे रहित होते हैं। ये दोनों ही अनाहारक राशियां अनन्त हैं, इसलिये ऊपर मोहनीय कर्मसे युक्त और मोहनीय कर्मसे रहित अनाहारक जीवोंका कथन ओघप्ररूपणाके समान कहा है।
७१. आदेशसे नरकगतिमें नारकियोंमें मोहनीय विभक्तिवाले जीव कितने हैं ?असं
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