Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पयडिविहत्ती २ छ चोद्दस भागा वा देसूणा । छह वटे चौदह राजु प्रमाण क्षेत्र स्पर्श किया है।
विशेषार्थ-सामान्य नारकियोंका वर्तमानकालीन स्पर्शन कहते समय पहले नरकके नारकियोंका प्रमाण प्रधान है, क्योंकि, यहां छह नरकोंके नारकियोंसे असंख्यातगुणे नारकी पाये जाते हैं। यद्यपि सातवें नरकके नारकियोंकी अवगाहना पहले नरकके नारकियोंकी अवगाहनासे बहुत बड़ी है फिर भी उसकी यहां विवक्षा नहीं की गई है, क्योंकि, क्षेत्र लाते समय सातवें नरकके नारकियोंकी संख्याको उनकी अवगाहनासे गुणित करने पर जो क्षेत्र उत्पन्न होता है उसकी अपेक्षा पहले नरकके नारकियोंकी संख्याको उनकी अवगाहनासे गुणित करने पर अधिक क्षेत्र होता है। नारकियोंके स्वस्थानस्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदनासमुद्धात, कषायसमुद्भात और वैक्रियिकसमुद्धातकी अपेक्षा स्पर्शनका कथन करने पर इन स्थानोंको प्राप्त नारकियोंकी जितनी राशियां हों उन्हें प्रमाण घनांगुलके संख्यातवें भागमात्र अवगाहनासे गुणित कर देने पर विवक्षित पदकी अपेक्षा अपने अपने क्षेत्रका प्रमाण आ जाता है, जिसे लोकसे भाजित करने पर लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण स्पर्शन होता है। इतना विशेष हैं कि वेदना और कषायसमुद्धातकी अपेक्षा क्षेत्र लाते समय मूल अवगाहनाको नौगुणी और वैक्रियिकसमुद्घातकी अपेक्षा क्षेत्र लाते समय मूल अवगाहनाको संख्यातगुणी कर लेना चाहिये। तथा इन स्थानोको प्राप्त जीवोंकी संख्या भी मूल राशिके संख्यातवें भाग प्रमाण होती है। अर्थात् जहां जितनी राशि हो उसके संख्यातवें भाग प्रमाण जीव विहार, वेदनासमुद्धात, कषायसमुद्धात और वैक्रियिकसमुद्धात करते हैं अधिक नहीं। मारणान्तिक समुद्धातकी अपेक्षा क्षेत्र लाते समय भी पहले नरकके नारकियोंकी संख्याकी अपेक्षा ही उसे लाना चाहिये, क्योंकि, यहां मारणान्तिक समुद्धात करनेवाले जीव शेष छहों नरकोंमें मारणान्तिक समुद्धात करनेवाले जीवोंकी अपेक्षा अधिक हैं। पर उनके विग्रहकी अपेक्षा क्षेत्रकी लम्बाई राजुके असंख्यातवें भाग मात्र ही पाई जाती है। मारणान्तिक समुद्धात करनेवाले जीवोंकी राशि ऋजुगति और विग्रहगतिकी अपेक्षा दो प्रकारकी होती है। उनमेंसे यहां विग्रहकी अपेक्षा मारणान्तिक समुद्धात करनेवाली राशि ही विवक्षित है, क्योंकि, इसके क्षेत्रकी लम्बाई ऋजुगतिकी अपेक्षा मारणान्तिक समुद्धात करनेवाले जीवके क्षेत्रकी लम्बाईकी अपेक्षा बहुत अधिक पाई जाती है। एक समयमें जितने जीव विग्रहगतिसे अन्य पर्यायमें जाते हैं उनके असंख्यातवें बहुभागप्रमाण जीव मारणान्तिक समुद्धात करते हैं। इसलिये इस राशिको आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाण उपक्रमणकालसे गुणित कर देने पर मारणान्तिक समुद्धात करने वाली जीवराशिका प्रमाण आ जाता है। पुनः इसे राजुके असंख्यातवें भागप्रमाण लम्बे और अपनी अवगाहनासे नौगुणे प्रतररूप क्षेत्रसे गुणित कर देने पर मारणान्तिक समुद्धातकी अपेक्षा स्पर्शनका प्रमाण आ
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