Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ]
मूलपयडिविहत्तीए खेत्ताणुगमो त्ति वत्तव्वं । बादरवाउ० पज्ज० विहत्ति केव० १ लोग० संखेज्जदिभागे। वट्टमाणकाले मारणंतिय-उववादपदेहि वि णत्थि सव्वलोगो, लोगस्स संखेज्जदिभागे चेव मारणंतियं मेल्लमाण उप्पज्जमाणजीवाणं चेव पहाणभावुवलंभादो। पंचमण०-पंचवचि०मोह० विहत्ति० अविहत्ति० केव० खेत्ते ? लोगस्स असंखे० भागे। एवमाभिणि०सुद०-ओहि०-मणप०-चक्खु०-ओहि०-सण्णित्ति वत्तव्यं । ओरालिय० विहत्ति० केव० खेत्ते०१ सव्वलोगे। अविहत्ति० मणजोगिभंगो। एवमोरालियमिस्स० अचक्खु० आहारएति वत्तव्यं । कम्मइय० विहत्ति० केव० खेत्ते ? सव्वलो। अविहत्ति० केव० खेत्ते ? असंखेज्जेसु वा भागेषु सव्वलोगे वा । एवं खेत्तं समत्तं । संख्यातवें भाग क्षेत्रमें रहते हैं। इनका मारणान्तिक समुद्धात और उपपाद पदोंकी अपेक्षा भी वर्तमानकालमें सर्व लोकक्षेत्र नहीं है, क्योंकि इनमें लोकके संख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्रमें ही मारणान्तिक समुद्धात और उपपादवाले जीवोंकी ही प्रधानता देखी जाती है।
विशेषार्थ-बादर वायुकायिक पर्याप्त जीव वर्तमान कालमें स्वस्थानस्वस्थान, वेदना,. कषाय, मारणान्तिक और उपपादकी अपेक्षा लोकके संख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रमें ही रहते हैं, क्योंकि पांच राजु लम्बे और एक राजु प्रतररूप क्षेत्रमें ही इनका आवास पाया जाता है, जो कि लोकके संख्यातवें भाग प्रमाण ही होता है। यद्यपि वायुकायिक जीव उक्त क्षेत्रके बाहर भी मारणान्तिक समुद्धात करते हैं और उक्त क्षेत्रसे बाहरके अन्य जीव भी इनमें उत्पन्न होते हैं पर उनका प्रमाण स्वल्प है। अतः इतने मात्रसे इनका क्षेत्र लोकका संख्यात बहुभाग या सर्वलोक नहीं बन सकता है। तथा वैक्रियिक समुद्धातकी अपेक्षा बादर वायुकायिक पर्याप्त जीव लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रमें रहते हैं।
पांचों मनोयोगी और पांचों वचनयोगियों में मोहनीय विभक्तिवाले और मोहनीय अविभक्तिवाले जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्रमें रहते हैं। इसीप्रकार मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मनःपर्ययज्ञानी, चक्षुदर्शनी, अबधिदर्शनी और संज्ञीजीवोंके कहना चाहिये। औदारिककाययोगियोंमें मोहनीय विभक्तिवाले जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? सर्वलोकमें रहते हैं । अविभक्तिवालोंमें मनोयोगियोंके समान भंग है। इसीप्रकार औदारिक मिश्रकाययोगी, अचक्षुदर्शनी और आहारक जीवोंके कहना चाहिये । कार्मणकाययोगियों में मोहनीय विभक्तिवाले जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? सर्वलोकमें रहते हैं । मोहनीय अविभक्तिवाले जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? लोकके असंख्यात बहुभाग और सर्वलोक क्षेत्रमें रहते हैं ।
विशेषार्थ-पहले ऊपर कहे गये मार्गणास्थानों में संभव पदोंके दिखलानेके लिये कोष्टक दिया जाता है
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