Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ]
मूलपयडिविहत्तीए भागाभागाणुगमो ६७. भागाभागाणुगमेण दुविहो णिदेसो ओघेण आदेसेण यं । [ लत्थ ] ओघेण विहत्ति० सव्यजीवाणं केवडिओ भागो। अणंता भागा। अविहत्ति० सध्यजीवाणं केवडिओ भागो ? अणंतिमभागो । एवं कायजोगि-ओरालिय०-ओरालियमिस्स-कम्बइय-अचखुदं०-भवसिद्धि०-आहार-अणाहारएत्ति वत्तव्यं ।
६८. मणुसगदीए मणुस्सेसु विहत्ति० सव्वजीवा० केवडिओ भागो ? असंखेजा भागा। अविहत्तिया सव्वजीवाणं केव०भागो ? असंखेजदिभागो। एवं पंचिंदिय-पंचिंदियपजत्त-तस-तसपज्जत्त-पंचमण-पंचवचि०-आभिणि-सुद०-ओहि०मोहनीय कर्मसे रहित होते हैं और एक जीव मोहनीय कर्मसे युक्त होता है यह दूसरा भंग बन जाता है। तथा जब नौवेंके अवेद भागसे लेकर ग्यारहवें गुणस्थानतक बहुतसे जीव मोहनीय कर्मसे युक्त पाये जाते है तब बहुतसे अपगतवेदी जीव मोहनीय कमसे रहित होते हैं और बहुतसे जीव मोहनीय कर्मसे सहित भी होते है यह तीसरा भंग बन जाता है। इसी प्रकार कषायरहित जीवोंके और यथाख्यात संयतोंके उक्त तीन भंग होते हैं। पर यहां 'एक जीव मोहनीय कर्मसे युक्त होता है या बहुतसे जीव मोहनीय कर्मसे युक्त होते हैं। ये विकल्प उपशान्तमोह गुणस्थानकी अपेक्षा ही कहना चाहिये । इस प्रकार ऊपर जिन मार्गणा विशेषोंमें मोहनीय कर्मसे युक्त होने और न होनेका कथन कर आये हैं उन मार्गणास्थानोंको छोड़कर शेष जितने भी मार्गणाओंके अवान्तर भेद है उनमें जीव मोहनीय कर्मसे युक्त ही होते हैं।
इसप्रकार नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय नामका अनुयोगद्वार समाप्त हुआ।
६६७. भागाभागानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । उनमेंसे ओघनिर्देशकी अपेक्षा मोहनीय विभक्तिवाले जीव सब जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्त बहुभाग हैं। मोहनीय अविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग प्रमाण हैं। इसीप्रकार काययोगी, औदारिककाययोगी, औदारिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी, अचक्षुदर्शनी, भव्य, आहारक और अनाहारक जीवोंके भी कथन करना चाहिये।
विशेषार्थ-ऊपर जितनी भी मार्गणाएँ गिनाईं हैं उनका प्रमाण अनन्त होते हुए भी उनमेंसे बहुभाग प्रमाण जीव मोहनीय कर्मसे युक्त हैं और अनन्तवें भागप्रमाण जीव मोह नीय कर्मसे रहित हैं, अतएव उक्त मार्गणाओंकी प्ररूपणा ओघके समान कही गई है।
६६८. मनुष्यगतिमें मनुष्योंमें मोहनीय विभक्तिवाले जीव समस्त मनुष्योंके कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं। मोहनीय अविभक्तिवाले जीव सब मनुष्यों के कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। इसीप्रकार पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रियपर्याप्त
(१)- (....६) गो-स० । य तत्व जीवाणमो-अ०, मा०i
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