Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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tream सहिदे कसायपाहुडे
[ पयडिविहत्ती २
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९ ६२. भवियाणुवादेण भवसिद्धि ० विहत्ति ० अणादिओ सपजवसिदो । अविहत्तीए मणुसभंगो | अभवसिद्धि० विहत्ती अणादिअपञ्जवसिदा । सम्मत्ताणुवादेण सम्मादि० विहत्ती ० आभिणि० भंगो । अविहत्ती • ओघभंगो । खइय० विहत्ती ० जह० अतोमुहुतं, उक्क० तेत्तीस सागरोवमाणि सादिरेयाणि । अविहत्ती ० ओघभंगो । वेदगलम्मादि ० विहत्ती ० जह० अंतोसुहुत्तं, उक्क० छावहिसागरोवमाणि । सासण० विहत्ती० जह० एगसमओ, उक्क० छ आवलियाओ । मिच्छादिट्ठी • मदिअण्णाणिभंगो ।
९ ६२. भव्य मार्गणाके अनुवादसे भव्य जीवोंके मोहनीय विभक्ति अनादि- सान्व है । और इनके मोहनीय अविभक्तिका काल मनुष्योंके समान है । तथा अभव्य जीवोंके मोहनीय विभक्ति अनादि अनन्त है । सम्यक्त्व मार्गणाके अनुवाद से सामान्य सम्यग्दृष्टि जीवोंके मोहनीय विभक्तिका काल आभिनिबोधिकज्ञानियोंके समान है । तथा उनके मोहनीय अविभक्तिका काल ओघके समान है । क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंके मोहनीय विभक्तिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल साधिक तेतीस सागर है। तथा क्षायिकसम्यग्दृष्टियों के मोहनीय अविभक्तिका काल ओघके समान है । वेदकसम्यग्दृष्टियोंके मोहनीय विभक्तिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल छयासठ सागर है ? सासादन सम्यग्दृष्टियों के मोहनीय विभक्तिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल छह आवली है । मिथ्याटोंके मोहनी विभक्तिका काल मत्यज्ञानियोंके समान है ।
विशेषार्थ - मतिज्ञानियोंके मोहनीयका काल ऊपर दिखला ही आये हैं । सम्यग्दृष्टि सामान्य मोहनीय के अभावका काल ओघप्ररूपणा के समान जानना चाहिये । कोई जीब क्षायिक सम्यक्त्वको प्राप्त करनेके अनन्तर अन्तर्मुहूर्त कालके भीतर ही क्षीणमोह हो जाता है । और कोई क्षायिकसम्यग्दृष्टि आठ वर्ष अन्तर्मुहूर्त कम दो पूर्वकोटि अधिक तेतीस सागर कालके बाद क्षीणमोह होता है । अतः इस विवक्षासे क्षायिक सम्यग्दृष्टिके मोहनीय कर्मका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल साधिक तेतीस सागर कहा है । सामान्य प्ररूपणा में मोहनीयके अभावका जो काल कहा है वही क्षायिक सम्यग्दृष्टिके मोहनीयके अभावका काल समझना चाहिये । वेदकसम्यक्त्वका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है । जो पहले कई बार सम्यग्दृष्टिसे मिध्यादृष्टि और मिध्यादृष्टिसे सम्यग्दृष्टि हो चुका है ऐसा कोई एक मिथ्यादृष्टि जीव वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त करके और वहां जघन्य अन्तर्मुहूर्त कालतक रहकर पुन: मिथ्यात्वको जब प्राप्त हो जाता है तब उसके वेदकसम्यक्त्वका अन्तर्मुहूर्त काल देखा जाता है । तथा उसका उत्कृष्ट काल छयासठ सागर है । कोई एक उपशम सम्यग्दृष्टि मनुष्य वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त होकर मनुष्यपर्याय संबन्धी शेष भुज्यमान आयुसे रहित बीस सागरोपम आयुवाले देवोंमें उत्पन्न हुआ। वहांसे पुनः मनुष्य होकर मनुष्यासे न्यून बाईस सागरकी आयुवाले देवोंमें उत्पन्न हुआ। वहांसे पुनः मनुष्य होकर भुज्यमान मनुष्यायुसे तथा देवपर्यायके अनन्तर प्राप्त होनेवाली मनुष्यायुमेंसे क्षायिक
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