Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पयडिविहत्ती २ ___६५७. वेदाणुवादेण इत्थिवेदपुरिसवेदविहत्ती केवचि० ? जह० एगसमओ अंतो
विशेषार्थ-क्षपक सूक्ष्मसांपराय गुणस्थानके कालमें एक समय शेष रहने पर जिसे काययोगकी प्राप्ति होती है उसकी अपेक्षा काययोगमें मोहविभक्तिका जघन्य काल एक समय कहा है। तथा काययोगका उत्कृष्ट काल असंख्यात पुद्गल परिवर्तन प्रमाण होता है इस अपेक्षासे काययोगमें मोह विभक्तिका उत्कृष्ट काल असंख्यात पुद्गल परिवर्तन प्रमाण कहा है। मनोयोगमें मोह अविभक्तिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त पहले घटित करके लिख आये हैं उसी प्रकार काययोगमें मोह अविभक्तिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त घटित करके जानना । इसी प्रकार औदारिक काययोगियों के मोहविभक्ति और मोह अविभक्तिका काल जानना । किन्तु इतनी विशेषता है कि इनके मोह विभक्तिका उत्कृष्ट काल कुछ कम बाईस हजार वर्ष होता है क्योंकि
औदारिक काययोगका उत्कृष्ट काल कुछ कम बाईस हजार वर्ष है इससे अधिक नहीं । यहां कुछ कमसे मतलब पर्यायके प्रारम्भमें होनेवाले कार्मणकाययोग और औदारिक मिश्र काययोगके काल से है। इन दोनोंके सम्मिलित काल अन्तर्मुहूतको बाईस हजार वर्षमेंसे कम कर देने पर शेष समस्त कालमें औदारिककाययोग होता है । औदारिकमिश्रकाययोगमें मोहविभक्ति का जो जवन्य काल जघन्य अन्तर्मुहूर्त प्रमाण और उत्कृष्ट काल उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्तप्रमाण कहा है इसका कारण यह है कि सबसे जघन्य क्षुद्रभवको ग्रहण करनेवाले लब्ध्वपर्याप्तकके औदारिक मिश्रका जघन्य काल होता है तथा उत्कृष्ट काल संख्यात हजार क्षुद्रभवोंमें परिभ्रमण करके जो पर्याप्तकमें उत्पन्न होकर औदारिक काययोगी हो जाता है उसके होता है। तो भी इस कालका प्रमाण अन्तर्मुहूर्त होता है। औदारिक मिश्रकाययोगमें मोह अविभक्तिका जघन्ध और उत्कृष्ट काल एक समय सयोगिकेवलीके कपाट समुद्धातकी अपेक्षा कहा है। वैक्रियिक काययोग और आहारककाययोगका जघन्य काल एक समय मरण
और व्याघातकी अपेक्षा प्राप्त होता है तथा इनका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है अतः इन योगों में मोहविभक्तिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त मनोयोगके समान बन जाता है । वैक्रिपिकमिश्र, आहारक मिश्र, उपशम म्यक्त्व और सम्पग्मिथ्यादृष्टिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त ही होता है अतः यहां मोह विभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहू कहा। कार्मण काययोगका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल तीन समय है अत: यहां मोहविभक्तिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल तीन समय कहा । तथा प्रतर और लोकपूरण समुद्धातके समय कार्मणकाययोग ही होता है जिसका काल तीन समय है। अत: इस. अपेक्षासे कार्मणकाययोगमें मोह अविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल तीन समय कहा ।
$ ५७. वेदमार्गणाके अनुवादसे स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी जीवके मोहनीयविभक्तिका
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