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हरिषेणकृत अपभ्रंश-धर्मपरीक्षा'
लग्बक-प्रो० ए० एन० उपाध्ये अनुवादक-साहित्याचार्य पं० राजकुमार शास्त्री
स्तलिखितोंकी संकलित सूची देखते समय ३-तीसरी धर्मपरीक्षा वृन्तविलासकी है। यह XXX धर्मपरीक्षा नामक जैन ग्रन्थोंकी एक बहुत कन्नब भाषामें है और ११६.के जगमग इसका निर्माण
बड़ी संख्या हमें दृष्टिगोचर होती है। इस हाहै। XXX
लेख में हम विशेषतया उन्हीं धर्मपरीक्षाओं ४-चौथी संस्कृत धर्मपरीक्षा सौभाग्यसागरकी है। का उल्लेख कर रहे हैं, जिनकी रचनाओं इसकी रचना सं० १५७१ (सन् १९१५)की है। में अमाधारण अन्तर है।
1-पांचवीं संस्कृत धर्मपरीक्षा पद्मसागरकी है। यह -हरिषेण कृत धर्मपरीक्षा। यह तपागच्छीय धर्मसागर गणीके शिष्य थे। इस ग्रंथकी अपभ्रंश भाषामें है और हरिषेणने सं० १०४४ (-४.६ रचना सं. १६४५ (सन् १९८९) में हुई। सन् १८८) में इसकी रचना की।
६-छटवी संस्कृत धर्मपरीक्षा जयविजयके शिष्य २-दूपरी धर्मपरीक्षा मितगतिकी है। यह माधव- मानविजय गणीकी है, जिसे उन्होंने अपने शिष्य देव सेनके शिष्य थे। ग्रन्थ संस्कृतमें है और सं० १०७० विजयके लिए विक्रमकी अठारहवीं शताब्दीके मध्य में (मन् १०१४) में यह पूर्ण हुश्रा।
बनाया था।
७-सातवीं धर्मपरीक्षा तपागच्छीय नय विजयके १ बम्बई यूनिवमिटीके स्विजर रिसर्च स्कालरकी
शिष्य यशोविजयकी है। यह सं. १६८०में उत्पन्न हुए थे हैमियतमे जब मैं पूनाकी भण्डारकर रिमर्च इन्स्टिट्य र
और ५३३ वर्षकी अवस्थामें परखोकबासी होगए थे। यह में कुछ कृतको हस्तलिम्वितको देख रहा था, मुझे
ग्रंथ संस्कृतमें है और वृत्तिमाहित है। हरिषेणकी यह अपभ्रश-धर्मपरीक्षा देखनेको मिली। मैंने
८-पाठवीं धर्मपरीक्षा तपागच्छीय सोमसुन्दरके यह रचना पं. नाथूगमजी प्रेमी तथा प्रो० हीरालालजीको
शिष्य जिनमण्डनकी है। दिखलाई और उन्होंने यह इच्छा व्यक्त की कि यह ग्रन्य। जहाँतक होमके जल्दी ही प्रकाशित होजाना चाहिए।
--नवमीं धर्मपरीक्षा पार्श्वकीर्तिकी है। २-इम दिशामें प्रो. एच. डी. वेलन्कर का
१०--दसवीं धर्मपरीक्षा पूज्यपादकी परंपरा-गत पद्म
नन्दिके शिष्य रामचन्द्र की है जो देवचन्द्रकी प्रार्थनापर 'जिनरत्नकोष' बहुत ही सर्वाङ्ग सुन्दर कोश है। यह ग्रन्य। प्रेममें हैं और इसका प्रकाशन भ० श्रो० रि० इ. पूनाकी
बनाई गई।
यद्यपि ये हस्तलिखित प्राप्य हैं और इनमेंसे कुछ ओरसे दोरहा है । हम प्रो. वेलन्कर के इस एकाकी श्रमके
अभी प्रकाशित भी होचुकी हैं। लेकिन जबतक इनके लिए धन्यवाद देते हैं और आशा करते हैं कि यह कोश
अन्तर्गत विषयोंका अन्य ग्रन्थोंके साथ सम्पूर्ण पालोचनात्मक प्रकाशन के पश्चात् निश्चय ही एक अत्यन्त महत-पूर्ण मूलग्रन्य प्रमाणित होगा। यह इस कोषके रचयिता और ।
तथा तुलनात्मक अध्ययन नहीं किया गया है तब तक प्रकाशककी ही कृपा है कि उन्होंने मुझे इस ग्रन्थके
इनमेंसे अधिकांश हमारे लिए नाम मात्र ही हैं। प्रकाशित होने के पहिले ही उन फर्मोका उपयोग करने दिया
२--यह अमितगतिकी धर्मपरीक्षा है, जिसका पूर्णरूप मुख्यतः जिनके अाधारपर ही धर्मपरीक्षाओंकी यह सूची ३-दे० एम० डी० देसाईकृत (बम्बई १९३३) तैयार की गई है।
'जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास ।'