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धवला-प्रशस्तिके राष्टकूट नरेश (ले०-बा० ज्योतिप्रसाद जैन, एम० ए०, एल-एल० बी०)
हुआ है।
'अनेकान्त' वर्ष ७ किरण ११-१२ में मेग एक लेख है कि क्या धवलाकी समाप्ति विक्रम संवत् ३८ में होने 'श्रीधवलाका समय, शीर्षक प्रकाशित हुआ था। उस लेख कोई बाधा भी है ? और क्या मोदीजी द्वारा प्रस्तुत की में मैने षटखंडागम पुस्तक १ की प्रस्तावनामें प्रो.हीरा- गई प्रधान बाधामें भी कोई पार? प्रशस्तिका 'जगतुंगलालजी द्वारा निर्णीत धवलाके रचनाकाल पर प्रबल देव-रज्जे' पद ही इस समय विचारणीय है। जैसा कि ऐतिहासिक एवं ज्योतिष-संबंधी बाधा उपस्थित करने मोदीजीने प्रतिपादन किया है, और मेरी स्वयं भी हुए मप्रमाण यह सिद्ध किया था कि धवला-प्रशस्तिमें पहिले जैसी धारणा थी. कि "गष्टकूट वंशक जगतुंग उल्लिखित समय शक संवत् ७३८ न होकर विक्रम संवत उपाधिधारी अनेक राजाओंमें सबसे प्रथम गोविन्द तृतीय ८३८ है। मेरे उस लेखके उत्तर में प्रो.हीरालालजीक पाये जाते हैं" मो बात भ्रमपूर्ण है जैसा कि मुझे इस बीच सुपुत्र श्रीप्रफुल्ल कुमार मोदीका एक लेग्य श्रीधवलका रचना- में उन वंश और कालके विशेष अध्ययनसे मालूम हुना काल' शीर्षक अनेकान्तकी गत किरण , में प्रकाशित है। गोविन्द द्वितीयका अपने ममयका कोई ताम्रपत्र
इत्यादि अभिलेख न होनेमे तथा वाणी-हिंडोरी, राधनपुर, अपने लेख में मोदीजीने मेरे लेखमें प्रस्तुत भनेक बातों
बाद। श्रादिके दानपत्रों में उसका कोई उल्लेख न होने से को ऐतिहामिक दृष्टि से चिन्तनीय बतलाते हुए भी उनकी
डा. जीटका यही विश्वास या कि गोविन्द द्वितीयमे चिन्ता करना तब तक निष्फल ही बताया है जब तक यह
कभी राम ही नहीं किया । डा. भंडारकर, रेऊ तथा सिद्ध न हो जाय कि विक्रम संवत ८३८ मा धवलाकी
अन्य विद्वान् भी इस सबंध में संदिग्ध ही रहे। बौदा समाप्तिके लिये संभव माना जा सकता है। सबसे ज्यादा
ताम्रपत्र (८८१ ई.) कपडवंज दानपत्र (११०ई०) तया जबादम्त बाधा जो आपने उपस्थित की है वह 'शक
वेगुमारा दानपत्र (१४ ई.) में दी हुई राष्ट्रकूट वंशावसंवत् ७०३ (वि० सं०८३८) में नोरमेन द्वारा जगतुंगदेव
लियों में भी उसका नाम नहीं है। किन्तु बादको दी एक के राज्यके उल्लेख के किये जाने का मर्वथा असंभव होना
ऐसे प्रमाण उपलब्ध हो गये कि जिनके माधारपर उसके हैं। अत: यह लिख कर आपने अपने इस लेखका अन्त
रामा हाने में मन्देह नहीं रहा। इन प्रमाणों में सबसे प्रबल कर दिया कि 'जब तक हम एक प्रधान बातके प्रबल ऐति- वह स्तम्भ लेख है जो मि० राइस माहिबने खोज निकाला हासिक प्रमाण प्रस्तुन न किये जाये तब तक बा. ज्योति था और जिसमें गोविन्द वि. का उल्लेख 'अकाल वर्ष प्रमारजीकी शेष कल्पन'ओंके विचारमें समय व शक्ति (कृष्ण) के पुत्र जगतुङ्ग प्रभूतवर्ष प्रतापावलोक" के रूपमें लगाना निष्फल है।"
१E. I.X 1909-10p.84. यह तो विद्वान लोग ही निर्णय कर सकेंगे कि क्या २ Bhandarkar: Early History of the मेरा उपर्युक्त लेख मोदीजीके अनुसार मात्र कल्पनाओंकी Dekkan p.49. & Vani-Dindori and नींव पर ही खा और इसना उपेक्षणीय है, तथा मोदी and Radhanpur gratns-I. A. XI. जाके ही शब्दों में उनके "पिताजी प्रो. डाक्टर हीगलालजी P. 157. ने अपना विवक्षित समय-निर्णय कैसी विशेष स्वोज-बीन ३ रेक : भारत के प्राचीन गजबंश, भाग ३, पृ० ३२-३३ पूर्वक' किया? वास्तवमें मोदीजी द्वारा किये गये वैय- ४ Alteka: Rashtra kutas & their timies तिक भाक्षेपोंका उत्तर देना तो व्यर्थ है। देखना तो यही p48&n.1.