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अनेकान्त
२ - समयसार (१०" × ४"), पत्र ६७, पंक्ति १३, अक्षर ४५ । “मंवत् १७४० वर्षे फाल्गुन मासे कृष्ण पक्ष द्वादशी तिथौ लिखितम् शास्त्रम् ॥" इस प्रतिमें प्रत्येक द्वारकी इस प्रकारकी गाथाओं की सूची दी गई है । प्रथम द्वार - गाथा ८६: द्वितीय ३४; तृतीय ३४; चतुर्थ १६ प १५ षष्ठ ११: सप्तम ६० अम ५८; नवम ५४; दशम १२७: एकादश ४१; द्वादश ५३;
गुनस्थानं १५६ | लिपि अतीव सुन्दर होनेसे सुपाठ्य है । यह प्रति हमारे पास है ।
३- समयसार (१०' x ४”), पत्र ४५, पंक्ति १५, ताकै शिष्य दयासिंघ गणि गुगावन्त मेरे अक्षर ५३ | "श्रीनाटक समैमार सम्पूर्णम् मंत्रन
१८६९ प्रथम वशाख द्वादश्यां गुरौ दिने पूर्णी कृतम् लिखित जिनदत्तर्षिणा नजीबाबाद नगरे ।" यह प्रति ताकौ परसाद पाइ रूपचन्द आनन्दसौं बङ्गालकी रॉयल एशियाटिक सोसाइटी ( प्रन्थ- संख्या ६८४५) में सुरक्षित है। इसकी लिपि साधारण है ।
४ - समयमार (१०||" x ७), पत्र ५९, पंक्ति २५, " इतिश्री नाटक समयसार सिद्धान्त सम्पूणम । माह मेघराजजी पठनार्थम ।।" यह प्रति भी रॉयल एशियाटिक सोसाइटी ( ग्रन्थ संख्या ६७०१ ) में सुरक्षित है। इस प्रतिमें यद्यपि लेखन-संवत-सूचक उल्लेख नहीं है, पर अनुमानसे मालूम होता है कि यह अठारहवीं सदी के बादकी नहीं हो सकती ।
[ वर्ष ८
जो पैं यहु भाषा ग्रंथ सबद सुबोध याकौ
तौहू बिनु सम्प्रदाय नावे तत्व स मैं, यातें ज्ञान लाभ जानि संतनिका वैन
मांनि वातरूप ग्रंथ लिप्यौ महाशांतरस मैं ॥ १ ॥ खरतरगच्छ नाथ विद्यमान भट्टारक
जिन भक्तिसूरिजू के धर्मराजधुर मैं, षेमसाप मांझि जिनहर्षजू वैरागी कवि
शिष्य सुखवर्द्धन शिरोमनि सुधर मैं,
धरम आचारिज विख्यात श्रुतघर मैं ;
पुस्तक बनायौ यह सोनगिरिपुर मैं ||२|| मोदी थापि महाराज जाकौं सनमांन दीन्हों
फतैचन्द्र पृथ्वीराज पुत्र नथमालके, फतैचन्दजूके पुत्र जसरूप जगन्नाथ
गोत गनधर मैं धरैया शुभचालके, तामें जगन्नाथजूके बूझिक हेतु हम
यौरिके सुगम कीन्हें वचन दयाल के यांचत पढ़त अब आनन्द सदा एकरौ
संगि ताराचन्द अरु रूपचन्द्र बालके ॥ ३ ॥ दोहा देशी भाषा को कहौं, अरथ विपर्यय कीन । ताकौ मिच्छा टुक्कडुं, सिद्ध साखि हम दीन ||४||
५- समयसार टीका (९|||" × ४||"), मूल--- बनारसीदास, टीकाकार रूपचन्द्र, पृष्ठ १४३, पंक्ति १५, अक्षर ४६ । आदि
दोधक श्री जिन बचन समुद्रकौं, कौं लगि होई बखान | रूपचन्द तौहू लिखै, अपनी मति अनुमान | अन्त भाग- सवैया
|| श्री ग्रन्थः सम्पूर्णः ॥ श्रीः ॥ श्रीः ॥
नन्दवहादुत्सरे विक्रमस्य च । पौपे सितेतर पचमी तिथौ । धरणीसुत वासरे । श्रीशुद्धि
पृथ्वीपति विक्रमके राजमरजाद लीन्हें
सत्रह बीते परिवांनुआ वरस मैं, दन्तीपत्तनं । श्रीमति विजयसिंहाख्यसुराज्ये । बृहतखरतरगणे । निखिल शास्त्रौघपारगामिनो महीयांसः आसूमास आदि द्यौं सु सम्पूरन ग्रंथ किन्हौ श्री क्षेमकीर्तिशाखोद्ववाः । पाठकोत्तमपाठकः । वारतिक करि उदार वा रससि मैं, श्रीमद्रूपचन्द्रजिद्गण तच्छिष्य । पं० विद्याशाल मुनि