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अनेकान्त
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[ वर्ष ८
प्रसन्न करनेवाला जैसे अर्थोम व्यवहृत होता है,' गोम्मट-संगहमुत्तं गोम्मटसिहरुघरि गोम्मटजिणो य ।
और 'राय' (राजा) की उन्हें उपाधि प्राप्त थी । ग्रंथमें गोम्मटराय-विणिम्मिय-दक्खिगाकुक्कुडजिणो जयउ ।। इम नामका उपाधि-महित तथा उपाधि-विहीन दोनों रूपसे स्पष्ट उल्लेग्ब किया गया है और प्रायः इसी
-गो० क० ६६८॥ प्रिय नामसे उन्हें आशीर्वाद दिया गया है: जैमा कि
इम गाथामें उन तीन कार्यों का उल्लेख है और निम्न दो गाथाओंमे प्रकट है:
उन्हींका जयघोष किया गया है जिनके लिये गोम्मट अज्जज्जसेण-गुगागरणसमूह - संधारि - अजियसेगगुरू । उर्फ चामुण्डगयकी खास ख्याति है और वे हैं---
१ गोम्मटमंग्रहसत्र, २ गोम्म जन और दक्षिणभुवणगुरू जम्स गुरु सो राओ गोम्मटो जयउ ॥७३३
कुक्कुजिन । 'गोम्मटमंग्रहसूत्र' गोम्मटके लिये जेग विणिम्मिय-पडिमा-वयणं सवठ्ठसिद्धि-देवेहि । मंग्रह किया हा गोम्मटमार' नामका शास्त्र सव्व-परमोहि-जोगिहिं दिटुं सो गोम्मटो जयउ॥६६६ है; 'गोम्मटजिन' पदका अभिप्राय श्रीनमिनाथकी इनमें पहली गाथा जीवकाण्डकी और दूसरी
उस एक हाथ-प्रमाण इन्द्रनीलमणिकी प्रतिमासं है
. जिसे गोम्मटरायने बनवाकर गोम्मट-शिखर अर्थात् कर्मकाण्डकी है। पहलीमें लिखा है कि 'वह राय गोम्मट जयवन्त हो जिसके गरु वे अजितसेनगुरु
चन्द्रगिरि पर्वत पर स्थित अपने मन्दिर (वस्ति) में
स्थापित किया था और जिमकी बाबत यह कहा हैं जो कि भुवनगुरु हैं और प्राचार्य आर्यसेनके ।
जाता है कि वह पहले चामुण्डराय-वस्तिमें मौजूद गुण-गण-समृहको सम्यक प्रकार धारण करने वालेउनके वास्तविक शिष्य-हैं।' और दूसरी गाथामें
थी परन्तु बादको मालूम नहीं कहाँ चली गई, उसके
स्थान पर नमिनाथकी एक दूसरी पाँच फुट ऊँची बतलाया है कि 'वह 'गोम्मट' जयवन्त हो जिसकी निर्माण कराई हुई प्रतिमा (बाहुबलीकी मृति) का
प्रतिमा अन्यत्रसं लाकर विराजमान की गई है और
जो अपने लेख परम एचनक बनवाए हुए मन्दिरकी मुख सवार्थसिद्धिके देवों और मर्वावधि तथा
मालूम होती है । और दक्षिण-कुक्कुट-जिन' परमावधि ज्ञानके धारक योगियों द्वारा भी (दूरमे ह।) देखा गया है।'
वाहबलीकी उक्त सुप्रसिद्ध विशालमतिका ही नामान्तर
है, जिस नामक पाछ कुछ अनुश्रुति अथवा कथानक चामुण्डरायके इस 'गोम्मट' नामके कारण ही है और उसका मार इतना ही है कि उत्तर-देश उनकी बनवाई हुई बाहुबलीका मृति 'गोम्मटेश्वर' पौदनपुरमें भरतचक्रवनि बाहुबलीकी उन्हींकी तथा 'गोम्मट देव' जैसे नामांस मिद्धिको प्राप्त हुई शरीराकृति-जैमी मृनि बनवाई थी, जो कुक्कुट-मपोंसे है, जिनका अर्थ है गोम्मट का ईश्वर, गोम्मटका देव । व्याप्त हो जाने के कारण दुलभ-दशन हो गई थी।
और इमी नामकी प्रधानताको लेकर ग्रन्थका नाम उमीक अनप यह मति दक्षिणमं विन्ध्यांगार पर 'गाम्मटसार' दिया गया है, जिसका अर्थ है 'गोम्मटकं स्थापित की गई है और उत्तरकी मूनिम भिन्नता लिये खींचा गया पूर्वक (पटग्वण्डागम तथा धवलादि) बतलानक लियं ही इसको 'दक्षिण' विशेषण दिया ग्रन्थोंका मार ।' ग्रन्थको 'गोम्मटमंग्रह सूत्र' नाम गया है। अतः इम गाथा परमं यह और भी स्पष्ट भी इसी श्राशयको लेकर दिया गया है, जिसका हो जाता है कि 'गोम्मट' चामुण्डरायका खास नाम उल्लेव निम्न गाथामें पाया जाता है :
था और वह संभवतः उनका प्राथमिक अथवा घरू
बोलचालका नाम था। कुछ अर्म पहले आम तौर १ देखा, अनेकान्त वर्ष ४ किरण ३, ४ में डा० ए० एन० पर यह समझा जाता था कि 'गाम्मट' बाहुबलीका उपाध्येका 'गोम्मट' नामक लेख ।
ही नामान्तर है और उनकी उक्त असाधारण मूतिका
मांग कराई हुइ
ज
र
मावधि मा मालूम
मिद्ध विशाल