Book Title: Anekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 498
________________ अनेकान्त [वर्ष ८ आ० कुन्दकुन्दकी आम्नायमें और प्रतिष्ठा एवं यश प्राप्त कर चुके थे और इस लिये उस समय ये लगभग ४० वर्षके अवश्य पद्मनन्दी होंगे। यदि शेष रचनाओंके लिये उन्हें ३० वर्ष भी लगे हों तो उनका अस्तित्व वि० सं० ११३७: वृषभनन्दि (संभव ई० सन् १०८० तक पाया जा सकता है। अतः प्रभाचन्द्रका समय वि० सं० १०६७ से ११३७ रामनन्दि ई० सन् १०१० से १०८० अनुमानित होता है । माणिक्यनन्दि (महापण्डित) विभिन्न शिलालेखोंमें प्रभाचन्द्रके पद्मनन्दि सैद्धान्त' और चतुर्मुखदेव (वृषभनन्दि) ये दो नयनन्दि (सुदर्शनचरितकार) गुरु बतलाये गये हैं और प्रमेयकमलमार्तण्ड तथा श्रा० प्रभाचन्द्र नयनन्दि (ई० सन् १०४३) के न्यायकुमुदचन्द्रकी अन्तिम प्रशस्तियोंमें पद्मनन्दि समकालीन हैं; क्योंकि उन्होंने भी धारामें रहते हुए . । सैद्धान्तका ही गुरुरूपसे उल्लेख है। हाँ, प्रमेयभोजदेवके राज्यमें आ० माणिक्यनन्दिके परीक्षा कमलमार्तण्डकी प्रशस्तिमें परीक्षामुखसूत्रकार मुखपर प्रमेयकमलमार्तण्ड नामक विस्तृत टीका माणिक्यनन्दिका भी उन्होंने गुरुरूपसे उल्लेख लिखी है' और प्रायः शेष कृतियाँ भोजदेव' (वि० किया है । कोई आश्चर्य नहीं, नयनन्दिकेद्वारा सं० १०७५ से १११०) (ई० सन् १०१८ से १०५३) उल्लिखित और अपने विद्यागुरुरूपसे स्मृत के उत्तराधिकारी धारानरेश जयसिंहदेवके राज्य माणिक्यनन्दि ही परीक्षामुखके कर्ता और प्रभाचन्द्र के में बनाई हैं । इसका मतलब यह हुआ कि न्यायविद्यागुरु हों । नयनन्दिने अपनेको उनका प्रमेयकमलमार्तण्ड भोजदेवके राज्यकालके अन्तिम प्रथम विद्याशिष्य और उन्हें महापण्डित घोषित किया है जिससे प्रतीत होता है कि वे न्यायशास्त्र वर्षों-अनुमानतः विक्रम संवत् ११०० से ११०७, ३० सन् १८४३ से १०५०-की रचना १ इनका वि. सं. १११२का दानपत्र मिलनेसे ये वि. सं होना चाहिए। और यह प्रकट है कि प्रभाचन्द्र १११०के करीब राजगद्दीपर बैठे होंगे। इस समय तक राजा भोजदेवद्वारा अच्छा सम्मान २ देखी, शिलालेख नं०५५ (६६)। ३ इस समयके माननेमे वि. सं. १०७३में रचे गये अमित१ प्रमेयकमलमातडका अन्तिम समाप्ति-पुष्पिकावाक्य । गतिके पंचसंग्रह के पद्यका तत्वार्थवृत्तिपद विवरणमें २ श्रीचन्द्रने महाकवि पुष्पदन्तके महापुराणका टिप्पण उल्लेख होना भी संगत है। भोजदेवके राज्यमं वि० सं० १०८०में रचा है। तथा भोजदेवके वि० सं० १०७६ और वि० सं० १०७६ के ४ शिलालेख नं० (६४)। २ शिलालेख नं० ५५ (६६)। दो दानपत्र भी मिले हैं । अतः भोजदेवकी पूर्वावधि ५ 'श्रीपद्मनन्दिसैद्धान्तशिष्योऽनेक गुणालयः । वि० सं० १०७५ बतलाई जाती है और उनकी मृत्यु प्रभाचन्द्रश्चिरं जीयाद्रत्ननन्दिपदे रतः ॥४॥ विक्रम संवत् १११० के लगभग सम्भावना की जाती है: ६ 'भव्याम्भोज दिवाकरो गुणनिधिः योऽभजगद्भ पणः । क्योंकि भोजदेवके उत्तराधिकारी जयसिंहदेवका विक्रम सिद्धान्तादिसमस्तशास्त्रजलधिः श्रीपद्मनन्दिप्रभुः । संवत् १११२का एक दानपत्र मिला है। देखो, विश्वे- तच्छियादकलङ्कमार्गनिरतात् सन्यायमार्गोऽखिलः श्वरनाथ रेउकृत 'राजाभोज' पृ. १०२-१०३ । अतः सुव्यक्तोऽनुपमप्रमेयरचितो जातः प्रभचन्द्रतः ।।४ पृ.८८० इनकी उत्तरावधि वि. सं. १११० (ई. सन् १०५३) ७ 'गुरुः श्रीनन्दमाणिक्यो नन्दिताशेषसजनः । समझना चाहिए। नन्दिताद्दुरितैकान्तरजाजैनमतार्णवः ॥३॥' पृ० ६६४ ।

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