Book Title: Anekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 500
________________ ३५४ अनेकान्त [ वर्ष ८ और सङ्गतियोंसे परीक्षामुखकार आ० माणिक्य- मुनि नयनन्दि (ई. १०४३) और श्रा० प्रभाचन्द्र नन्दिका समय वि० सं० १०५० से वि० सं० १११० (ई० १०१० से ई० १०८०) के गुरु-शिष्यादि उल्लेखों ( ई० सन् ९९३ से ई० १०५३ ) अनुमानित होता है आदिकी सम्बद्धता भी बन जाती है । और उनके परीक्षामुखका रचनाकाल वि० सं० १०८५, वीरसेवा मन्दिर, सरसावा । ई० स० १०२८ के करीब जान पड़ता है। इस १५-५-१९४७ समयके स्वीकारसे श्रा० विद्यानन्द (९वीं शताब्दी) यह लेख वीरसेवा-मन्दिरसे शीघ्र प्रकाशित होने वाली के प्रन्थवाक्योंका परीक्षामुखमें अनुसरण, श्रा० 'प्राप्त-परीक्षा' केलिये लेखक द्वारा लिखी गई प्रस्तावनाके वादिराज (ई० स. १०२५) द्वारा अपने ग्रन्थोंमें 'विद्यानन्दका उत्तरवर्ती ग्रन्थकारोंपर प्रभाव' प्रकरणका परीक्षामुख और श्रा० माणिक्यनन्दिका अनुल्लेख, एक अंश है । TITLE-PR atutthitirthat H EALTHHTHER REL - 1-44 जैनादर्श [जैन-गुण-दर्पण] कर्मेन्द्रिय-जयी जैनो जैनो लोक-हिते रतः ।। जिनस्योपासका जैनो हेयाऽऽदेय विवेक-युक् ॥ १॥ अनेकान्ती भवेज्जैनः स्याद्वाद-कलाऽन्वितः । विरोधाऽनिष्ट-विध्वंसे समर्थ: समता-युतः ॥२॥ दया-दान-परो जैनो जैनः सत्य परायणः । सुशीलोऽवश्वको जैनः शान्ति-सन्तोष-धारकः ।।३।। परिग्रहेष्वनासक्तो नेर्षालु व द्रोह-वान् । न्याय-मार्गाऽच्युतो जैनः समश्च सुख-दुःखयोः ॥४॥ जिल्लोभो निर्भयो जैनो जैनोऽहकार-दूरगः ।। सेवा-भावी गुण-ग्राही निःशल्यो विषयोज्झितः ॥५॥ राग-द्वेषाऽवशी जैनो जैनो मोह-पराक्मुखः । स्वात्म-ध्यानोन्मुग्यो जैनो जैनो रोष-विवर्जितः ।।६।। सदृष्टि-ज्ञान-वृत्तात्मा जैनो नीति-विधायकः । मनोवाकाय-व्यापारे चैको जैनो मुमुक्षुकः ।।७।। आत्म-ज्ञानी प्रसन्नात्मा सद्ध्यानी गुण-पूजकः । अनाग्रही शुचिजैन: संलश-रहिताऽऽशय: ।।८।। नाऽऽत्मन: प्रतिकूलानि परेपु विदधाति यः ।। स जैनः सर्वलोकानां सेवकाग्र्यः प्रियो मतः ।।९।। परोपकृति-संलग्नो न स्वात्मानमुपेक्षते । युगधर्म-धरो वीरो धार्मिको जैन उच्यते ॥१०॥ वीरसेवामन्दिर, सरसावा । -'युगवीर' बEHLA

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