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युग-गीत लेखक -.पंडित काशीराम शर्मा 'प्रफुल्लित'] श्राज युगके गीत गा कवि, आज युगके गीत गा ! शान्तिके शीर्षक लिखे तो क्रान्तिके लिख छन्द नीचे । भावनाके मधुर स्वरसे भ्रान्तिको कर दूर--पीछे ! बदल दे जो निन्दगी इस हिन्दकी वो गीत गा ।
आज युगके गीत गा !! सफलता जिसके लिये स्थित विजयकी माला संजोये । शाक है, वह आज भी गृह-कलहक विप-बीज बाय ! छाछ - मन्थनसे भला हा प्राप्त भी नवनीत क्या ?
आज युगके गीत गा !! आज बन्धन - मुक्त होनेकी लगी है होड़ जगमें , आज मरमिटना सिखाता खोलता यह खून रगमें ! जल उंट ज्वालामुखी , हो भस्म सारा भय अहा !
आज युगके गीत गा !! चिर - पतित चिर - दलित प्राणी, स्वत्वकी ललकार करते ! 'जियेग या मरेंगे' कंवल यही हुंकार भरते ! मातृ - भूमीके लिये निज प्रागकी भी प्रीत क्या ?
आज युगक गीत गा !! है हमें निश्चय, निकट ही हिन्द यह आज़ाद होगा । किन्तु कुछ बरबादियोंके बाद ही आबाद होगा । ये गुलामीके बुरे दिन एक पलमें बीत जा !
आज युगके गीत गा !! भीम-बलिक आज कवि, वे राग भैरव फिर जगा दे ! धधकती चिनगारियोंसे वीरताकी आग जागे !! शक्ति - साहससे भरे विद्रोहके ही गीत गा !
. आज युगके गीत गा !! A BHEJOSHearate RUSHERSairatnagar