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अनेकान्त
[ वर्ष ८
प्रतिक्षणं भङ्गिषु तत्पृथक्त्वान्न मातृ-घाती स्व-पतिः स्व-जाया । दत्त-ग्रहो नाऽधिगत-स्मृतिने न क्त्वार्थ-सत्यं न कुलं न जातिः ॥१६॥
'क्षण-क्षणमें पदार्थोको भगवान-निरन्वय विनाशवान-माननेपर उनके पृथकपनकी वजहसेमर्वथा भिन्न होनेके कारण-काई मातृ-घाती नहीं बनता–क्योंकि तब पुत्रोत्पत्तिके क्षणमें ही माताका स्वयं नाश होजाता है, उत्तरक्षगामें पुत्रका भी प्रलय होजाता है और अपुत्रका ही उत्पाद होता है; न काई किमी (कुलस्त्री) का स्वपति बनता है. क्योंकि उसके विवाहित पतिका उसी क्षण विनाश होजाता है, अन्य अविवाहितका उत्पाद होता है; और न कोई विसीकी स्वपत्नी (विवाहिता स्त्री) ठहरती है क्योंकि उसकी विवाहिता स्त्रीका उसी क्षण विनाश होजाता है, अन्य अविवाहिताका ही उत्पाद होता है, और इससे परस्त्रीसेवनका भी प्रमङ्ग पाता है।'
___(इसी तरह) दियं हुए धनादिकका (ऋणी आदिके पासस) पुन: ग्रहण (वापिस लेना) नहीं बनता-क्योंकि बौद्ध-मान्यतानुसार जो ऋण देता है उसका उसी क्षण निरन्वय विनाश होजाता है, उत्तरक्षणमें लेनेवालेका भी विनाश होजाता है तथा अन्यका ही उत्पाद हाता है और साक्षी-लेखादि भी कोई स्थिर नहीं रहता, सब उसी क्षण ध्वस्त होजाते है । अधिगत किये हुए (शास्त्रक) अर्थकी स्मृति भी तब नहीं वनती-और इससे शास्त्राभ्यास निष्फल ठहरता है। 'क्त्वा' प्रत्ययका जा अथ-मत्य है-प्रमाणरूपसे स्वीकृत है-वह भी नहीं बनता-क्योंकि पूर्व और उत्तर-क्रियाका एक ही कर्ता होनेपर पृयकालकी क्रियाका 'क्त्वा' (करके.) प्रत्ययके द्वारा व्यक्त किया जाता है; जैसे 'रामो भुक्त्वा गत:'- राम ग्वाकरकं गया । यहाँ खाना और जाना इन दोनों क्रियाओका कर्ता एक ही राम है तभी उसकी पहली खानकी क्रियाको करक' शब्दकं द्वारा व्यक्त किया गया है, रामके क्षणभंगुरहानपर वह दोनों क्रियाओंका कर्ता नहीं बनता और दानों क्रियाओंक का भिन्न-भिन्न व्यक्ति होनेपर एमा वाक्य-प्रयोग नहीं बनता।'
(इसी प्रकार) न कोई कुल बनता है और न कोई जाति ही बनती है---क्योंकि मृयवंशादिक जिम कलमें किसी क्षत्रियका जन्म हुआ उस कुलका निरन्वय विनाश होजानसे उस जन्ममं उसका कोई कुल न रहा, तब उसके लिय कुलका व्यवहार कैसे बन सकता है ? त्रियादि कोई जाति भी उम जातिकं व्यक्तियोंक बिना असम्भव है । और अनेक व्यक्तियोंमेंसे अतव्यावृत्तिक ग्राहक एक चित्तका असम्भव होनस अन्यापोह-लक्षणा (अन्यसं अभावरूप, अक्षत्रिय व्यावृतिरूप) जाति भी घटित नहीं हो सकती।'