Book Title: Anekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 493
________________ किरण ८-९] अतिशय क्षेत्र चन्द्रवाड ३४७ ऊपरके इस समस्त विवेचन परसे यह स्पष्ट हो प्रन्थ पूर्ण किया है। इस प्रन्थकी प्रशस्तिमें रपडी जाता है कि वि० सं० १३१३ के पूर्वसे १४६८ तक और चन्द्रवाडके समुल्लेखके साथ लिखा है कि तो चन्द्रवाडमें चौहान वंशी राजाओंका राज्य रहा इटावा भी उसके समीप है। और वहाँ कीरतसिंधु है और उस समय वहां लंबकंचुक (लमेचू) और नामका राजा राज्य करता है जैसा कि उमकं निम्न जैसवाल आदि विविध उपजातियोंके जैन निवास वाक्योंसे प्रकट है:करते थे और उन्होंने अनेक जैन मन्दिर भी मध्यदेश रपडी चंदवार, ता समीप इटावा सुखसार । बनवाए और उनके प्रतिष्ठा महोत्सव भी किये थे । कीरतिसिंधु धरणीधर रहे, तेग त्यागको समसरि करै।। साथ ही समय समय पर अनेक ग्रन्थोंकी प्रति- विक्रमकी १७वीं शताब्दीके इस समुल्लेखसे स्पष्ट लिपियाँभी कराई गई हैं। इतना ही नहीं; किन्तु मालूम होता है कि उस समय उक्त स्थानमें कीर्तिसिंधु सं० १४५४ में बाहुबली चरित तथा सं० १५३० में नामके राजाका राज्य था। परन्तु इस राजा आदिक भी वहां के जैनियों द्वारा 'भवियसयत्त कहा' सम्बन्धमें विशेष कुछ ज्ञात नहीं होसका, अस्तु । नामके ग्रन्थोंका निर्माण अपभ्रशभाषामें कराया प्रो० हीरालालजीने अपने लेखमें रायवदियको गया है। आगरा फोर्टसे बांदीकुई जानेवाली रेलवेका रायभा' ___कविवर लक्ष्मणके 'अगुवयरयणपईव' नामके Ruilbhau ) नामका स्टेशन बतलाया है, जो जमुना प्रन्थमें 'रायवदिय' नामकी एक नगरीका उल्लेख दिया नदीके उत्तर तटपर बसा हुआ है। परन्तु रपरी, हुआ है' जो उस समय जन धनसे समृद्ध थी। चन्द्रवाड और इटावाके ऐतिहासिक आख्यानोंपर और वहाँ चन्द्रवाडके चौहान वंशकी एक शाखाका दृष्टि डालन से यह स्पष्ट मालूम होता है कि इनका राज्य रहा है, और इस नगरको भी कविने जमना पारम्परिक कुछ सम्बन्ध अवश्य रहा है और उसका नदीके उत्तर तटपर बतलाया है। जिससे यह कारण एक ही व्यक्ति अथवा एक ही वंशके दो चन्द्रवाडके समीपका ही कोई प्रसिद्ध नगर होगा व्यक्तियों द्वारा शासित होना है। खासकर, रपरी, ऐसा जान पड़ता है । 'रायद्दिय'के सिवाय चन्द्रवाडः चन्द्रवाड और इटावा पर हिन्दू और मुसलमान के साथ रपरी नामके नगरका भी उल्लेख मिलता है, शासकोंने राज्य किया है यद्यपि उन स्थानों में जिससे यह भी सन्देह होने लगता है कि रपरीका मुसलमानोंका शासन अल्प समयक लिय ही रहा हे क्या कोई सम्बन्ध रावद्दियके साथ तो नहीं है, या किन्तु उनके शासनकालमें वे नगर अपनी पूर्व गौरव राहिय कोई स्वतन्त्र नगरी है। कविवर लक्ष्मणके युक्त सम्पन्नावस्थाको नहीं प्राप्त हो सके समुल्लेखसे तो यह स्पष्ट मालूम होता है कि विक्रमकी १६वीं शताब्दीक बादशाह अकबरके गयद्दिय भी चन्द्रवाडके समीपवर्ती कोई नगर था। समयमें चन्द्रवाड रपरी और इटावाका प्रदेश आगरे वि० सं० १६७१की जेठ वदी नवमीको कवि के सूबेमें मिला दिया गया था, और उस समयसे ब्रह्मगुलालन अपना 'कृपण जगावन रत' नामका उनकी वह स्वतन्त्र मत्ना भी विनष्ट हो चुकी थी। गागयण देहममुम्भवंगा. मण-वयण काय णि दिय भवण प्रस्तुत रपरी एक ऐतिहासिक स्थान है और पहले मिर वासुण्यगुरुभायरेण, भव जलणिहि णिवडण कायरण जन धनस समृद्ध भी रहा है, किन्तु श्राज वह णीसेमव लक्वगुणालएण, मइवर मुपट्ट गामालाएगा अपनी पूर्व अवस्थामें नहीं है, मुमलमान राजाओंक विणएणभणिउजाडविपाणि, भत्तिएकइमिरिहरुभव्यपाणि । अक्रमणादि के कारण अपने गौरवको खो चुका है -भविसयत्त कहा प्रशस्ति । और आज वह खण्डहगंक रूपमें परिणत हो रहा १ इह ज उणाणइ उत्तरतइत्थ । महायरि रायवद्विय है । सन् १४८७ (वि० सं० १५४४) में बहलोल पसत्थ ॥ -देखो जनसिद्धांत भा० भा०६. कि०३ १ जैन सिन्द्धात भास्कर भाग ६ कि. ३ ।

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