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किरण ८ ९]
फल
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मुंशीजी यह न चाहते थे कि हीरा उनके विवाह प्रभात होते ही वह चल दिया ! के अवसर पर वहीं रहे ! उन्होंने उसको उसके मामा एक ओर हीरा अपने गाँवको जा रहा था तो के यहाँ भेज दिया और अपने विवाहकी बात दूसरी ओर मुंशीजी बारात लिये गोमतीके घर छिपा ली!
जा रहे थे। विवाह हो गया ! गोमती लुट गई ! हीरा अपने मामाके यहाँ था । उसे यहीं पर यह उसकी आशाएँ लुट गई !! और साथ-ही-साथ हीरा बात भी ज्ञात हुई । उसे यह तो पता चल गया कि भी लुट गया !!! उसको उस दिन वृक्षके नीचेकी उसके पिताका विवाह है, लेकिन यह न पता चला बातें याद आने लगीं। कैसा स्वप्न था-मुशीजीका कि 'किससे?
विवाह होगा.""एक वर्ष बीतेगा".." हीरा और संध्याका समय था, दिनकर अपनी अन्तिम गोमती" गोमती सासकी सेवा करेगी। ओह ! किरणें अंधेरेके हाथ सौंप रहा था। हीरा ऊपर वह स्वयं ही अपनी सास बन गई ! वह अपने छतपर पड़ा नीले नभकी ओर देख रहा था। प्रियतमको अपने पुत्रके रूपमें पानेकी कल्पना भी न शायद कुछ सोचनेमें तन्मय था। उसने देखा कि, कर सकती थी ! केवल एक इच्छाने, श्राशाने. नभके विशाल वक्षपर एक तारा उग आया है। अरमानने उसे आत्महत्या करनेसे रोक लिया। वह देखते-ही-देखते एक और तारा उसीके पास निकल
चाहती थी-एक बार और हीरासे उसी वृक्षके नीचे आया । वह पड़ा २ कल्पना कर रहा था-अहा! बात करना। कितना अच्छा संसार होगा जिसमें मैं और गोमती हीरा अगले राज़ सन्ध्या समय अपने गाँव इन दोनों तारोंकी भाँति होंगे, एकाकी होंगे, दूर पहुँचा । गाँव वालोंसे पता चला कि गोमतीका होंगे इस बन्धनमय संसार से। फिर उसने देखा विवाह ....." । उसे विश्वास न हुआ, वह अपने घर कि, दोनों तारे एक दूसरेके पास आते जा रहे हैं। प्राया । बाहर चौधरीजीसे पूछा और फिर लौट वह गद्गद् हो उठा। एकाएक एक तारा नभके पड़ा ! उसका कोमल उर अपनी प्रयसीको अपनी वक्षपर एक उज्ज्वल रेखा खींचता हा विलीन हो माँके रूपमें पाकर चीत्कार कर उठा ! उसने कुछ गया। "ओह, मेरी रानी, गोमती, गोमती"ई" तरन्त और अधिक नहीं सोचा, बिना गोमतीस मिले ही हीरा चिल्ला उठा । उसका मन शकाओंसे भर उठा। आत्महत्या करली !! वह सदाके लिये उससे रुष्ट उसने सुना था जब कभी तारा टूटता हुआ दिखाई होकर चला गया !!! गोमतीने सुना-हीरा आया, दे, तो थूकना चाहिए। उसने सन्देह दूर करनेके चला गया और सदाकं लिये चला गया ! उसकी लिये वैसा ही किया। देखते-ही-देखते दूसरा तारा अन्तिम श्राशा भी निराशामें परिवर्तित हो चुकी थी। भी टूट गया। अब उससे न रहा गया, उसने अब उसे इस जगतमें रहकर करना ही क्या था ? मोचा-अवश्य ही कोई अनहोनी बात है। उसने उसने भी हीराका अनुसरण किया !! और वृद्धने घर जानेका निश्चय कर लिया।
देखा, वृद्ध-विवाहका “फल" !!!