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किरण १०-११ ]
साहित्यपरिचय और समालोचन
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यह पत्र श्रीभारत जैन महामण्डलके गत पण्डित श्रीधर्मदेव शास्त्रीने कालसी, देहरादून
| उसके प्रमुख पत्रके रूपमें प्रकट हुआ और जौनसार आदिकी पहाड़ी जनताकी सेवा करने है। श्रीभारत जैन महामण्डलके ध्येयके अनुसार इस के लिये चार वर्ष पूर्व अशोक-श्राश्रमकी स्थापना की पत्रका भी ध्येय अखण्ड जैन जागृति तथा सामाजिक थी। उसीकी यह चतुर्थवर्षीय रिपार्ट है । इस रिपोर्टसे एवं साहित्यिक समन्वय करना है जैसाकि उसके मालूम होता है कि शास्त्रीजीने उक्त आश्रमके अन्तर्गत मुखपृष्टसे विदित है । हमारे सामने पत्रका ४-५ गान्धी गुरुकुल और माता कस्तूरवा गान्धी महिला संयुक्ताङ्क है । इसमें मुख्यतः डायरेक्टरी और उसका औषधालय ये दो संस्थाएँ खोल रखी हैं और उनके महत्व बतलाकर वर्धा जिलेकी जैन डायरेक्टरी द्वारा पहाड़ी जनताको शिक्षित, सुसंस्कृत और उन्नत दीगई है, जिसमें वर्धा जिले भरकी तीनों तहसीलोंका बना रहे हैं । हम उनके इस पवित्र सेवाकार्यकी गणनादिके साथ परिचय कराया गया है । कामना है. मुक्तकण्ठसे प्रशंसा करते हुए उसकी प्रगतिकामना पत्र अपने उद्देश्यमें सफल हो।
करते हैं। ८-नया जीवन-प्रधान सम्पादक, श्रीकन्हैया- ११-लोक-जीवन (मासिक)-सम्पादक, श्री लाल मिश्र 'प्रभाकर' । प्रकाशक, विकाम लिमिटेड यशपाल जैन बी० ए०, एल-एल० बी० । संरक्षक, सहारनपुर । मूल्य, इस संख्याका बारह आना और श्रीजनेन्द्रकुमार । वाषिक मूल्य ६) । प्राप्तिस्थान, बारह संख्याओं (१०८० पृष्ठ)का एक साथ ५०) रु०। 'लोकजीवन' कार्यालय ७/८ दरियागञ्ज, दिल्ली। __ प्रभाकर जीकी चुभती लग्बनीस पाठक परिचत जैसाकि पत्रकं नामसे प्रकट है, यह लोकके हैं, उन्हीं के प्रधान सम्पादकत्वमें यह मासिक पत्र नैतिक जीवन के अध्युदयका प्रदर्शक मासिक पत्र है। हालमें प्रकट हुआ है, जिसका हमारे सामने दूसरा हमारे समक्ष वर्ष दोका दूसरा अङ्क है। इसमें अल है। इसमें साहित्यिक, समाज सुधारक और विख्यात उत्तम लेखोंका चयन है। एक परिचय दशकी वर्तमान दशाके प्रदर्शक है, पठनीय लेखोंका लेख तो बिल्कुल अनावश्यक है उसका सर्वसाधारण अच्छा सुन्दर संग्रह है । सफाई-छपाई भी अच्छी है। के लिये कोई उपयोग नहीं है। प्रमी अभिनन्दन
९-तरुण जैन-सम्पादक, भंवरलाल सिंधी व ग्रन्थकं यशस्वी सम्पादक बा० यशपालजीके सम्पाचन्दनमल भूतांडिया । मूल्य, ५) । प्राप्तिस्थान, दकत्वमें अब प्रकट हुआ है इसलिये आशा है कि 'तरुण जैन' ३, कामशियल विल्डिङ्गस, कलकत्ता। यह अपने उद्देश्यमें अवश्य सफल होगा। हमारी ___ तरुण जैन सङ्घ कलकत्ताका यह मामिक प्रमुग्न शुभ कामना है। पत्र है । इसमें जहाँ सुधार और अालोचनाकी १२-आत्म-धमे (मामिक पत्र)-सम्पादक श्री तीक्ष्णता है वहाँ व्यर्थकी छींटाकशी और पक्षकी भी रामजी माणकचन्द दोशी, वकील, प्रकाशक कमी नहीं है। हम चाहते हैं कि पत्र निप्पक्ष और श्रीजमनादास माणेकचन्द रवाणी, आत्मधर्म कार्याश्रनाक्षेपकी भाषामें जैन सामाजिक सुधारों और लय मांटा आँकडिया, काठियावाड, वार्षिक मूल्य ३) श्रालोचनाओंको प्रस्तुत करे । इमसे उसका क्षेत्र यह अध्यात्मका उच्चकोटिका मासिक पत्र है। व्याप्य न रहकर व्यापक बन सकता है। हम उसकी इसमें पूज्य कानजी स्वामीके अध्यात्मिक प्रवचनोंका इस दिशामें सफलता चाहते हैं ।
मंग्रह रहता है । जो लोग विद्वत्परिपके गत १०-अशोक-आश्रमका चतुर्थ वार्पिक विवरण अधिवेशनमें सुवर्णपुरी गये थे उन्हें मालूम है कि -प्रकाशक, श्रीधर्मदेव शास्त्री । व्यवस्थापक, अशोक- वहाँका साग वातावरण कितना आध्यात्मिक और श्राश्रम, कालसी, देहरादून ।
शान्त है। उसी वातावरणकी उद्दीप्त रश्मियाँ इस पत्र