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अनेकान्त
[ वर्ष ८
१ तेरह काठिया सज्झाय गा० १६
३ तेरह काठियोंकी १४ ढालें (शा० १४९) विशुद्ध२ तेरह काठिया मज्झाय गा० ७महिमाप्रभसरि विमल सं० १८०-मि-भु.३ पालणपुर
(प्र०१ विद्याशाला प्रकाशित सज्झायमाला (प्र० १ भीमसी माणिक प्रकाशित सज्झाय
पृ. १४९ नं०१ माला आ० १ तृ० ७७ । २०२
४ (प्र० १ हमारे मंप्रहमें अपूर्ण (प्रथमपत्र) प्र० २ बालाभाइ म. जैन सज्झायमालामें ५ तेरह काठिया नामक हिन्दी पुस्तक प्रकाशक
नं० १-२-३ तीनों प्रकाशित हैं) काशीनाथ जैन ।
साहित्य-परिचय और समालोचन
आत्मसमर्पण ( पौराणिक कहानियाँ -लेखक सुप्रसिद्ध माहित्यिक श्रीरायकृष्णदामजीके प्राककथन श्री बालचन्द्र जैन विशारद, एम. ए. (फाइनल)
काशी हिन्द विश्वविद्यालयकं प्रो० पं० पद्मनारायण साहित्यशास्त्री । प्रकाशक, हिन्दी-प्रकाशन-भवन,
आचाय और म्याद्वाद महाविद्यालय काशीक प्रधानाबाँम-फाटक, बनारस । मूल्य, ११॥) । प्राप्तिस्थान,
ध्यापक पं. कैलाशचन्द्रजी सिद्धान्त शास्त्रीके अभिजैन साहित्य-सदन, भदेनीघाट, काशी।।
मतों तथा पं० फूलचन्द्र जी सिद्धान्तशात्रीक दाशब्द' यह पुस्तक अभी हालमें ही तिलक दिवसपर
वक्तव्यास पुस्तककी महत्ता, गौरव और लोकप्रकट हुई है । इसमें लखकन पन्द्रह पौराणिक सम्मान प्रकट है । लेखकक 'अपना बात' में लिखे कथाओंको आधुनिक कहानियाँक ढङसे सरल और निम्न शब्द किसी भी महदय व्यक्तिको ठेस पहुँचाय रोचक भाषाम चित्रित किया है। प्रत्येक कहानीम बिना नहीं रह सकते। वे लिखते हैं-कहानियाँके लेखककी प्रतिभा और कलाके दर्शन होते हैं। सबसे लिखे जानका शुद्ध प्रयोजन थाडेसे चाँदीके टुकड़ोंबड़ी विशेषता यह है कि लेखकने अपने सिद्धान्त की प्रत्याशा थी जा मेरे अध्ययनमें सहायक बन
और दशनका बडी कशलनासं प्रदर्शन किया है। जात । पर हाय र अभाग ! तृ यहाँ भी मचल पडा. 'आत्मसमपण' कहानीम जब राजल गिरनारपर पूरे वर्ष पुस्तककी प्रेस कापी भारतीय ज्ञानपीठमें पड़ी पहचकर भगवान नमिनाथसं दीक्षा लकर तप करती रही, पर अन्तम मुझे टकसा जवाब मिला।' हैं उस समयका लेखकने कितने सुन्दर ढङ्गस इन शब्दोंको पढ़कर किमका हृदय नहीं सैद्धान्तिक चित्र ग्वींचा है.---उनकी वे पंक्तियाँ ये है- पसीजेगा । साहित्यिक संस्थाओं को अपनी इस
"गिरनारके शिखरपर दो तपस्वी साधनारत थे। अशोभनीय मनोवृत्तिका परित्याग करना चाहिये एक ओर निर्वस्त्र नेमिकुमार और दूसरी ओर श्वेत- और उन्हें श्रीबालचन्द्रजी जैसे होनहार प्रतिभाशाली वरधारिणी आयिका राजल।"
नवादीयमान लेखकोंका अभिवादन और स्वागत सारी पुस्तक जहां कलापूर्ण है वहाँ नीति, करते हुए प्रोत्साहन देना चाहिये । हम इस उदीयसिद्धान्त, सुधार, शिक्षा और लोक-रुचिस भी परि- मान होनहार कहानी लेखकका अभिवादन करते हैं। पूर्ण है । भारत कलाभवन काशाके क्यूरेटर और उनकी यह ऋति हिन्दी साहित्य मंमार गौरव पृण काशी नागरी प्रचारिणा सभाकं भूतपूर्व मन्त्री स्थान प्राप्त करंगी, एमी आशा एव शुभकामना करते