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अनेकान्त
जीवन परिचय दिया है । यह ग्रन्थ दस सन्धियोंमें समाप्त हुआ है । यह ग्रन्थ टोडा-दूची (जयपुर) के शास्त्र भण्डारमें मौजूद हैं | इसकी रचना जैसवालवंशी साहु नेमिचन्द्रकी प्रेरणा से हुई है । नेमिचन्द्रके पिताका नाम ' नरवर' और माताका नाम 'सोमा' देवी था । ग्रन्थके निम्न उल्लेख से मालूम होता है कि कवि श्रीधरने वर्धमानकाव्य से पूर्व दो ग्रन्थ और अपभ्रंश भाषा में बनाये थे - चन्द्रप्रभचरित और शान्तिनाथचरित' । इन ग्रन्थोंके अन्वेषण करने की आवश्यकता है । ग्रन्थ अन्तिम ७ पत्र नहीं मिलने के कारण ग्रन्थका रचनाकाल मालूम नहीं हो सका ।
(७) सातवें श्रीधर वे हैं, जिन्होंने अपभ्रंश भाषा में भविष्यदत्त पञ्चमी कथाकी रचना की है । यह ग्रन्थ चन्द्रवाडनगर में स्थित माहुर ( माथुर )
रत्नकरण्डक - टीकाकार प्रभाचन्द्रका समय
( लेखक - न्यायाचार्य पं० दरबारीलाल जैन, कोटिया)
स्वामी समन्तभद्र विरचित रत्नकरण्डकश्रावकावारपर एक संस्कृत टीका पाई जाती है जो माणिक चन्द्र दि० जैन ग्रन्थमाला बम्बई से श्रीमान् पं० जुगलकिशोरजी मुख्तार की महत्वपूर्ण प्रस्तावना एवं 'स्वामी समन्तभद्र' इतिहासके साथ प्रकट भी हो चुकी है । इस टीका में उसके कर्ताने अपना नाम प्रभाचन्द्र व प्रभेन्दु दिया है । अतः यह टीका आमतौरपर १ जिह विरइउ चरिउ दुहोहवारि, संसारुब्भव संतावहारि । चंदप्पह संति जिसराह, भव्वयण-सरोज-दियेसराह । तिवइ विरयहि वीर हो जिग्गासु, समण्या दिट्ठकं चतिगामु
- वर्धमान चरित २ 'रत्नकरण्डक-विषमपद व्याख्यान' नामका एक संस्कृतटिप्पण भी इस ग्रन्थपर उपलब्ध होता है जो चाराके जैन सिद्धान्त भवनमें मौजूद है ।
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कुलीन और नारायणके पुत्र सुपट्टसाहुकी प्रेरणा से बनवाया गया है । इनके ज्येष्ठ भ्राताका नाम वासुदेव था' । प्रस्तुत ग्रन्थ उक्त साहुनारायणकी धर्मपत्नी 'रूपिणी' के नामाङ्कित किया गया है। इसका रचनाकाल वि० सं० १५३० है अर्थात् १६वीं शताब्दी के पूर्वाधमें बना है । अतः ये श्रीधर सबसे बादके विद्वान मालूम होते हैं । इन्होंने और किन ग्रन्थोंकी रचना की यह कुछ मालूम नहीं होता, बहुत सम्भव है कि नं० ६ और ७ के विद्वान् श्रीधर एक ही हों; इस विषय में अनुसन्धान होने की जरूरत है ।
इस प्रकार श्रीधर नामके सात विद्वानोंका यह संक्षिप्त परिचय है । आशा है अन्वेषक विद्वान् इनके सम्बन्ध में विशेष बातोंको प्रकाशमें लायेंगे । वीर सेवामन्दिर,
ता० १८१०४७
प्रभाचन्द्र कर्तृ के तो मानी जाती है; परन्तु प्रभाचन्द्र नामके धारक अनेक विद्वान हुए हैं और इस लिये विचारणीय है कि यह किन प्रभाचन्द्रकृत हैं और उनका समय क्या है ?
इस सम्बन्ध में मुख्तार साहबने अपनी उक्त ग्रन्थकी प्रस्तावना ( पृ० ५३- ८२ ) में यह विचार प्रकट किया था कि यह टीका प्रमेयकमलमात्तण्ड आदि प्रसिद्ध तर्क-ग्रन्थोंके कर्ताकी कृति मालूम नहीं होती, १सिरिचंदवारण्यरद्विरण, जिग्धम्मक रण्डक्कट्टिए । माहुरकुलनयगतमीहरे, विबुध्यसुयण मण्धहरे णारायणदेहसमुब्भवेणु, मण्यकारिदियभवेण । सिरिवामुएवगुरुभायरेण भवजलगि हिणिवडणकायरेश् णीसेंसबलक्ग्वगुग्णालए,
मइवर सुपट्टणामालए। - भविष्यदत्त पंचमी कथा