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arrierमन्दिरके नये प्रकाशन
१ अनित्यभावना- मुख्तार श्री जुगलकिशोरके हिन्दी पद्यानुवाद और भावार्थ सहित इष्टवियोगादिके कारण कैसा ही शोकसन्तप्त हृदय क्यों न हो, इसको एक बार पढ़ लेनेसे बड़ी ही शान्तताको प्राप्त हो जाता है । इसके पाठ से उदासीनता तथा खेद दूर होकर चित्तमें प्रसन्नता और सरसता श्राजाती है। सर्वत्र प्रचारके योग्य है । मू० ।)
२ त आचार्य प्रभावका नया प्राप्त संक्षिप्त सूत्रग्रन्थ, मुख्तार श्रीजुगलकिशोर की सानुवाद व्याख्या सहित । मू०|)
३ सत्माधु - स्मरणमङ्गलपाठ- -मुख्तार श्री जुगलकिशोरकी अनेक प्राचीन पद्योंको लेकर नई योजना सुन्दर हृदयग्राही अनुवादादि सहित । इसमें श्रीवीर वर्द्धमान और उनके मादके जिनसेनाचार्य पर्यन्त, २१ महान् श्राचायोंके अनेकों श्राचार्यों तथा विद्वानों द्वारा किये गये महत्वके १३६ पुण्य स्मरणोंका संग्रह है और शुरू में १ लोकमंगल कामना, २ नित्यकी श्रात्म प्रार्थना, २ साधुवेश निदर्शक - जिनस्तुति, ४ परमसाधुमुखमुद्रा और ५ सत्साधुवन्दन नामके पाँच प्रकरण हैं । पुस्तक पढ़ते समय बड़े ही सुन्दर पवित्र विचार उत्पन्न होते हैं और साथ ही प्राचार्यों का कितना ही इतिहास सामने श्राजाता है, नित्य पाठ करने योग्य है । मू० II)
Regd. No. A- 736.
अध्यात्म-मनमाड यह पश्चाध्यायी तथा लाटीसंहिता आदि ग्रन्थोंके कर्ता कविवर राजमल्लकी पूर्व रचना है। इसमें अध्यात्मसमुद्रको कूजेगें बन्द किया गया है । साथमें न्यायाचार्य पं. दरबारीलाल कोठिया श्रीर परिवत परमानन्द शास्त्रीका सुन्दर अनुवाद, विस्तृत विषयसूची तथा मुख्तार श्रीजुगलकिशोरकी लगभग ८० पेजकी महत्वपूर्ण प्रस्तावना है । बड़ा ही उपयोगी ग्रन्थ है। मू० १||)
६ न्याय दीपिका (महत्वका नया संस्करण) - न्यायाचार्य पं० दरबारीलालजी कोठिया द्वारा सम्पादित और अनुवादित न्याय - दीपिकाका यह विशिष्ट संस्करण अपनी खास विशेषता रखता है। अब तक प्रकाशित संस्करणोंमें जो अशुद्धियाँ चली रही थीं उनके प्राचीन प्रतियपरसे संशोधनको लिये हुए यह संस्करण मूलग्रन्थ और उनके हिन्दी अनुवाद के साथ प्राक्कथन, सम्पादकीय १०१ पृष्ठकी विस्तृत प्रस्तावना, विषयसूची और कोई ८ परिशिष्टोंसे सङ्कलित है, साथमें सम्पादक द्वारा नवनिर्मित 'काशाख्य' नामका एक संस्कृत टिप्पण लगा हुआ है, जो ग्रन्थगत कठिन शब्दों तथा विषयोंका खुलासा करता हुआ विद्यार्थियों तथा कितने ही विद्वानोंके कामकी चीज़ है। लगभग ४०० पृष्ठोंके इस सजिल्द बृहत्संस्करणका लागत मूल्य ५) रु० है । कागजकी कमी के कारण थोड़ी ही प्रतियाँ छपी हैं। अतः इन्दुकोंको शौभ ही मँगा लेना चाहिये।
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५ लेखक पं० जुगलकिशोर मुख्तार हाल में प्रकाशित चतुर्थं संस्करण ।
यह पुस्तक हिन्दी साहित्यमें अपने ढंगकी एक ही चीज है। इसमें विवाद जैसे महत्वपूर्ण विषयका बड़ा ही मार्मिक और तात्विक विवेचन किया गया है, अनेक विरोधी विधि-विधानों एवं विचार-प्रवृत्तियो से उत्पन्न हुई विवाह की कठिन और जटिल समस्याओं की बड़ी युक्ति साथ दृष्टि स्पष्टीकरण द्वारा सुलभाया गया है और इस तरह उनमें दृष्टिविरोधका परिहार किया गया है। विवाह क्यों किया जाता है ? उसकी असली गरज श्रीर सैद्धान्तिक स्थिति क्या है ? धर्मसे, समाजसे और गृहस्था भ्रमसे उसका क्या सम्बंध है ? वह कब किया जाना चाहिये ? उसके लिये वर्ण और जातिका क्या नियम हो सकता है ? विवाह न करनेसे क्या कुछ हानि-लाभ होता है ? इत्यादि बातों का इस पुस्तकका बड़ा ही युक्तिपुरस्सर एवं हृदयग्राही वर्णन है । मू०|)
५ उसास्यामि श्रावकाचार परीक्षा मुख्तार श्रीजुगलकिशोरजीकी ग्रन्थपरीक्षाओं का प्रथम अंश, ग्रन्थ- परीक्षाओं के इतिहासको लिये हुए १४ पेजकी नई प्रस्तावना सहित । मू० 1)
प्रकाशनभिनाना---
atriaraन्दिर, सरसावा (सहारनपुर)
मुद्रक, प्रकाशक पं० परमानन्द शास्त्री समावाद लिये, आसाराम खत्री द्वारा रोयल प्रेस, सहारनपुर में मुद्रित