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* ॐ अहम् *
विश्वतत्त्व-प्रकाशक
वार्षिक मूल्य ४)
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इस किरणका मूल्य ।।।)
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नीतिविरोधवसीलोकव्यवहारवर्नकसम्यक परमागरची भुदनेकपाजयत्यनेकान्तः
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वर्ष किरण ८ ९
वीरमवान्दिर (मम-तभद्राश्रम) सरमावा जिला सहारनपुर जनवरी-फर्वरी माघ फाल्गण शुक्ल, वीरनिवाण सं०२४७३, विक्रम सं० २००३ ।।
समन्तभद्र-भारतीके कुछ नमूने
युक्त्यनुशासन
तथा न तत्कारण-कार्य-भावो निरन्वयाः केन समानरूपाः ? ।
असत्खपुष्पं न हि हेत्वपेक्षं दृष्ट न सिद्धथत्युभयोरसिद्धम् ।।१२।।
(जिम प्रकार सन्तानभिन्न चित्तम वासना नहीं बन सकती) उमी प्रकार सन्तानभिन्न चित्तोंमें कारण-काय-भाव भी नहीं बन सकता--मन्तानभिन्न चिनांम भी कारण-कार्य-भाव माननेपर देवदत्त और जिनदत्तके चित्तीम भी कारण-कार्य-भावके प्रवर्तित होनता प्रसङ्ग आएगा, जो न तो दृष्ट है और न बौद्धोंके द्वारा इष्ट है।'
(यदि यह कहा जाय कि एक सन्तानवी समानरूप चित्तक्षणांक ही कारण-कार्य-भाव होता है, भिन्नमन्तानवर्ती असमानरुण चिनक्षणों के कारण-कार्य-भाव नहीं होता, तो यह कहना भी ठीक नहीं है: क्योंकि) जो चित्त-क्षा क्षणविनश्वर निरन्वय (सन्तान-परम्परासे रहित) माने गये हैं उन्हें किमके साथ समानम्प कहा जाय ?--किमी भी स्वभावके माथ वे ममानरूप नहीं है, और इलिये उनमें कारण-कायभाव घटित नहीं हो सकता। मत्स्वभाव अथवा चित्स्वभावकै माथ ममानम्प माननेपर भिन्नमन्तानवी देवदत्त और जिनदत्तक चित्त-क्षण भी मत्स्वभाव और चित्स्वभावकी दृष्टिने परम्परमें कोई विशेष न रखनेक कारण समानम्प ठहरेंगे और उनमें कारण-काय-भावकी उक्त आपत्ति बदस्तुर बनी रहेगी।'