Book Title: Anekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 431
________________ किरण १२ ] सम्पादकीय वक्तव्य ४७१ में मुझे पत्रका बन्द कर देना तक इष्ट था। परन्तु चार्य, पं० दरबारीलालजी न्यायाचार्य, प० कैलाशचन्द्र जनों तथा मित्रोंका अनुरोध हा कि पत्रको जी शास्त्री, प० परमानन्द जी शास्त्री, प्रो० हीरालाल बन्द न करके बराबर जारी रखना चाहिये और जी एम० ए०, बाबू ज्योतिप्रसादजी एम० ए०, उधर श्रीवास्तव प्रेमकी ओरसे यह आश्वासन मिला श्रीकस्तूरसावजी बी.ए., डा.ए.एन. उपाध्याय एम.ए., कि 'अब हम जितने फार्मोंका कोई अङ्क होगा उसे श्री अगरचंदजी नाहटा, श्री भंवरलालजी नाहटा, उससे दगने अथवा अधिकसे अधिक ढाई गने दिनों आचाय बलदेवजी उपाध्याय एम० ए०, बाबू राजमें छापकर जरूर दे दिया करेंगे। इसी अनुगंध तथा कुमारजी, बाबू पन्नालालजी अग्रवाल, पं० बालचंद आश्वासनके बलपर आठवें वर्षका प्रारम्भ किया जी बी० एक, पं० के० भुजबलीजी शास्त्री, बाबू दशगया था । आठवें वर्षका प्रारम्भ करते हुए रथलाल जी कौशल, श्रीप्रफुल्लकुमारजी मादी एम. ए., कोई लच्छेदार बातें नहीं बनाई गई, न ऐसी बातोंके श्रीदौलतरामजी 'मित्र', पं० काशीरामजी शर्मा, द्वारा ग्राहक बनाने का कोई यत्न ही किया गया और पं० इन्द्रजीतजी, पं० रतनचंदजी मुख्तार, पण्डित न ऐसा कभी हुआ है कि ४-६ अङ्क निकालकर ही अजितकुमारजी शास्त्री, बाबू जयभगवानजी बी. ए., चन्दा खतम कर दिया गया हो। हमेशा यह ध्यान वकील और साहित्याचाय पं० राजकुमारजीकं नाम रक्खा जाता है कि ग्राहक मैटरकी दृष्टिस टोटमें न खासतौरसे उल्लेखनीय हैं। आशा है भविष्यम रहे और मैटर भी प्रायः स्थायी महत्वका होता है- अनकान्तको और भी मुलेखोंका सहयोग प्राप्त होगा सायिक समाचारों श्रादिक कपमं अस्थायी नहीं. और सभीक सहयागसे यह पत्र ऊँचा उठकर लाकजो पढ़कर फेंक दिया जाय अथवा विलम्बसे पहुँचने हितकी साधना-द्वारा अपने ध्येयको पूरा करने के कारण फीका, बासी या श्री-हीन होजाय। चुनांचे समथ होसकेगा। पिछले वर्षम मरकारी प्रतिबन्धोंके कारण यदि २२८ अब मैं उन सजनोंका भी खासतौरस अाभार पृष्ठका और उससे पहले छठे वर्षमें, जब कोई खाम प्रकट करता हूं और उन्हें धन्यवाद देता हूं जिन्हान प्रतिबन्ध नहीं था, ३८६ पृष्ठका मैटर ग्राहकोंका दिया इस वर्ष समय समयपर अनेकान्तको आर्थिक महागया तब इस वर्ष वह ४७२ पृष्टका दिया गया है यता भेजी तथा भिजवाई है और जिनके नाम और मैटर भी पहले के ममान उपयोगी तथा स्थायी अनेकान्तमें प्रकट होत रहे हैं। उनमें बाब नन्दलालजी महत्वका रहा है । साथ 1, मूल्य भा वहा गत वर्षों जैन कलकत्ता और उनक पुत्र बाबू शान्तिनाथजी वाला ४) का ही रहने दिया गया है; जबकि कागज तथा बाबू निमलकुमारजी, रायबहादुर हुलामरायजी और छपाइकी मंहगाइक कारण प्रायः सभी पत्रांका सहारनपुर, बाबू नेमचंद बालचंदजी उस्मानाबाद, मूल्य बढ़ गया अथवा आकार घट गया है । इमसे संठ गुलाबचंदजी टोंग्या इंदौर, श्रीमंत सेठ लक्ष्मीस्पष्ट है कि मैटरकी दृष्टिसे इम वपके ग्राहक जरा भी चदजी भिलसा, ला० रुड़ामलजी शामियाने वाले घाटेमें नहीं रहे बल्कि पिछले वर्षों की अपेक्षा लाभ सहारनपुर, ला० उदयराम जिनश्वरदासजी सहारनमें ही अधिक रहे हैं । अस्तु ।। पुर, ला० फेमल चतरसेनजी, मालिक वीरस्वदेशी वर्षकी समाप्तिक इस अवसरपर मैं अपने उन भण्डार सरधना और ला० प्रकाशचंदजी नानौताके विद्वान् बन्धुओंका धन्यवाद किये बिना नहीं रह नाम विशेष उल्लेखनीय है । सकता जिन्होंने अपने अच्छे अच्छे लेखों द्वारा इस इस वर्पके सम्पादन-कार्यमें मुझसे जो कोई भूलें पत्रकी सेवा की है और इसे उन्नत, उपादय तथा हुई हो अथवा सम्पादकीय कर्तव्यके अनुरोधवश स्मरणीय बनानमें मेरा हाथ बटाया है। उन सज्जनों किये गये मेरे किसी कार्य-व्यवहारसे या स्वतंत्र लेखमें मुनिकान्तिसागरजी, पं० वंशीधरजी व्याकरणा- से किमी भाईको कुछ चा हो तो उसके लिये

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