Book Title: Anekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 435
________________ श्रीजुगलकिशोर मुख्तार-सम्पादित अनेकान्तके आठवें वर्षकी विषय-सूची विषय और लेखक पृष्ठ विषय और लेग्वक ? अतिशय क्षेत्र चन्द्रवाड-[पं. परमानन्द शास्त्री ३४५ क्या खाक वसन्त मनाऊँ मैं ?—(कविता) अदृष्टवाद और होनहार- [श्रीदौलतराम 'मित्र' १९२ [पं. काशीराम शर्मा 'प्रफुल्लित' अपभ्रंश भाषाका जैन कथा-साहित्य-[पं० क्या तीर्थकर प्रकृति चौथे भवमें तीर्थकर बनाती परमानन्द जैन शास्त्री .... २७३ है ? -[बा. रतनचन्द मुख्तार .... अमृतचन्द्रमूरिका ममय [प० परमानन्द शास्त्री १७३ क्या मथुरा जम्बूस्वामीका निर्वाणस्थान है ?अहिमा और मामाहार-[प्रिम्प एक चक्रवर्ती १४८ पं० परमानन्द जैन, शास्त्री ..... ६५ आचार्य अनन्तवीर्य और उनकी सिद्धिविनि- खजुराहाके मन्दिरोंसे (कविता)-[श्रीइकबाल श्चयटीका-[न्यायाचार्य पं० दरबारीलाल २ बहादुर प्राचार्य माणिक्यनन्दिकं समयपर अभिनव गदर में पूर्वकी लिखी हुई ५३ वर्षकी 'जंतरी प्रकाश- [न्या. पं. दरबारीलाल जैन ३४९, ३७४ खाम'-[सम्पादक ... .... १० आत्मविश्वास हो सफलताका मल है- गोम्मटमार और नमिचन्द्र-[सम्पादक ३०१ [श्रीअखिलानन्द म्पराम शास्त्री ... १३८ ग्रन्थ और ग्रन्थकार (मृलाचार और कार्तिकेआत्मानुशासनका एक मन्दिग्ध पद्य- यानुप्रक्षा)-[सम्पादक [श्रीलक्ष्मीनारायण जैन . २५ चारित्र्यका अाधार [श्रीकाका कालेलकर २६३ आधुनिक भाषाओंकी व्युत्पत्तिके लिये जैन चित्तौड़के जैन कीर्तिम्तम्भका निर्माणकाल एवं माहित्यका महत्व-बा. ज्यातिप्रसाद एम.ए. ०२५ निर्माता-[श्रीअगरचन्द नाहटा .... १३९ श्राधुनिक माहित्यमें प्रगनि क्योंकर हो ?- जमलमके भंडागम प्राप्त कर नवीन ताडपत्रीय [मुनि कांतिसागर प्रतियाँ-श्रीअगरचन्द भवरलाल नाहटा ४४ आध्यात्मिक पद्य-[कविवर दानतराय १३२ जैन - गुण - दपण (कविता)-[जुगलकिशोर एक ऐतिहासिक अन्तः साम्प्रदायिक निर्णय -- मुख्तार 'युगवीर' ... [बा. ज्यातिप्रमाद जैन, एम. ए. १६९ जैनधर्मम वणव्यवस्था कर्मम ही है, जन्मस एक प्राचीन ताम्र-शासन-[सम्पादक ८५ ___ नहीं- [पं. इन्द्रजीन जैन, न्यायतीर्थ, शास्त्री २०५ ऐतिहासिक घटनाओंका एक संग्रह[सम्पादक ३६९ जैनवाङमयका प्रथमानुयोग-[बा. ज्योतिकविवर लक्ष्मण और जिनदत्तचरित-[ पं ग प्रमाद जैन, एम. .. १६६ परमानन्द जैन शास्त्री ४.० जैन मरम्वती [वा. ज्यातिप्रमाद जैन, कविवर बनारसीदाम और उनके ग्रन्थांकी एम. ए., ए.एल. बी. ६१ हस्तलिखित प्रतियाँ-[मुनि कान्तिमागर ४०२ जैनमस्कृतिकी सातत्त्व और पद्व्यव्यवस्थाकायरता घोर पाप है-[श्रीअयोध्याप्रमाद ५७ पर प्रकाश [पं.वशीधर जैन, व्याकरणाचार्य १८० कौनसा कुण्डलगिरि सिद्धक्षेत्र है ?--[न्याया- जैनमस्कृति-मशोधन-मण्डलपर अभिप्राय चार्य पं. दरबारीलाल जैन, कोठिया .... ११५,१६२ [पं० दरबारीलाल जैन

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