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किरण १२ ]
श्रीधर या विवुध श्रीधर नामके विद्वान्
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कुमारकी पत्नीका नाम 'पद्मा' था उससे चार पुत्र साहु लक्ष्मणकी प्रेरणासे रचा गया है जैसा कि उसके उत्पन्न हुए थे, पाल्हणु, साल्हगु, बल्लं या बालचन्द्र निम्न पद्योंसे प्रकट है:और सुप्रभ' । ग्रन्थगत चरित भाग बड़ा ही श्रीमद्वदोमयतायां [?] स्थितेन नयशालिना। (३) तीसरे श्रीधर वे हैं जिनकी रची हुई भविष्यदत्त
__ श्रीलंबक चुकाऽन्क-नभोभूषण-भानुना ॥९॥ पञ्चमीकथा है जो संस्कृतमं रची गई है। यदपि ग्रन्थमें प्रसिद्धसाधुधामेकदनुजेन दयावता। कवि श्रीधरने अपना कोई परिचय नहीं दिया और प्रवरोपासकाचार - विचाराहित - चेतसा ॥१०॥ न उसका रचनाकाल ही दिया है जिससे यह कहना गुरुदेवाऽर्चना-दान-ध्यानाध्ययन-कर्मणा । कठिन है कि इस भविष्यदत्तपञ्चमीकथाके कत्ता साधना लक्ष्मणाख्येन प्रेरितो भक्तिसंयुतः॥११॥ कवि श्रीधर कब हुए हैं और उनके गुरुका क्या नाम था ? हाँ, उपलब्ध ग्रन्थकी प्रतिपरसे इतना जरूर तदहं शक्तितो वक्ष्ये चरितं दुरितापहं । कहा जा सकता है कि इस ग्रन्थकी रचना विक्रमकी श्रीमद्भविष्यदत्तस्य कमलश्रीतनुभुवः ॥१२॥ १५वीं शताब्दीक उत्तराधसे पूर्व हाचुका था; क्याकि (४) चौथे कवि श्रीधर वे है जिनका रचा हा उक्त ग्रन्थकी एक प्रति वि० मं० १४८६की लिखवाई 'नानार्थमुक्तावली' कोप है जिसे 'विश्वलोचनकोष' हुई मौजूद है । प्रस्तुत ग्रन्थ लम्बकंचुक कुल के प्रसिद्ध भी कहते हैं। यह ग्रन्थ हिन्दी-टीका साथ मुद्रित १मिरि पुरवाड बंम मंडणचंधउ,णि यगुणणियराणंदियवंधउ होचुका है। ग्रन्थकर्ता सेनवंशकं विद्वान थे और गुरुभत्तिए परमिय मणीमा, णाम माह रजग्ग बणीमरु। इनक गुरुका नाम मुनिसन था। इन्हनि कवि नागेन्द्र नहीं गल्हा णामंग पियारी, गहिणि मगइच्छिय सहयारी। और अमरसिह आदिके कोपांका सार लेकर उक्त पविमल मीलाहरण बिहमिय, मुहि सजग बुद्दयाहं पसंमिय। ग्रन्थकी रचना की है। ये श्रीधर कब हए हैं यह अभी ताह तणुरुहु पीथ जायउ, जगमुहयरु महियले विक्वायउ। विचारणीय है, लेकिन यह श्रीधर उक्त तीनों श्रीधर अवतु महिंदे बुच्चा बीय उ, बुह्यण,मणहरु तिक्कउ तइयउ।
नामक विद्वानोंसे भिन्न जान पड़ते हैं। जल्हणुणामणि उन उत्थउ, पुणविसलकवणु दाण ममत्थउ (५) पाँचव श्रीधर वे है जिन्होंने श्रुतावतारकी छउ सुउ संपुरण हुग्रहु जह, ममुदपालु मत्तमउभाउ तह। रचना की है। य श्रीधर कब हुए और उनकी गुरु अहमु सुर ण्यपाल समामिउ,विराणाइय गुगागाह विहसिय परम्परा क्या है ? यह सब विचारणीय है । इस पदमही पियणामेण सलकवणु,लक्वण कलिय सरीरवियकवण श्रुतावतारके वणनाम कितनी ही ऐतिहासिक टियाँ ताह कुमार गामण तणुमहु, जायउ मुह पह पहम सरीरुह। पाई जाती है जो अनुसन्धानपरम ठीक नहीं उतरती। विण्य बिहमण भूमिट गत्तर,महियाल मय मिच्छत्त-परिचत्तर यह ग्रन्थ माणिकचन्द ग्रन्थमालाक अन्तर्गत सिद्धान्तघत्ता-णाण अवरु बीयउ पक युमरहा हय वर गहिणि। सारादिसंग्रह प्रकाशित होचुका है। पउमा भगिया मुअणहिं गणिय जिणमययर गहिगि ॥१६
(६) छठवें श्रीधर वे है जिन्होंने अपभ्रंशभापामें तहे पाल्हणु णामण पायउ, पढम्पत्त णं व्मयण सत्तवर। वधमानकाव्यकी रचना की है। प्रस्तुत ग्रन्थमें कवि बीय उमाल्हणु जो जिणु पुजइ, जमु रुवेण ण मगाहरू पुजइ।
ने जैनियोंके अन्तिम तीर्थकर भगवान महावीरका
न तइयउ बले भरिण वि जाणिजइ, बंधव सयहिं सम्माणिजह । पुष्करगयो प्राचार्य श्रीसहस्रकीर्तिदेवास्तप्रदं प्राचार्य श्री तुरियउ जायउ सूपहु णाम, णावह गियर दरसिउ कामें। गुणकीतिदेवास्तच्छिण्य श्री यशःकातिदेवास्तन निजज्ञाना
सुकुमाल चरित प्रशस्ति वरगीकर्मक्षयार्थ इदं भविष्यदान पंचमीकथा लिखापितं ।" २"संवत् १४८६ वर्षे आपाट बदि ७ गुरु दिने गोपाचलदुर्ग (यह लेखक पुष्पिका नया मन्दिर धर्मपुरा देहलीके राजा इंगर मीह राज्य प्रवर्तमाने श्रीकाष्ठासंघ माथुरान्वये शास्त्रभंडारकी जीर्ग प्रतिकी है।)