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किरण १२ ]
हुए थे । इनकी माताका नाम 'वील्हा' देवी और पिताका नाम 'बुध गोल्ह' था' । उक्त कविने इससे अधिक और अपना परिचय देने की कृपा नहीं की, जिससे उनके सम्बन्धमें विशेष विचार किया जा सके। साथ ही, यह भी मालूम हो सके कि उनके गुरु कौन थे ? इनकी एक मात्र कृति 'पार्श्वनाथ चरित्र' उपलब्ध हैं, जिससे मालूम होता है कि कविने 'चन्द्रप्रभु चरित्र' नामका एक ग्रन्थ और भी बनाया था । इस प्रन्थ में कविने ग्रन्थ प्रणयनमें प्रेरक साहुनट्टल के परिवारका विस्तृत परिचय दिया है । साहुनल देहली (यांगिनीपुर) अथवा ढिल्लीकं निवासी थे, उस समय दिल्ली में तोमरवंशीय अनङ्गपाल तृतीयका शासन चल रहा था । यह अनङ्गपाल अपने पूर्वज दो श्रनङ्गपालोंसे भिन्न था और बड़ा प्रतापी एवं वीर था । इसने हम्मीरवारकी सहायता की थी । यह हम्मीरवीर कौन है ? और इसका अनङ्गपालके साथ क्या सम्बन्ध है ? यह कुछ ज्ञात नहीं हो सका । उस समय दिल्ली जण धनसे परिपूर्ण थी उसमें विविध जातियां के लोग सुखपूर्वक निवास करते थे। चुनांच उस समय दिल्लीके जैनियोंम प्रमुख नट्टलसाहु थे, जो व्यसनादिसे रहित श्रावककं व्रतोंका अनुष्ठान करते थे। नट्टलमाहु केवल धर्मात्मा ही नहीं थे; किन्तु उच्चकोटि के कुशल व्यापारी भी थे, और उस समय उनका व्यापार अङ्ग, वङ्ग, कलिङ्ग, कर्नाटक, १ सिरिग्रयरवालकुलसंभर्वण, जग्गी बील्हा (भ) वंगण अण्वस्य विराय पण्यारुहेणु, कदणा बुहगोल्ड-तरगुरुहरा पर्यायांवगुणभरंग, माहिं मिरिहरे
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श्रीधर या विबुध श्रीधर नामके विद्वान
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रजहिं असिवर तोडिय रिउ कवालु, गहु प्रसिद्ध अगुवालु दिल वहम्मीर वीर, वंदिया विद पचियरची | दुजर-हिय यावदिलणसीरु, दुरण्यणास्य रस- समीरु बालभर कंपावियायगड, भामिणियण मण-संजगियर उ - पार्श्वनाथ च० प्रशस्ति ये हम्मीर वीर अन्य कोई नहीं, ग्वालियर के परिहारवंश की द्वितीय शाखा के हम्मीरदेव जान पड़ते हैं जिन्होंने सं० १२१२ से १२२४ तक ग्वालियर में राज्य किया है 1
नेपाल, भोट्ट, पांचाल, चेदि, गौड़, ठक्क, केरल, मरहट्ट, भादानक, मगध, गुजर, सोरठ और हरियाना आदि देशोंमें चल रहा था। इन्हीं नट्टलसाहुकी प्रेरणा एवं अनुरोधसे कविने पार्श्वनाथ चरितकी रचना की थी । प्रस्तुत ग्रन्थका रचनाकाल वि० सं० १९८९ अगहनवदी अमी रविवार है । जैसा कि उसकी प्रशस्तिकं निम्न वाक्यसे प्रकट है:“विक्कमरिंद-सुपमिद्धकालि, दिल्ली-पट्टण-धरणकविसालि । स- वामी एयारहसएहि, परिवाडिए वरिपरिगएहिं । सिरिपासरणाहरिणम्मलचरित मयलामलग्यणोहदित्त ।
प्रस्तुत ग्रन्थका नाम 'पासनाहचरिउ ' है । इस ग्रन्थ में कविने जैनियोंक तेईसवें तीर्थङ्कर भगवान पार्श्वनाथ का जीवन परचिय दिया हुआ है। यह प्रन्थ अपभ्रंश भाषामं रचा गया है और १२ सन्धियों में समाप्त हुआ है, और जिसकी लोक संख्या ढाई हजार लोक प्रमाण है । सन्धिकी समाप्ति सूचक पुष्पिका गद्य में न देकर स्वयंभूदेव के समान पद्य में दी हुई है। वह संधि-वाक्य इस प्रकार है:इयसिरिपामचरित्त इयं बुहसिरिहरेण गुणभरियं अणुमिरणयं मणोज्जं ट्टलनामे भवे ||१|| विजयंत विमारणाओ वम्मादेवी गंदणो जाओ । पार्श्वनाथ च० कियप्पहु चविणं पढमी संधी परिममत्तो ||२||
माहुल पिताका नाम 'अ' साहू था, इनका वंश अग्रवाल था और यह सदा धर्मकर्मम सावधान रहते थे। इनकी मानाका नाम 'मेमडिय' था, जो शीलरूपी सतआभूषणों अलंकृत थी और बाँधवजनों को सुख प्रदान करती थी। साहुनलके दो ज्येष्ठ भाई और भी थे - राघव और सोढल | इनमें राघव बड़ा ही सुन्दर एवं रूपवान् था, उसे देखकर कामिनियों का मन द्रवित होजाता था ।