Book Title: Anekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 420
________________ ४६० अनेकान्त [ वर्ष ८ - किया है। सफाई-छपाई सब उत्तम और जिल्द डा. जगदीशचन्द्र जैन, एम.ए., पी-एच.डी. । प्रकाशक मजबूत है । पुस्तक पठनीय और संग्रहणीय है। वही भारतीय ज्ञानपीठ । मूल्य, ३) । पृष्ठ २०२ । __ ५ हिन्दी जैन साहित्यका संक्षिप्त इतिहास- श्वेताम्बर जैन श्रागमोंमें जो कथा-कहानियाँ लेखक, श्रीकामनाप्रसाद जैन D. L. 11. R. .A. S. I लिपिबद्ध पाई जाती है उन्हींका प्रस्तुत पुस्तकमें प्रकाशक उक्त ज्ञानपीठ मूल्य, २) । पृष्ठ सुन्दर सङ्कलन है । इसी लिये पुस्तकका दूसरा नाम लगभग २८५ । 'जैनकथा कहानियाँ' भी दिया गया है। इसमें यह ज्ञानपीठ मूर्तिदेवी जैन गन्थमालाका हिन्दी डा०मा० ने बड़े रोचक डङ्ग और मरल एवं चालू सम्बन्धी दुसरा ग्रन्थ है । पाठक, बा० कामताप्रसाद भापामें कहानियांको दिया है । इन कहानियांका जीकी लेखनीसे सुपरिचित हैं उन्हीं की लेखनीमे यह उन्होंने तीन भागोंमें बाँट दिया है--पहले भागमें ग्रन्थ लिखा गया है। इसे मौलिक रचना कहनेकी लौकिक कहानियाँ हैं जिनकी संख्या ३४ है, दसरे अपेक्षा प्रायः मंग्रह रचना कहना ज्यादा उपयुक्त भागमें ऐतिहासिक हैं जो १७ हैं और तीसरे भागमें होगा; क्योंकि इसमें प्रेमीजी आदि विभिन्न लेखकों धार्मिक हैं जिनकी संख्या १३ है। इस तरह इस द्वारा कराये गये हिन्दी माहित्यके परिचयादिका ही पुस्तकमें कुल ६४ कहानियाँ हैं। इन कहानियोंका जगह जगह संकलन है । इममें सन्देह नहीं कि इस प्राधार वताम्बर जैन आगम हैं और इस लिग पुस्तकके द्वारा हिन्दी जैन साहित्यका अच्छा परिचय उनम-मुख्यतः धार्मिक कहानियाम-कहीं कहीं मिलता है और यह भी मालूम होजाता है कि वर्तमान दिगम्बर जैन साहित्यसे मतभेद है । जैसे 'राजीमती हिन्दीका मूल उदम स्थान जैनोंका अपभ्रंश साहित्य की दृढता' कहानीको लीजिये, उममें भगवान नमिहै। मम्पादकका यह लिखना कि 'इस पुस्तकमें-कैसे नाथक भाई रथमिकी कल्पना की गई है जा अपभ्रंशक माध्यम द्वारा जैन कवियोंने आजकी इस दिगम्बर साहित्यम नहीं है। और न उसमें राजीमती हिन्दीको अङ्करित किया और उस अङ्करको मीच तथा रथनमिका उक्त सम्बाद ही पाया जाता है सींचकर कैसे उन्होंने बालबृक्ष बना दिया-पायेगे' जिसमें रथमि भाभी राजुलको अपनसे शादी करने बिल्कुल ठीक है । पं० नाथूराम प्रमी और राहुल के लिय फमला रहे हैं।' यहाँ एक बात यह कहनेकी सांकृत्यायन प्रभृति विद्वानोंने यह सिद्ध कर दिया है है कि लखकन इन कहानियों को दो हजार वर्ष पुरानी कि महाकवि म्वयम्भू आदि जैन कवियोंकी अपभ्रंश बतलाई हैं परन्तु लेखन और मङ्कलनकी दृष्टिमं वह कृतियाँ ही वतमान हिन्दीकी प्रसवा हे। पुस्तकम कुछ ठीक नहीं जान पड़ता, क्योंकि इन कहानियांका हिन्दी जैन कवियों और उनकी रचनाआंका जा संग्रह श्वेताम्बर जैनागमांपरसे किया गया है और परिचय रनिङ्गम दिया गया है उससे पुस्तककी उनकी मदलना तथा परिवर्धन देवधिगणाने विक्रम साहित्यिक मनाज्ञता सवथा नष्ट होगइ है । एक एक की छठी शताब्दीमं किया है जिसे श्राज कंवल लगभग कवि और उसकी रचनाका अलग अलग उपशीर्षक च उदह-पन्द्रहमी वर्ष हुए हैं। लेबकने म्वयं देवधिदेकर उनका परिचय कराया जाता और फुटना टम गणीकी सङ्कलनाको वतमान आगम माने हैउसकी सूचना करदी जाती जहाँ जहास वह लिया (प्रस्तावना पृ०१६) । इमम सन्देह नहीं कि श्री गया है ता बहत उत्तम होता । 'अनेकान्त' में बहुत जगदीशचटजीन इन कहानियांक सहलन करने में अधिक मामग्री लीगई है पर उसका नल्लख कुछ ही काफी परिश्रम किया है और उन्हें लोकोपयोगी जगह किया गया है । यह सब हाते हुये भी पुस्तक बनानका पूरा प्रयत्न किया है। पाठकांक लिय ये संग्रहणीय है । मफाइ. छपाइ, जिल्द, मब उत्तम है। कहानियाँ अवश्य मचिकर होगी। सफाई, छपाई, ६ दो हजार वर्ष पुरानी कहानियां-सङ्घल यता जिल्द आदि सब मनोज्ञ है ।

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