________________
कविवर बनारसीदास और उनके अन्धोंकी
हस्तलिखित प्रतियाँ
[ मुनि कान्तिसागर
त्रहवीं शताब्दी के ग्रन्थ-प्रणेताओं और साधनाके बलपर आत्म-तत्त्वके निगूढ़तम रहस्यको HATI दार्शनिक विद्वानोंमें आगराके कविवर पहचाननेके प्रयासमें भी सदैव दत्तचित्त रहते थे।
बनारसीदासजीका स्थान अत्यन्त उच्च एवं वे केवल भौतिक जौहरी ही नहीं थे, वरन् आध्या
'कई दृष्टियोंस महत्त्वपूर्ण है। आपने त्मिक दृष्टिकोणसे आत्मिक सुखके तत्त्वको भी हिन्दी-भाषामें दार्शनिक साहित्य, मौलिक रचनाएँ पहचानते थे । यदि उनके बृहत्तर एवं लघुत्तम तथा अनुवाद-कार्यकर, तत्कालीन सामाजिक, ऐति- ग्रन्थोंका मार्मिक अध्ययन-मनन किया जाय, तो हासिक और सांस्कृतिक परिस्थितियोंका यथार्थ तत्कालीन मानव-समाजकी उच्चताका एक प्रखर चित्रण कर, हिन्दी-भाषाके माहित्यिक भण्डारको ही आलोक हमें मिलेगा । तत्कालीन मानव-समाज केवल पुष्ट नहीं किया, वरन आध्यात्मिक चिन्तनकी केवल भौतिक साधनोंके पीछे ही जीवन नहीं गंवाता अपूर्व सामग्री भी प्रदान की है, जैसाकि इनके गंभीर था, वरन् उसने शान्तिके वास्तविक प्रशस्त पथ पाण्डित्यपूर्ण ग्रन्थ-रलोक परिशीलनसे ज्ञात होता खोज भी की थी। कविवर बनारसीदासजीने भी है । मार्ग शुक्ला एकादशी, शनिवार, विक्रम संवत अपनी एक ऐसी मण्डली बना रखी थी, जिसके १६४३ को आपने ऐतिहासिक कुल-श्रीमाल कुल में सदस्यों के नाम 'अर्द्ध-कथानक', 'समयसार' आदि शरीर धारण किया । इम कुलने भारतीय वाङ्मयकी ग्रन्थों में बड़े आदरके माथ उल्लिग्वित हैं । बनारसीविभिन्न शाखाओंके ज्ञान-भण्डारको परिपुष्ट करने दासजोने अपनी जीवन-यात्राम कई सुखद एवं वाले एव उसके गौरवको उच्च स्थान प्रदान करनेवाले दुखद अनुभूतियोंका प्रत्यक्षीकरण किया था। उनका अनेक विद्वद्रत्न उत्पन्न किए हैं, जिनमें अनेक जीवन एक आदर्श साधककी भांति शुद्ध था । भीषण विपयोंके ज्ञाता कवि आसड और अलाउद्दीन आपत्तियोंके पड़नेपर भी उन्होंने पीछे कदम नहीं खिजलीके मन्त्री ठक्कुर फेक एवं साहित्य, सङ्गीत, लौटाया, बल्कि उनको धैर्यपूर्वक सहन किया और कला आदि विभिन्न विषयोंक मर्मज्ञ विद्वान मन्त्रीश्वर अभिलषित कार्यमें उन्हें साधक बनाया। बड़ी-बड़ी मण्डन आदि प्रमुख हैं । भारतीय माहित्यकं कठिनाइयाँ उन्हें अपने कर्तव्य-पथसे विचलित नहीं श्रध्ययनस ज्ञात होता है कि इम वशके अधिकतर कर सकी । मंसारमें एक नियम देखा जाता है कि लाग रत्नों और मांग क्याको पहचाननम निपुण मान जब कभी नई विचारधाराका श्रागमन होता हैजाते थे। इसी कलाके बलपर राजसभाओंमें इनका भले इसके बीज परम्पगमें ही क्यों न अन्तनिहित बड़ा अादरणीय स्थान था। वर्तमान समयमें भी हों-तब धर्म एवं समाजमें खलबली मचना इम कुलमं परम्परागत कार्यको निभाया जा रहा है। स्वाभाविक है। कविवरपर यह बात सोलहों आने ___ बनारसीदासजी अपने कुल-परम्परागत कार्यमें चरितार्थ होती है, जैसा कि तत्कालीन समालोचकों तो कुशल थे ही; पर साथ ही अपनी आध्यात्मिक द्वारा निर्मित ग्रन्थोंसे विदित है। जैन धर्मावलम्बी