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किरण १०.११]
कविवा बनारमीदास और उनके ग्रन्थोंकी हस्तलिखित प्रतियाँ
ना...
नच्छिष्य गजसार मुनिस्समयसार नाटक ग्रन्थ ही आत्मतत्वचिन्तक मनुष्योंकी एक मण्डली भी लिखित श्रीमद् गवड़ीपुराधीश प्रसादात्भावकं होगी, जिनकी आध्यात्मिक क्षुधा-पृतिक फल-म्वरूप भूयात्पाठकानां श्रोतृणां छात्राणां शश्वत् । श्रीरस्तु ।। ही रूपचन्द्र द्वारा प्रस्तुत वृत्ति निमित हुई हो, तो ___ यह प्रति अत्यन्त महत्वपूर्ण है । इसके रचयिता कोई आश्चर्य नहीं । अठारहवीं शताब्दीमें माम्प्रदायिक श्वेताम्बर जैन होनेके कारण मूल ग्रन्थमें जहाँ कहीं संगठन कितना बढ़ा चढ़ा था, रूपचन्द्रकी यह टीका भी धार्मिक और साम्प्रदायिक मतभेदोंका उल्लेख इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। इस टीकाकी विद्वत्ताहै, उन उल्लेखोंको उभय सम्प्रदायोंके भिन्न-भिन्न पूर्ण शैलीकं विषयमें इतना ही लिखना है कि इसके मतभेदोंका वर्णन करते हुए समन्वयात्मक ढङ्गसे गृढ मननके बिना बनारसीदासजीकी उनात्त विचारकाम लिया गया है । इसीसे रूपचन्द्रकी गहनतम धागको हृदयङ्गम करना असम्भव नहीं तो काटन विचारशैलीका आभास मिलता है । इमकी प्रनियाँ अवश्य है । मूल प्रति लेग्वक मंग्राम है। कम मिलती हैं । दिगम्बर जैन ग्रन्थोंपर उपलब्ध ६ बनारसी-विलास (पत्र ६९, पंक्ति १४, होने वाली श्वेताम्बर विद्वानों द्वारा रचित हिन्दी टीकाओंमें इसका स्थान बहुत महत्वपूर्ण है। इसके
__ अक्षर ४५)
मवैया लखक गजमार मुनि रूपचन्द्रक प्रशिष्य है। __ हालहीमें प्रकाशित 'अर्द्धकथानक परिशिप्रमं प्रथम सहप्रनाम सिंदरप्रकरधाम श्रीनाथरामजी प्रेमीनं 'ममयसार' के टीकाकार
बांनारसी सवैया बदनिनायपंचासिका म.पचन्द्रकं विषयमें भीमसिंह माणिक द्वारा प्रकाशित साटिशिलाका मारगना कर्मकीप्रकृति अनुवादकं आधारपर लिखा है-"ममयमारकी यह
साधुवन्दन
सुवासिका रूपचन्द्रकृत टीका अभी तक हमने नहीं देवी, परन्तु
पैटी कर्मकीछतीसी पछि ध्यानकी हमारा अनुमान है कि यह बनारमीदासके माथी रूपचन्द्रकी होगी, गुरु रूपचन्द्र नहीं ।” (पृष्ठ ७९) बतीसी अध्यात्म छतीसी पचीसीज्ञानरासिका प्रमीजीका यह कथन भ्रमपूर्ण है, क्योंकि ये रूपचन्द्र शि कीपचीसी भवसिन्धुकी चतुहमी न बनारसीदासजीक साथी हैं, न गुरु ही। ये तो अध्यातमफाग तिथि षोडस नियासिका ॥१॥ खरतरगच्छानुयायी श्रीजिनभक्तमूरिजीके विजयराजमें विचरण करते हुए जिन-हर्प-शिष्य सम्बवर्धन उनके तरः काठीया मेरे मनका सुप्पारागीत शिप्य दयामिह और उनके शिष्य पं० रूपचन्द्र थे, पंचपद विधान सुमतिदवी सन हैं जिन्होंने विक्रम संवत १७९२ आश्विन कृष्ण प्रतिपदा सारदा बड़ाई नवदर्गा निरनै पनाम । रविवारको मोनगिरिम मोदी जगन्नाथके ज्ञानवृद्धयर्थ
नौरतन कवित्त मु पूजा दानदत है. इसका निर्माण किया । इसमें वहाँक राजा द्वारा
दस बाल पहेली प्रसन्न उत्तरकी माला मांदी-पदपर स्थापित फतहचन्द, पृथ्वीराज, नथमल जसरूप, जगन्नाथ आदिके जो नाम आए हैं, वे
आस्थाम तांत दोहा दर्शा बरगत है ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। बुन्देलखण्डमें अजितकं छन्द सान्तिनाथ छन्द सेना उच्च गृहस्थको राजद्वारा पद दिया जाता था । नवनाटिक कवित्त च्यारि मिथ्या मत है ॥२॥ मालूम होता है कि बनारसीदास द्वारा प्रचाग्नि ।
आध्यात्मिक मतानुयायियोंकी संख्या सोनगिरि पटक सबैया बनाए वचनगारम्बकं वेद (ग्वालियर)में अवश्य ही अधिक रही होगी। साथ
आदि भेद परमारथ बचनिका