Book Title: Anekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 386
________________ ४२८ अनेकान्त बतलाया है । इसलिये वादिराजको भी प्रभाचन्द्रकी तरह 'योगीन्द्र' पदसे स्वामी समन्तभद्र ही विवक्षित हैं; क्योंकि रत्नकरण्डको स्वामी समन्तभद्रसे भिन्न योगीन्द्र-कृत बतलाने वाला वादिराजका पोषक एक भी प्रमाण नहीं है और प्रभाचन्द्रके स्वामी समन्तभद्रकृत बतलाने वाले उल्लेखोंके पोषक एवं समर्थक बीसियों प्रमाण हैं । (४) रत्नकरण्डके उपान्त्य पद्य में अकलङ्क, विद्यानन्द और सर्वार्थसिद्धिकी कल्पना अशास्त्रीय वीर सेवामन्दिर में वीरशासन जयन्तीका उत्सव प्रथम श्रावण कृष्णा प्रतिपदा वीरनिर्वाण संवत् २४७३, ता० ४ जुलाई सन् १९४७ को वीरसेवामन्दिर के भव्य भवन में गत वर्षकी भाँति इस वर्ष भी वीरशासन जयन्तीका उत्सव अत्यन्त आनन्द और समारोहके साथ सम्पन्न हुआ । उत्सवके अध्यक्ष थे हमारे निकटवर्ती परमादरणीय धर्म- प्रेमी बा० नेमिचन्द्रजी जैन वकील सहारनपुर । आपका सौजन्य और तत्वज्ञान प्रत्येक जैनके लिये स्पर्धाकी वस्तु है और वही हमारे लिये उनके श्राकर्षणकी चीज थी । उत्सवमें स्थानीय धर्म-बन्धुत्रों तथा जैनेतर भाइयोंके लावा देहली, कानपुर, सहारनपुर, मल्हीपुर, तिस्सा, नानौता, अब्दुल्लापुर आदि विभिन्न स्थानांसे भी अनेक सज्जन सम्मिलित हुए थे । देहलीसे बा० पन्नालालजी अग्रवाल, बा० माईदयालजी बी० ए० ग्रॉनर्स, पण्डित चन्द्रमौलिजी शास्त्री व उनकी अनाथालय मंडली; कानपुर सेवेवर राष्ट्रसेवक हकीम कन्हैयालालजी; सहारनपुर से सभापतिजीके अलावा ला० जिनेश्वरदासजी उपाधिष्ठाता जैनगुरुकुल, पं० सुन्दरलालजी न्यायतीर्थ, पं० सुखनन्दनजी शास्त्री; मल्हीपुर से पुराने समाजसेवक वयोवृद्ध मा० चेतन दासजी बी० ए०; तिस्सा से पं० शोभारामजी; नानौतासे श्रीमती पं० जयवन्तीदेवी और अब्दुल्लापुरसे ला ० इन्द्रसेनजी पधारे थे । [ वर्ष ८ और असङ्गत है और इसलिये उक्त कल्पना रत्नकरण्डको विद्यानन्दके बाद की रचना सिद्ध नहीं कर सकती है । विद्यानन्द से पूर्व ७-८वीं शताब्दीके न्यायावतारमें रत्नकरण्डका 'आप्तोपज्ञ' पद्य पाया जाता है । अतः वह विद्यानन्दके बादकी रचना कदापि नहीं है । अतः रत्नकरण्ड अपने मौलिक प्रौढ साहित्य, विभिन्न उल्लेख- प्रमाणों और प्रामाणिक साहित्यिक अनुश्रुतियों व स्रोतों आदि से आप्तमीमांसाकार स्वामी समन्तभद्रकी ही कृति प्रमाणित होती है । प्रातः प्रभातफेरी और झण्डारोहण हुए । मध्याह्न में गाजे बाजेके साथ जुलूस निकाला गया, जिसमें भजनोपदेश हुए। ढाई बजेमे जलसेकी कार्रवाई शुरू की गई । सर्वप्रथम पं० परमानन्दजीने मंगलाचरण किया । उसके बाद मुख्तार सा० के प्रस्ताव और बा० नानकचन्दजी ग्रादिके समर्थनके साथ बा० नेमिचन्दजी वकील सभाध्यक्ष चुने गये । तदनन्तर जैन कन्या पाठशालाकी छात्राओं और मास्टर गोपीचन्दजी जैन अनाथाश्रम देहलीके स्वागतगान हुए। उसके बाद ग्राये हुए पत्रों और शुभकामनाओं को सुनाया गया । तत्पश्चात् पं० जुगलकिशोरजी मुख्तार अधिष्ठाता वीर सेवामन्दिरने अपने विवेचनके साथ 'महावीर - सन्देश' पढ़ा। इसके बाद पं० चन्द्रमौलिजी, बा० माईदयालजी, मा० चेतनदासजी, वैद्य रत्न हकीम कन्हैयालालजी, अध्यापिका क्षमाबाईजी और मेरे भाषण तथा बीच-बीचमें देहली अनाथाश्रमके छात्रों और कन्या पाठशालाकी छात्राओंके गायन हुए । मुख्यतः सबके भाषणों और गायनोंमें भगवान् महावीर के इस वाणीके प्रथम अवतरण अथवा शासनतीर्थके प्रवर्तन दिवसकी महत्ता प्रकट की गई थी और बतलाया गया था कि उनके उपदेश और सिद्धान्त कितने लोक कल्याणकारी हैं । अन्तमें सभाध्यक्ष जीका अनुभव और ज्ञानपूर्ण भाषण होनेके बाद सभा रात्रिके लिये स्थगित कर दी गई। रात्रिमें वैद्यरत्न हकीम कन्हैयालालजीक सभानेतृत्व में पण्डित शोभारामजीका सुन्दर श्रापदेशिक भाषण और अनाथाश्रम( शेषांश टाइटिल पृष्ठ ३ पर )

Loading...

Page Navigation
1 ... 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513