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किरण १८-११ ]
कविवर लक्ष्मण और जिनदत्तचरित
यत्र तत्र भ्रमण करते हुए विलरामपुरमें आय। यह तथा महाधवल और जयधवल नामके सिद्धान्त नगर आज भी अपने इसी नामसं एटा जिलेमें बसा ग्रन्थोंको भी न देखने वाला लिखा है। उन विद्वानोंहा है। उक्त त्रिभुवनगिरिके विनष्ट होनेकी यह के नाम इस प्रकार हैंघटना वि० सं० १२७५से पूर्वकी है, क्योंकि इस अकलङ्क, चतुर्मुख, कालिदाम, भीहर्प, वृत्तग्रन्थकी रचना विलरामपुरमें ही उक्त समय की गई विलास, द्रोण, वाण, ईशान, हरिस (हर्ष) पुष्पदन्त, है जब ग्रन्थकर्ता वहाँसे भागकर आये थे। इससे स्वयंभ, बाल्मीकि और सन्मति । जैसा कि उनके यह स्पष्ट है कि यह घटना सं० १२७०से १२७५के निम्न वाक्योंसे प्रकट है:मध्यमें किसी समय घटित हुई है। उस समय विलरामपुरमें सेठ विल्हणक पौत्र और जिनधरके पुत्र
निक्कलंकु. अकलंकु. चउमुहो, श्रीधर निवास करते थे। इन्होंने कविवरको स्थानादि
कालियासु सिरिहरिसकयसुहो । की सुविधा प्रदान की, और ये कविवरके परममित्र
वयविलासु कइवास असरिमु (?), बन गये। साह विल्हणका वंश पुरवाड था और श्रीधर उस वंशरूपी कमलाको विकसित करने वाले
दाणु वाणु ईसाणु सहरिसो । मृर्य थे। और इस तरह कविवर उनके प्रेम और पुप्पयंतु, मुसयंभु भलओ, महयोगसे मुग्ध पूर्वक रहने लगे।
बाल्मीउ सम्मइ रसिला ॥ ___एक दिन श्रीधरने अवसर पाकर कवि लक्ष्मणसे
प्रन्थकर्ताने ग्रन्थ पूर्ण करते हुए सबकी मङ्गलकहा कि हे कविवर तुम जिनदत्तचरितकी रचना
कामना की है और ग्रन्थको पढ़ने पढ़ाने, लिग्यनेकरा, तब कविने श्रीधर श्रेष्ठीकी प्रेरणा एवं अनुराधसे
लिखाने और देने दिलानकी भी प्रेरणा की है। जिनदत्तचरित बनाया, और उसे वि० सं० १९७५ के पृस वदी षष्ठी रविवार के दिन ममान किया, जैमा कि उसके निम्न वाक्यांस प्रकट है:--
( पृष्ठ ३६७ का शेष) घत्ता
मम्भव है कि पूरी कवितामें इन तीनसे अधिक बारहसय सत्तरयं पंचोत्तरयं विक्कमकालु विइत्तउ।।
पा हां जिनमें तेरह पन्थियोंमें उक्त मभी तेरहों पढमपविख रविवारइछ ट्ठिसहारइ पूसमासे सम्मत्त॥ दोपांक होनका वर्णन एमी ही गन्दी और
ग्रन्थमें स्मृत पूर्ववर्ती कविगण अशिष्ट भाषा में किया गया हो। उपरलिखित कवि लक्ष्मणने अपने इस ग्रन्थकी श्राद्य प्रशस्तिके भट्टारकीय पद्य शुद्धाम्नायियोंके 'गतदिन तेरह वें कडवकके बाद निम्न विद्वानोंका स्मरण किया है पन्थमें रत' रहनकी जो बात कही है उमका itr माथ दी. अपनी लघता व्यक्त करते हए. श्राशय भी मंकेतरूपमें यही प्रतीत होता है कि अपनेको धातु, लिङ्ग, कारक, कर्म, समाम, सन्धि, व काठिया नामक तेरह दोषीमें ही गत दिन छन्द, व्याकरण शादिसे भी अनभिज्ञ बतलाया है लीन रहते है।