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किरण ६-७१
भगवान महावीर और उनका संदेश
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तब तब समय ऐसीनरको या तीर्थकरोगे । करता गाफिलों की इमदाद नहीं करता"। "'मन: सिन और इनके कारण वीजगत में ज्ञान की नहरी किरणें परेषां न समाचेरत्" । "हर प्राण को खु का शिफाइल अज्ञानकः भिटानी तथा लोक मर्यदा स्थापित हो जाती। करनेका हक है" । श्रादि कान नी तत्वोंये उपर बताया
यह बात भी विचारणीय कि धार्मिक किमान्तीका ही समर्थन होता है। प्रचार हमेशा क्षत्रिय राजाओं द्वारा हाहै; क्योंकिर्मके किन्तु दोनों समय के इन प्रयोगों में पचा है। न सिद्वान्तोंका प्रचार राजाश्रित का है। देश और समाज समय में कानन का पालन करना कराना उनकाक और हित के लिए प्राकृतिक तथा मानमगिक और लौकिकाचार लिक कर्तव्य समझा जाता था। विरोधक र व्यावतार तथा सलियों के विछ बाते करनीय समझी गई। इन था किन्न आकल हाल योग द्वारा वानऊ, कस्पाय चीको कानन का सप प्राप्त हया। यो समयकी पुकारके बनाने का प्रयान किया जा रहा, धान , पासा. बरो अनुसार धम्कि नियमों का पालन ही देखा जाता ही हरका आधार है और उन दिनों एरका 'रामरहान यदा कदाचित चन्द व्यक्ति या उनका समूह इन कर्तव्य नैतिक यावश्कता, प्रशासन तथा संयम का। निय की सहेलनाद्वारा स.स. या राष्ट तथा की उभी तो यत्रतमा जैन शास्त्रों में -
वामें बाधा उपस्थित करता तो न सिर्फ राजदर ही "तरनुल्य परद्रयं परं च स्वशरीरयन् । उसे भुगतना पड़ता कि काउकी दक्षिण भी वह गिर परदारां समा मातुः पश्यन यानि पा पद" । जाता । राजनीति इन पुसी या राजाका यह तय था कि ऐसे वाक्य मिलते हैं । दमकी स्योकी घामक लिनक जको धार्मिक तथा ली कर नियमको धमली जामा की तरह. परस्त्रीको माताके समान और दूसरे जाका पहिनान में विश करे तथा ऋश्यकतानुसार सैनिक बलको अपने समान जानः । क्या या माय वरिक सिमान। भी काममें लाये । यही कारण है कि भारतवर्ष में उस समय है। क्या इसपर अमल करने मध्य-गो शान्तिक शनि च सुचवस्थाका मधुर महत मनाई देता रहा है। नहीं पा सकता? ___ गत मा.मरके अन्त में विश्वशान्तिको सद के लिए
धर्म और गजनीति स्थापित करने के खयाल अमेरिकाके स्वनामधन्न सिटेन्ट
वैसे तो और रानी वितरीत विचारों विल्सनने छन्तर टीय परिषदको जन्म दिया और एक लंबी
ती होती किन्नु वार में न है। प्राचीन कामा चौड़ी नियमावली बना दी, कि कार्यरु। में, मैनिक
में राजनीतिका रोग मान : जीनो: त्येक क्षेत्र में पाया बलका प्रभाव होने के कारण, वह परिए त न कर सका और
जाता है। किरक तथा सस्था क ज र रानी ज्ञा परिणाम यह निकला कि युद्धकी ज्याला पुनः भी
तथा मा रश: २ नाथे । मानव सीके स्वभा। उनकी धधक उठी । किन्तु भारतवर्षके प्राचीन राजनीतिज्ञोंकी
प्रवृत्तियों आदिका उगने नत्म निरीक्षणः कृयश्य कि । यह बात भलीभांति परिचित थी कि अपनी जाति
था । नामें मदान व उसके श्रीका साधनके लिए निक-शनिद्वारा राष्ट. देश, समाज के रिमों
दर्णन मिलता है। उदा रणर्थ मौके को ढीकरण: व धार्मिक सिद्धान्त का प्रचार थापानीसे कराया जा सकता।
गुलम रथ त्रा. पूजामा, संत्र निकालना, धार्मिक प्रसव जनसाहित्य और कानून
कराना श्रादिके द्वारा में प्रभा ना करना; महामिन भारतवर्ष की अनेक धार्मिक तथा सामा जक प्रवृत्तिपर मक'ना, बाई सभा में उनकी महाता करना, समाज ही मौजूदा क.ननका प्राधार है । धर्म के निमोको तथा संगठनका बीज बना ग्रादि ची सरधिका हाल है। प्रचलित रिवाजोंको जयमें रखकर ही ( Juris इन चीकन धर्ममें मत्थर र्शन के अंगी इर्थान Prudence) क.ननके मूलभूत तत्व बनाये गए है ऐसा स्थितिकरण प्रभावना, चामल, श्रादि नामो याद कि । खुद का. नदानोंका खयाल है। "न्दर की आवाज जो युछ है। इनके मूलभूत तोपर दृष्टि डालने से मालूम पड़ता है कि काती है उस पर अमल करना जुर्म नहीं" । "क.नन उनि मानस विज्ञान Psychology) के रद हरदों तथा