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किरण ६-७]
कायरता घोर पाप है
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दांत और नख दोनों थे, चाहती तो रावणकी मांख बचाकर, होती और तब आतताई उनके पास मानेमें उसी तरह नोचकर काटकर, छीना-झपटी करके देर अवश्य लगा सकती भय खाते जैसे छान्दरके पास मानेमें सांप भय खाता है। थी। तनिक भी इस तरहका साहस दिखाया होता तो शायद एक बार बनारस गया तो विश्वनाथजीका मन्दिर इतनेमें राम ही पा जाते। वनोंसे भील वगैरह ही रक्षार्थ दिखाते हुए पण्डा वहां ले गया जहां औरंगजेब द्वारा हिन्दू श्रा जाते और कोई भी न पाता तो एक श्रा.शं तो बन मन्दिर तोड़ कर बनवाई हुई मस्जिद प्राज भी जाता ताकि गुड़िों की तरह हिन्द नारियोंको उठाकर कोई हिन्दु जातिके सीनोंपर मेखकी तरह जमी हुई मौजूद नहीं ले जा सकता । परन्तु सीता तो उस कायरताबह- है। पण्डेने एक कृथा दिखाकर कहा, 'धर्मावतार ! यह रूपिणी के चकमे में आगई जो हमेशा अहिंसाकासा रूप बना- वही कुया है जिसमें बाबा विश्वनाथ मुसलमानों के छूने के कर लोगोंको बुद्विभ्रष्ट करके आपदायोंमें डालती रहती है। भयसे कूद गये थे और आज तक वहीं मौजूद हैं। मैंने यदि उसके घरेमें सीता न आई होती तो सीता लंकामें कुढ़कर कहा 'और तुम लोग उनके साथ क्यों नहीं गये, क्या जाकर भी अवसर पाकर रावएका बध कर सकती थी, महलों तुम्हें मुसलमानोंके जानेका भय नहीं था।' भला जिस में आग लगाकर अपहरणका स्वाः चखा सकती थी। पर, जातिको यह पाठ पढ़ाया जाता हो कि उनके ईश्वर भी नहीं वह गायकी तरह बधिकके कब्जे में रहकर केवल प्रांम् धातताइयोंसे भागते रहते हैं वह उनका डटकर कैसा बहाती रही।
मुकाबिला करेंगे, सोचनेकी जरूरत नहीं। एक हिन्दु हैं __ मगर सीताका यह श्रादर्श जटायुको पसन्द न पाया जो हजारों मन्दिरोंकी बनी मस्जिदोंको बड़े चावसे अपने शाय। इसीलिए सममादार लोगोंने इसे पक्षी तक कह दिया है। महमानीको दिखाते हैं और एक सिक्ख . हैं जो मुस्लिम जो भी हो, यन्त्र अन्याय उसके पुरुषत्वके लिये चुनौतीथा।यू मिनिस्ट्रीके होते हुए भी मस्जिदको गुरुद्वारा बना बैठे। सीतारामसे कोई राग और रावणसे उसे द्वेष न था । उसके जब हम चलें तो साया भी अपना न साथ दे। सामने तो प्रश्न था किधर्म क्या है और अधर्म क्या है ? चुप- जब वह चले तो जमीन चले श्रास्मां चले ॥-जलील चाप आतताईके अन्यायको सहन करना उसने श्रधर्म, और सीताका दूसरा श्रादर्श ये था कि वे साध्वी रहीं। प्राप्तताईको दण्ड देना, अत्याचारके विरोधमें उठना, नारीको श्राज भी हिन्दू नारियाँ उसी आदर्शपर चल रही हैं। परन्तु रक्षा करना धर्म समझ कर वह रावणसे भिड़ गया! सीता और आजकी नारियोंके युगमें बहुत बड़ा अन्तर ये भिड़नेसे पूर्व जटायु भी यह जानता था कि हाथी और है कि रावण बलात्कारी नहीं था। भाजके मातताई बलामच्छरकी लड़ाई है ? सीताको छडाना तो दर किनार अपना कारी हैं। रावण बलात्कारी होता तब इस श्रादर्शकी भी सफाया हो जायगा । फिर भी वह जाँबाज रावणपर रूपरेखा क्या हुई होती, कुछ कहा नहीं जा सकता। टूट पड़ा। मरा तो, पर रावणको क्षत विक्षत करके। बंगालके उपद्रवोंपर जिन्होंने कहा था कि हिन्दु-मुस्लिम पुरुषोंको यह पाठ पढ़ा गया कि खबरदार ! आततायी झगड़े ठीक नहीं। ताली दोनों हाथसे बजती हैं, अत: दोनों कितना ही बलवान हो उसके अत्याचारका विरोध अवश्य सम्प्रदायोंके लोगोंको शांत रहना चाहिये । इस शरारत भरे करना । श्राज शायद जटायुके उस पाठका ही परिणाम है कन्यसे बदनमें श्रा-सी लग गई। घरको डाकू लूटते कि लोग शांति शान्ति क्षमा-क्षमाके शोरमें भी अध्याचारका . रहें और रोते बिलखते घरवालोंको यह कहकर साधना विरोध करके अपना रन बहाकर जटायुका तर्पण करते दी जाय कि 'भाई अापसमें मत लदो, मेल मिलापसे रहो।' रहते हैं।
पूछता हूँ डाकुओका क्या बिगड़ा जो हाथ लगा ले भागे. यदि सीताने भी हरण होते हुए समय बल-प्रयोग मकान मालिक लुट गया और झगडालू भी करार दिया किया होता या लंकामें जाकर रावणको सोते हुए बध कर गया सो मुफ्तमें। दिया होता या महलोंमें भाग लगा दी होती तो निश्चय यह तो वही बात हुई जैसे कई मूर्ख पत्रकार बैलगाड़ीही श्राज हिन्दु-नारियोंके सामने एक निश्चित रूप रखा हुई कोनसे किरचा-किरचा होती देख रेल-बैलगादी भिना