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अनेकान्त
[ वर्ष ८
९०२-चित्रांगदने 'चित्तौड़' कराया, 'मोरी' हथियार छोड़कर वीरमदे देवलोकको प्राप्त हुआ। बसाया और 'गढ़' कराया।
"माथो पादशाह जुरगयो" । पीछे बादशाहकी १०७०-नाहडरायने 'मँडावर' बसाया। बेटियोंने सत किया।
१०७७–भोजपरमारके बेटे वीरनारायणने १३५१-विहारिश्राको जालोरके मध्ये थानेमें 'गढ सिवाना' कराया, पहले वह 'कुम्भट' ग्राम डाला। कहलाता था।
१४०२-अहमद बादशाहने चंपानेरसे आकर १०८८-शत्रुजय (तीर्थ) पर 'विमलवस्ती' 'अहमदाबाद' बसाया । मणिकेसरनाथ योगी बनाई गई।
ब्रह्मचारीने गुरुकी आज्ञासे पहली 'लाहौर' बसाई । १११५–राजा पृथ्वीराजके मंत्रीश्वरने 'नागौर' १४ २(१४०२ या १४१२?)-अहमद बादशाहने बसाया । किंवारदाय (?) में गडरियेने सिंहोंको दक्षिणमें 'अहमदनगर' बसाया। इकट्ठे बैठे देखा था, यह देखकर बसाया।
१४५२-वैशाख वदि ७ को देवड सहसने ११८१-फलवधि-पार्श्वनाथजीकी स्थापना 'सिरोही' बसाई । उस समय ककचरा पेड़ लगाया। की गई।
“तिको कांकाहमाहो मिटै नहीं"(?) ११८४-सिद्धराय जयसिंहदेव हुआ।
१४९२-राणपुरके राणा कुम्भाने ४ स्तम्भ ११९९-कुमारपाल राजा पाटण (में) हुआ, बनवाए, जिनमें १ लाख २४ हजार फीराज लगे। हेमाचार्य जिसके गुरु।
१४९४(६?)-राणपुरमें मंदिरकी स्थापना की १२१२-श्रावण वदि १२ को राव जेसलने अपने नामपर 'जैसलमेर' बसाया। स्थानका पिछला नाम
गई, ९९ लाख रुपया लगा। (मंदिर की नींव वैशाख 'लोद्रवा' था।
मुदि ३ को रक्खी गई थी।) १२१३-कच्छमें जहाँ भद्रेश्वर है वहाँ झगडूया
१४९[६] -कुम्भा राणाने 'कुम्लमेर' बसाया। (झगडा या यज्ञ) हुआ । 'रायां सधार कहवाणो' (?)
१५१०-रावोड बीका जोधावतने अपने नाम १२२०-बीसलरावने अजमेरमें राज्य किया। पर जङ्गलम 'बीकानेर' बसाया।
१२२४-आबूजीके ऊपर तेजपाल वस्तपालने १५४(१५०४?)-जोधंजीन चौहानका मारकर 'अचलगढ़' कराया।
और मँडावरको भंगकर 'धाना' बसाया। १२३६-श्राबूजीके ऊपर तेजपाल वस्तुपालने १५१२-जोधपुरमें भगडूया (यज्ञ) हुआ। उस मन्दिर बनवाया । (बहुत) द्रव्य खर्च किया।
समय सवा लाख याचकोंको एक वक्त जिमाया गया। १३००-जालोरगढ़के राव कान्हडदेने 'सोनिगर
१५१५-जोधावत द्वितीयने 'मेडत' बसाया । गढ़' कराया। पहला राजस्थान भिनमालमें था। पहले मानधाताने बसाया था । सूना खेड़ा
१३३७-बादशाह अलाउद्दीन गौरी जालोरमें बसाया गया। पाया।
१५३५-राव हारन राउतने 'फलवधीका १३५१-अलाउद्दीनने गढ़ जालोर लिया। राव कोट' कराया। कान्हडदे सोनिगरके ऊपर विलुप्त हुआ । कुँवर १५८४-राणा सांगाने बेढि की, चैत्र वदी १३ वीरमदे अपघात कर मरा पेट कटारी मारी। पेटके को मुगल भागा, बादको जेठ वदिमें राणा सांगा ऊपर पाभणी और हथियार बाँधकर उसने मामला देवलोकको प्राप्त हुआ। (युद्ध) किया। पीछे जब वीरमदे पकड़ा गया तब १५९१-राव मालदेने 'नागौर' लिया (विजय उसने कहा मुझे सुस्ता तो होने दो, सुस्ताते समय किया)।