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अनेकान्त
[ वर्ष ८
गुलाईको लिये हुए हैं वे इस बातको सूचित करते हैं जिस दिनसे यह स्वतन्त्रता मिली है उस कि उनपर मध्यवृत्तका असर पड़ा है और वे उसकी दिनसे भीतरी शत्रओंने और भी जोरके साथ समता तथा ज्योतिक प्रभावसे प्रभावित हैं। साथ सिर उठाया है-जिधर देखो उधर मार-काट, ही, विजय-चिह्नके रूपमें सुदर्शनचक्रका भी उसमें लूट-खसोट, मन्दिर-मूर्तियोंकी तोड़-फोड़ और समावेश हो सकता है और प्रकारान्तरसे सूर्यका भी, आग लगानकी घटनाएं हो रही हैं । इन जो सबपर समामरूपसे अपना प्रकाश डालता है, घटनाओंकी पहल पाकिस्तानने की, पाकिस्तान गैरस्फूर्ति-उत्साह-प्रदायक है और सबकी उन्नति-प्रगतिम मुसलिमोंकी संपत्तिको छीनकर अथवा उसे नष्ट-भ्रष्ट सहायक है।
करके ही सन्तुष्ट रहना नहीं चाहता बल्कि उनकी ___ झण्डेके तीन रङ्गोंमें एक सफेद रङ्ग भी है जो युवास्त्रियों तथा लड़कियोंसे बलात्कार करने और शुद्धिका प्रतीक है। वह यदि आत्मशुद्धिका प्रतीक उन्हें घरमें डालने तकमें प्रवृत्त होरहा है, शेष सबको होता तो उसे सर्वोपरि स्थान दिया जाता, मध्यमें बच्चों समेत कतल कर देने अथवा जबरन उनका धर्मस्थान दिया जानेसे वह हृदय-शुद्धिका द्योतक जान परिवर्तन करने के लिये उतारू है। और इस तरह गैर पड़ता है-हृदयका स्थान भी शरीरके मध्यमें है। मुसलमानोंकी अथवा अपनी बोलीमें काफिरोंकी इस मफेद रङ्गके मध्यमें ही अशोकचक्र अथवा संख्याको एक दम कम कर देना चाहता है ! चुनाँचे विजयचक्रकी स्थापना की गई है, जिसका स्पष्ट अगर कोई किमी तरह भाग-बचकर किसीकी शरण आशय यह जान पड़ता है कि विजय अथवा अशोक में अथवा शरणार्थी शिविरमें पहुँच जाता है तो वहाँ का सम्बन्ध चिनशुद्धिसे है-चित्तशुद्धिके विना न तक उसका पीछा किया जाता है और हिन्दुस्तानमें तो स्थायी विजय मिलती है और न अशोक-दशाकी आने वाले शरणार्थियोंकी ट्रेनों, बसों तथा हवाई ही प्राप्ति होती है । अस्तु ।
जहजों तक पर हमला किया जाता है और कितने ही ___ अब मैं इतना और बतला देना चाहता हूँ कि एसे मुसीबतज़दा बेघरबार एवं निरपराधी भारत को यह जो कुछ स्वतन्त्रता प्राप्त हुई है वह शरणाथियोंको भी मौतके घाट उतार दिया जाता है !! अभी तक बाह्य शत्रुओंसे ही प्राप्त हुई है--अन्तरङ्ग इस घोर अन्याय-अत्याचार और अमानुषिक व्यवहार (भीतरी) शत्रओस नहीं और वह भी एक समझौते की खबरोंसे सर्वत्र हाहाकार मचा हुआ है, बदलेकी के रूप में । समझौतेके रूपमें इतनी बड़ी स्वतन्त्रताका भावनाएं दिनपर दिन जोर पकड़ती जा रही है और मिलना इतिहासमें अभूतपूर्व समझा जाता है और लोग 'जैमेको तैसा' की नीतिपर अमल करने के लिए उसका प्रधान श्रेय महात्मा गाँधीजी द्वारा राजनीति मजबूर होरहे हैं, सारा वातावरण क्षुब्ध और सशंक में अहिंसाके प्रवेशको प्राप्त है । इस विषय महात्मा बना हुआ है, कहीं भी अपनेको कोई सुरक्षित नहीं जीका कहना है कि जनताने अहिसाको एक नीतिक समझता । कहॉपर किस समय क्या हो जाय, यही रूपमें ऊपरी तौरपर अपनाया है, उसका इतना फल आशङ्का लोगोंके हृदयोंमें घर किये हुए है। सारा है। यदि अहिंसाको हृदयसे पूरी तौरपर अपनाया व्यापार चौपट है और किमीको भी जरा चैन नहीं होता तो स्वराज्य कभीका मिल जाता और वह स्थिर है। इस तरह यह स्वतन्त्रता एक प्रकारकी अभिशाप रहने वाला स्वराज्य होता। यदि अहिंसाको छोड़ बन रही है और साधारण अदूरदर्शी एवं अविवेकी दिया और हिंसाको अपनाया गया तो जो स्वराज्य लोगोंको यह कहनेका अवसर मिल रहा है कि इस आज प्राप्त हुआ है वह कल हाथसे निकल जायगा। स्वतन्त्रतासे तो परतन्त्रता ही अच्छी थी। इधर पाम अतः इस समय सर्वोपरि प्रश्न प्राप्त हुई स्वतन्त्रता खड़े कुछ बाहरी शत्रु भी आगमें ईधन डालकर उसे अथवा स्वराज्यकी सुरक्षा तथा स्थिरताका है। भड़का रहे हैं और इस बातकी फिकरमें हैं कि इन