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अनेकान्त
[ वर्ष ८
१६६७-माघ सुदि ७ को राव चन्द्रसेन १७१५ (१७१४?) जेठमें राजा (जसवन्तसिंहजी) "देवीक" (देवलोकको प्राप्त) हुआ।
अपने मारवाड़ी घर आया। १६६९-राजा किसनसिंह उदयसिंहोतने अपने १७१४-धवलपुरमें दाराशाहने औरङ्ग-मुरादिसे नामपर 'किसनगढ़' बसाया।
लड़ाई की, दारा भागा, थटमें गया और औरङ्ग
मुरादि दिल्ली-आगरा गये। १६७०–पौष वदि १२ को राव अमरसिंहका जन्म हुआ।
१७१४-राणाजीने जमालपुरा मारा (विजय
किया)। १६७२–जेठ वदि को राव किसनसिंह अजमेरमें काम आया (मारा गया)।
१७१५-मुरादशाहको पकड़ा, पश्चात् बादशाह
ने राजा जसवन्तसिंहको बुलाया, परगने ५ हाथी १६७५--औरङ्गजेबका जन्म हुआ। १६७६-राजा सूरसिंह देवलोकको प्राप्त हुआ।
घोड़े सिरपाव १ और तलब दी और कंच करके खुद १६७६-राजा गजसिंहजीको टीका (राजतिलक)
बादशाह लाहौर गया और राजाजी तीन महीने
आगरा रहे । इधर शाह शुजाने सिर उठाया, बादशाह हुआ। - १६७७–श्रीपूज्य जसवन्तसिंहजीका स्वर्गवास
शुजाके मुकाबले को चला । “पछै राजा पातिशाह
जीवाण कनही तितरै पेलू मालूरा डेरा लंटीयाः।" हुआ। १६८३-राजा श्रीजसवन्तसिंहजीका जन्म हुआ।
१७१५-माह वदि ७को राजाजी मेडत आया, १६८४-बादशाह जहाँगीर फौत (मृत्युको प्राप्त)
दिन १८में जोधपुर आया। माघ सुदि ४को शाह दारा
२५०८० घोड़ांक साथ अहमदाबाद आया, तत्पश्चात हुआ। बादशाह शाहजहाँ गद्दीपर बैठा। १६८८-शाहजहाँ बादशाहने दौलताबाद लिया।
दिल्लीको आने लगा, महाराजा के पास खबर आई,
घोड़े १०००के माथ गाँव बाबीमें आया। माघ सुदि १६९५-आषाढ वदि ७ के दिन राजा जसवन्त
३को दारा सिरोही आया । घोड़े ६.०० साथ आए। मिहको आगगमें टीका (राजतिलक) हुआ। और
रावजीके बेटे उदयसिंहको साथमें लिया। फागन घरका टीका आषाढ़ सुदि ३को हुआ।
मुदिमें महाराजा और दारा मिगेहीमें इकटे हुए, १६९७-कातिक सुदि ११को रावकी सुलतान बाद को गाँव रावडायासे (दारा) वापिस आया। के साथ बेढ़ (लड़ाई) हुई; उसमें गव राइसिंह और १७१५ (१७१६?)-वैशाखमें, अजमेरकी लड़ाई जगमाल काम आप (मरणको प्राप्त हुए)।
हुई, जिसमें दाराशाह भागा, औरङ्गशाह बेटको शाह१७११-चैत्रमें लड़ाई हुई, दागशाह भागा और शुजाके मुकाबले भेजकर आगरा गया। राजा जयसिंह, औरङ्गजेब जीता।
राजा जसवंतसिंह और नवाब बादरखान तीनों दारा १७११-मेवाड व्याकुल हुआ, सादुल्लाखाँने शाहसे मिल गये । जाते हुए 'महाराजाने सिरोही चित्तौड़को हगया।
परणी'-सिरोहीको अपने आधीन किया अथवा १७१३-जालौर राजा जसवन्तसिंहका हआ। सिरोहीराजाकी कन्यासे विवाह किया?।
१७१४- असौज वदि ९के दिन शाहजहान १७१६-राजा जसवन्तसिंहका बेटा मोहणत बादशाह मरणको प्राप्त हुआ।
सुन्दरदास बादशाहजीके हजूरमें गया। १७१४ - चैत्रमें राजा जमवन्तसिहको शाहजादा १७१४ (१७१६?)-महाराजा (जसवंतसिंह?) औरङ्ग-मुरादिने २२०८० घोड़ों के साथ अपने सामने को नागौरकी पटी २३ प्राप्त हुई। विदा किया और जब वह उज्जैन पहुँचा तब वहाँ दो ५७१६-महाराजा (जसवंतसिंह ?) को 'अदाशाहजादे अहमदाबादसेआये २८००० घोड़ोंके साथ। बादी' का सूबा प्राप्त हुआ।