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ऐतिहासिक घटनाओंका एक संग्रह
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[सम्पादकीय ]
गत भादों मासमें, कानपुरके शास्त्र-भण्डारोंका हों और उन्होंने अनेक स्थलों परसे अपनी रुचि अवलोकन करते हुए, मुझे बाबू पद्मराजजीके पाससे, आदिके अनुसार यह संग्रह किया हो। और यह भी जो कि एक बड़े ही सजन-स्वभावके उदार-हृदय हो सकता है कि संग्रह किसी दूसरेका हो और व्यक्ति मालूम हए और जिन्होंने अपने शास्त्र- उन्होंने अपने उपयोगादिके लिये उसकी यह भण्डारको दिखलानेमें कई दिन तक मेरे साथ कई- प्रतिलिपि की हो । कुछ भी हो, इस संग्रहको लिखे कई घंटे परिश्रम भी किया है, दो एक छोटे-छोटे हुए १५० वर्षसे ऊपर हो चुके हैं। इसमें अनेक ग्रन्थोंकी प्राप्ति हुई थी, जिसके लिये मैं उनका बहत नगरों तथा गढ़-कोटों आदिके बनने-बनाने, बसने
आभारी हैं। उनमें से एक ग्रन्थ सात पत्रका है, बसाने अथवा हस्तान्तरित होने आदिके समयोंका जिसके प्रत्येक पृष्टपर १४ पंक्तियाँ और प्रत्येक उल्लेख है। अनेक राजाओंके जन्म लेने, राजगही पंक्तिमें ४० के करीब अक्षर हैं किन्तु अन्तिम पृष्ठपर प्राप्त करने, गद्दी छोड़न, लड़ने-झगड़ने, भागने तथा ३ ही पंक्तियाँ हैं, और इस तरह जिसका परिमाण मरने आदि सम्बन्धी समयोंके उल्लेखोंको भी यह लिये २३१ श्लोक जितना जान पड़ता है। इस ग्रन्थका हुए हैं। और भी राजा-प्रजा आदिसे सम्बन्ध रखने कोई खास नाम नहीं है। इसका प्रारम्भ "अथ वाली कितनी ही लौकिक घटनाओंके समयादिकका वाका लिप्यते” इस वाक्यसे होता है और उसके इमम समावेश है । सारे संग्रहमें विक्रम संवतादिका अनन्तर ही मंवतादिके उल्लेग्व-पूर्वक वाकात एक ही क्रम नहीं रखा गया है-कहीं-कहीं वे कुछ (घटनाओं) का निर्देश किया गया है, और इमलिये भिन्न क्रमसे भी पाये जाते हैं, जिसका एक उदाहरण इस एतहासिक घटनाओंका एक संग्रह कहना दिल्ली बसानेकी घटना है जिसे प्रथम स्थान चाहिये, जो हिन्दी गजगती आदि मिश्रित भाषा में गया है, तदनन्तर उज्जैन आदिको । अस्त, आज पाठकोंलिग्वा गया है। तोमर आदि अनेक राजवंशोंकी को इस संग्रहकी अधिकांश घटनाओंका (वंशावंशावली भी इसमें दी हुई है। अन्तकी चौहान वलियोंको छोड़कर) काल-क्रमसे, बिना किसी टीकावंशावली 'सीरोही देवडा' के नामसे दी है। यह टिप्पणके, परिचय कराया जाता है। विशेष विचार ग्रन्थ संवत १८४९ पोप बद। पञ्चमीका लिखा हुआ एवं जाँच-पड़तालका कार्य फिर किसी समय हो है और इसके लेखक हैं ऋषि रुघा; जैसाकि अन्तकी सकेगा:पंक्तिके निम्न अंशसे प्रकट है
संवत् और घटनाएँ __ "इति सीरोही देवडा ॥ सं० १८४६ पोस व ५ ७३१- राजा भोजने 'उज्जैन' बसाई । लि० ऋ रुघाः"
८०२–वैशाख सुदि ३ को चावडे वनवीरने बहुत सम्भव है कि ऋषि रुघा ही इसके संग्राहक 'पाटन' बसाई । १ इस भाषाका कुछ ज्ञान आगे परिचयमें उद्धृत किये ८०९-वैशाख सुदि १३ को राजा अनंगपाल हुए वाक्यांसे हो सकेगा।
तुबर (तोमर) ने 'दिल्ली' बसाई ।