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भनेकान्त
[वर्ष ८
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बी. ए. रेलवेद जमालगंज स्टेशनसे सीन मील पश्चिमकी किंपुरुषों गंधवों, विद्याधरों, किचरों मादिकी मूर्तियाँ भी अं.र अवस्थित है। इसका प्राचीन नाम सोमपुर था। बंगालके खुदी हुई मिलती है। पाल नरेशोंके समय, 5 वीं शताब्दी ईस्वीमें, यहाँ बौद्ध- सुन्दरबनविहार तथा तारादेवी मन्दिर निर्माण हुए बताये जाते हैं। सुन्दरवनका धन्य प्रदेश, प्राचीनकालमें समतट अथवा
रोकी दीवारोंपर पंचतन्त्र व हितोपदेशकी बागडी (यात्रतटी) राज्यमें सम्मिलित था।सन की सातवीं कथाएँ, रामायण और महाभारतके दृश्य तथा कृष्ण राधा शताब्दीमें, चीनी यात्री झेनसांगने इस 'समतट' प्रान में मादिकी मूर्तियों भी अंकित हुई पाई जाती हैं।
अनेक जैनमन्दिर देखे थे। किन्तु अभी तक उन प्राचीन ५वीं "शताब्दी स्वीमें इस स्थान पहाडपुर अपर मन्दिरोंका वहाँ कोई चिन्ह नहीं मिला है। नाम सोमपुरमें एक विशाल जैन मन्दिर अवस्थित था। कुछ चित्रित इंट, खण्डित पाषाण मूर्तियोंके टुकड़े, महास्थानगढ़
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स्कन्दगुप्त व कुशान राजा हुविकके सिके आदि फुटकर इसके ध्वंसावशेष माधुनिक कस्बे बोगराने ७ मील वस्तुएँ उपलब्ध हुई है। उत्तरकी ओर पाये जाते हैं। कनिंघम साहबने इस स्थानको ताम्रलिप्तिप्राचीन नगर पुणवर्धनके रूपमें चीन्हा था, जिसका कि इसका प्रचलित नाम तामलुक है और यह स्थान नाम एक मौर्यकालीन जैन शिलालेखमें भी मिलता है। मिदनापुर जिलेमें अवस्थित है। महाकाव्यों, पुराणों तथा ४थीसे ६ठी शताब्दी ईस्वी तक यह स्थान गुप्त-साम्राज्यके बौद्ध प्रन्यों में इस नगरके उल्लेख पाये हैं। ४ थी शताब्दी एक प्रधान सबेकी राजधानी था। वीं शताब्दीमें चीनी ईस्वीपूर्वसे १२ वीं शताब्दी ईस्वी तक यह स्थान एक यात्री हुनसांग यहाँ प्राया था, और १२ वीं शताब्दीके प्रसिद्ध बन्दरगाह तथा व्यापारका भारी केन्द्र रहा था। पश्चात यह नगर गौणताको प्राप्त होगया।
चीनी यात्रियों-फ्राधान, इत्सिंग तथा नसांगने यहाँकी .', इस स्थानसे जो पुरातत्त्व-संबंधी महत्वपूर्ण वस्तएँ यात्रायें की थीं। प्राप्त हो हैं उनमें एक प्राचीन खरिडत जैन मूर्ति भी . यद्यपि विद्वान लेखकसे यह बात छुट गई है, परन्तु है। (यह स्थान अन्तिम श्रतकेवली भद्रवाह स्वामीकी प्राचीन जैन साहित्यमें भी इसी ताम्रलिप्ति (ताममिति. जन्मभूमि थी)।
तामलिस्तिका, तामखिन्तिपुर) नगरके उल्लेख अनेक स्थलोंमैनामती तथा लालभाईकी पहाड़यां-
में आये हैं; जैसेकि प्राचार्य हरिषेणके वृहत् कथाकोषको ये पूर्वी बंगालके तिप्पेरा जिलेमें, कमिशा नगरसे कई कथाओंमें, जैनश्वेताम्बर भागोंमें, प्राचीन कालके ६ मील पश्रिमकी ओर स्थित है। इस स्थानका प्राचीन २५३ देशोंकी सूचीके अन्तर्गत वंगदेशकी राजधानीके रूप में, नाम (७वीं की शताब्दी स्वीमें) पहिरा था और यह इत्यादि । इन उलेखोंसे यह स्पष्ट सूचित होता है कि प्रसिद्ध 'समतद' प्रान्तकी राजधानी थी। उस काल में बर्मा प्राचीन कालमें जैनधर्मके साथ भी इस स्थानका विशेष और अराकानसे भी इस स्थानका गहरा सम्बन्ध था। संबंध रहा है। यहाँके राजा चन्द्रवंशी थे। पाख्यायिकाओंके प्रसिद्ध-सिद्ध- .. चन्द्रनाथराजा गोपीचन्द्रकी माता तथा गुरु गोरखनाथकी चेली रानी चिटगाँव जिलेमें सीताकुडके निकट 'चन्द्रनाथ' और मैनावतीके नामपर ही इस स्थानका नामकरण हुआ 'सम्भवनाथ' के प्रसिद्ध प्राचीन मन्दिर हैं। इस समय ये प्रतीत होता है।
दोनों मन्दिर शिवके माने जाते है और इस प्रदेशमें शैवमतडा. खॉ महाशयके शब्दों में-"मैनावती स्थानसे का जोर है। किन्तु उपर्युक दोनों माम क्रमसे तथा प्राप्त जैन तीर्थकरकी पाषाणमयी दिगम्बर प्रतिमा ऐसारे जैन तीर्थरोंके है , जिनकी कि अनेक प्राचीन मूर्तियाँ सूचित करती है कि इस प्रान्त में जैनधर्मका विशेष प्रभाव भी मिलती हैं। क्या आश्चर्य है यदि मूलमें इन जैनरहा है।" यहाँक मन्दिरोंके खंबरोंकी दीवारोंपर यों, तीर्थयारोंसे ही उन स्थानका संबंध रहा हो।