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अनेकान्त
[वर्ष ८
दिया गया है जो कि विजयानन्द मध्यमराजाके पुत्र थे, सेन्द्रक नामक निर्मल कुलरूप आकाशके उदित दीप्त-दिवाकर थे और राष्ट्रकूट वंशमें उत्पन्न हुए श्री देढ महाराजके द्वारा अभिमत (माने हुए राजा) थे।
और यह दान उन आगुप्तायिक राजाओंके ८४५ वर्ष बीतनेपर दिया गया है जो कि इस अवसर्पिणी कालके २४ वें तीर्थकर सन्मति श्रीवर्द्धमानकी वृद्धिंगत त र्थसन्ततिमें हुए हैं-अथात् भगवान वर्द्धमान (महावार) के तीर्थानुयायी थे। उन्ही वर्द्धमान तीर्थकरके शासनकी आदिमें एक श्लोकद्वारा मंगलाचरणरूपसे वृद्धि-कामना की गई है-लिखा है कि जिन्होंने रिपुओं-कर्मशत्रवोंका नाश किया है उन वर्द्धमान गण-समुद्रके वद्धमानरूप चन्द्रमाका दैदीप्यमान शासन (तीथे) वृद्धिको प्राप्त होवे, जो कि मोह के शासनवम्प है-मोहपर कंट्रोल रखने अथव विजय प्राप्त करनेकी एकनिष्ठाको लिये हए है ।
और दानपत्रके अन्त में यह घोषणा की गई है कि 'जो इस दानका अपहरण करता है वह पंच महापातकों से युक्त होता है हिंसादि पांच धोरपापोंका भागी होता है।' दानपत्र में कुल १६ पंक्तियाँ हैं और इसलिये उसे पंक्तिक्रमसे ही आज अनेकान्त-पाठकों के सामने रखा जाता है :। वर्द्धतां वर्द्धमानेन्दोवर्द्धमानगणोदधेः शासनं नाशित2 रिपार्भासुरं मोहनाशनम् ।। इहास्यामवमपिण्यान्तीथ3 कराणां चतुर्विंशतितमस्य सन्मतेः श्रीवर्द्धमानस्य बर्द्धमा4 नायां तीत्थमन्ततावागुप्तायिकानां राज्ञामष्टासु वर्षशते5 पु पंचचत्वारिंशदग्रेषु गतेषु राष्ट्रकूटान्वयजातश्रीदे6 ढच (स्य ?) महाराजस्याभिमतः श्रीसेन्द्रकामलकुलाम्बरोदितदी7 प्रदिपाकरा विजयानन्दमद्धयमराजात्मजः श्रीमानिन्द्रणन्दाधि8 राजः स्ववंश्यानामात्मनश्च धर्मवृद्धये कण्माण्डीविषये 9 पर्वतप्रत्यासन्तजलारग्रामे जम्बुरखण्डगणस्यायज्ञान10 दर्शनतपस्सम्पन्नाय प्राय॑णन्द्याचार्याय भगवदह|| प्रतिमानवरतपूजार्थ शिक्षकग्लानवृद्धानां च तपस्विनां वै12 यावृत्त्यार्थं ग्रामस्योत्तरतः पूर्विणग्रामविरेयसीमकं द13 क्षिणेण मुञ्जलमार्गपर्यन्तं अपरतः एन्दाविरुत्स14 हितवल्लीकं तस्मादुत्तरतः पुष्करणी ततश्च यावत्पूर्वविश्य15 के राजमानेन पंचाशन्निवर्तनप्रमाणक्षेत्रन्द16 त्तवानेतद्यो हरति स पंचमहापातकसंयुक्ता भवति [1]
इस शासनपत्रमें उल्लेखित आगुप्तायिक राजाओं, उनके संवत् , राष्ट्रकूटवंशी देढ महाराज, सेन्द्रककुल, विजयानन्द राजा, उसके पुत्र इन्द्रनन्द आधिराजा, कण्माण्डी देश, जलार ग्राम, पूर्बिण