Book Title: Anekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 298
________________ २७८ अनेकान्त सोलह कारणवयविहि १५ सुदसमी कहा। इन कथाओंसे नं० १ १० और १२ नंवरकी तीनों कथाएँ ग्वालियरके जैसवाल वंशी चौधरी लक्ष्मण सिंहके पुत्र पंडित भीमसेनके अनुरोधसे रची गई हैं। और नं० २ तथा नं० १३ की ये दोनों कथाएँ ग्वालियरवासी संघपति साहू उद्धरणके जिनमन्दिरमें निवास करते हुए साहु सारंगदेवके के पुत्र देवदासकी प्रेरणाको पाकर बनाई गई हैं । नं० ० की कथा उक्र गोपालवासी साहु यीधाके पुत्र सहजपाल के अनुरोधसे लिखी गई है। शेष नौ कथाओंके सम्बन्धमें निर्मापक भव्य श्रावकका कोई परिचय दिया हुआ नहीं है। [ वर्ष म सांखयई विहाण कहा- इस कथा के रचयिता विमलकीर्ति हैं, इनकी गुरुपरम्परा आदिका कोई परिचय प्राप्त नहीं हो सका | भट्टारक गुणभद्रका समय भी विक्रमकी १६ वीं शताउदीका पूर्वार्ध है; क्योंकि संवत् १५०६ की धनपाल पंचमी कथाकी प्रशस्तिसे मालूम होता है कि उस समय ग्वालियर के पट्टपर भट्टारक हेमकीर्ति विराजमान थे और संपत् १५२१ में राजा कीर्तिसिंहके राज्य में गुणभद्र मौजूद थे, जब ज्ञानार्णवकी प्रति लिखी गई थी । इन्होंने अपनी कथाओं में रचना समय नहीं दिया है। इसीसे निश्चित समय मालूम करने में बड़ी कठिनाई हो जाती है। देवदत्त हैं। इनकी गुरुपरम्परा और समयादि भी प्राप्त नहीं सुगंधदसमी कहा इस कथा कर्ता कविर हो सका । रविवउकहा और अणन्तवयकहा इन दोनों कथाथोंके रचयिता मुनि नेमिचन्द्र हैं जो माधुर संघ में प्रख्यात थे । नेमिचन्द्र नामके श्रनेक विद्वान हो गए है अतः सामग्री के अभावसे प्रस्तुत नेमिचन्द्र की गुरुपरम्परा और समयादिके सम्बन्ध में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता इनके अतिरिक्त 'अणं तवयकहा' और 'मुत्तावली विहायकहा' इन दोनों कथायोंके कर्ता अभी अज्ञात हैं, प्रस्तुत कथाओं में कर्ता कोई परिचय दिया हुआ नहीं है। 1 इस तरह इस लेखमें दो कथाकोपों, दो बड़ी कथाओं और छोटी छोटी तीस कथाओंका परिचय दिया गया है। आशा है अन्वेषक विद्वान इन कथाओं के अतिरिक जो और दिगम्बर तथा श्वेताम्बर कथा साहित्य हो उसपर भी प्रकाश * देखो, धनपाल पंचमी कथाकी लेखक प्रशस्ति, कारंजाप्रति । डालने का यत करेंगे, जिससे इस कथा साहित्यके सम्बन्धमें जनताकी विशेष जानकारी प्राप्त हो सके। ता० २० । १० । ४६ ] और लोग सं० प्रा० सी० पी० एड बरार । x देखो, 'ज्ञानार्णव' श्रारा प्रतिकी लेखक प्रशस्ति । वीरसेवामन्दिर, सरसावा 1 'मेरा यह विश्वास है कि श्रहिंसा हमेशा के लिये है । वह आत्माका गुण है; इसलिये वह व्यापक है; क्योंकि आमती सभीके होती है अहिंसा सबके लिये है, सब जगहोंके लिये है, सब समयोंके लिये है। अगर दरसल आमाका गुण है. तो हमारे लिये वह सहज हो जाना चाहिये । श्राज कहा जाता है कि सत्य व्यापार में नहीं चलता, राजकाजमें नहीं चलता । तो भिर वह कहाँ चलता है ? अगर सत्य जीवनके सभी क्षेत्रो में और सभी व्यवहारोंमें नहीं चल सकता तो वह कौड़ी कीमत की चीज नहीं है। जीवनमें उसका उपयोग ही क्या रहा? मै तो जीवन हरएक व्यवहारमें उसके उपयोगका नित्य नया दर्शन पाता हूँ !' -महात्मा गांधी "दुनियामें जितने लोग दुखी हुए हैं, वे अपने सुखके पीछे पड़े, इसीलिये दुखी हुए और जो दुनिणमें सुखी पाये जाते हैं, ये सब औरोंको सुखी करनेकी कोशिशके कारण ही सुखी हैं। I समझ लेते । " काश, केवल हमारे धर्मोपदेशक ही नहीं, किन्तु दुनिया के राजनैतिक नेतागण भी इस सिद्धान्तको - काका कालेलकर

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