________________
किरण ६-७]
प्राचीन जैनमन्दिरोंके ध्वंसावशेषोंसे निर्मित मस्जिदें ।
२८१
आकृतियों परसे लीगई हैं ? गजनीकी मीनारो के है। पूर्वी द्वारके बीचसे जो दृश्य दीख पड़ता है वह तलभागों को आकृतियों को देखते हुए प्रथम निष्कर्ष बड़ा ही मनोहर है और मध्य गुम्बदके दोनों ओर की संभावना सी प्रतीत होती है; किन्तु अनको स्थित क्रमबद्ध स्तंभावलीका जो दृश्य छोरपरसे मन्दिरों, विशेषकर मैसूर तथा अन्य स्थानों के जैन दीख पड़ता है वह अत्यन्त कमनीय है । यह गूढ़मन्दिरों की ताराकृति (सितारेनुमा शकल) से यही छन्नपथ (Corridor) प्रायः पूर्ण है, किन्तु उत्तर प्रतीत होता है कि वे मूलतः भारतीय ही हैं। ओर वाले ऐसे पथका तीन चौथाई भाग तथा
दक्षिणी पक्ष एवं अपेक्षाकृत अधिक सादे स्तंभोंका कुतुबकी मस्जिद
अत्यल्पश ही अब अवशेष रह गया है। सर्वाधिक कुतुबुद्दीनकी मस्जिद, जो कि सारे 'कुठवतुल सुन्दर स्तंभ पूर्वी आच्छादित पथकी उत्तर दिशामें इस्लाम' (इस्लामकी शक्ति) कहलाती है, सामनेसे स्थित हैं; उनके ऊपर अंकित पुष्पपात्रों (फूलदान, पीछकी ओर, स्थूल रूपसे १५० फीट लम्बी है और गमले) जिनमें से फूल पत्तियाँ बाहर को लटक रही हैं, आजू बाजू उसकी श्राधी (लगभग ४५ फीट) चौड़ी प्रथानुसारी पुष्पमालायुक्त व्याघ्रमुग्वों, गुच्छेदार है। उस्म के मध्यका खुला प्रांगन १४२ फीट लम्बा और रस्सियों, जंजीरोंसे लटकती घंटियों और अनेक १०८ चौड़ा है। पूर्वी और उत्तरी दिशाके द्वार अभी कौसुमी (फूलदार) रचनाओंका उत्कीर्णीकर ग ध्यानभी समूचे हैं और उनपर मस्जिदकी स्थापना-संबंधी पूवक परीक्षण करने योग्य हैं । दीवारसे दूसरी अभिलेख अंकित हैं। दक्षिणी दिशाका द्वार और पंक्तिमें, मध्यस्थलसे उत्तरकी आर पांचवें स्तंभपर उसके साथ ही पश्चिमी सिरेका बहभाग तथा एक वत्सयुक्त गौ (गाय-बछड़ा) अङ्कित है, और उमी दक्षिणी दीवार की सम्पूर्ण पश्चिमी संभावली अदृस्य पंक्तिमें आंगनके सिरेपर पांचवाँ स्तंभ समस्त हो चुकी हैं। यद्यपि यह मस्जिद पूर्णतः भारतीय स्तंभों में शायद सर्वाधिक सुन्दर स्तंभ है । अनेकों बल्कि वस्तुतः जैनमंदिरों की सामग्रीसे निर्मित है अधखंडित जैनमूर्तियाँ और कितनी ही अखंडित तथापि इसका प्रत्येक भाग दुबारा ही निमित हुआ भी, जो कि मास्टर द्वारा पूर्णतया छिपाई जा सकती है। ये मत भी, कि आंगनका प्राकार मूल तथा विस्तृत थीं, इन स्तंभोंपर उत्कीणे हुई देख पड़ेंगी। महराबदार परदेके पीछे वाले स्तंभ उसी प्रकार नोट-प्रस्तुत लेख, ला. पन्नालालजी जैन अग्रवाल अवस्थित हैं जैसे कि वे भारतीयों द्वारा निर्मित देहली द्वारा प्रेषित 'All about Delhi' (सब कुछ किये गये थे, वैसे ही भ्रमपूर्ण हैं। इसमें शक नहीं देतली सम्बन्धी) नामक पुस्तक के पृ० ४१, ४४-४५, ४६. कि प्रारंभमें दीयारों का बाहिरी भाग उसी प्रकार ४७, ११, १८७ परसे लिये गये अंग्रेजी उद्धरणोंका प्लास्टरसे पूर्णतया ढका हुआ था जैसा कि अन्दरूनी अनुवाद है। भागके खंभे; किन्तु यह सब प्लास्टर अब उतर का
-ज्योतिप्रसाद जैन, एम. ए.
**