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अनेकान्त
[वर्ष ८
प्रार्थनामें 'उठ गई सभा म्लेच्छकी' आदि कहकर मुसलमानों दोपाये भेड़-बकरियोंसे बदतर होगये हैं। वर्ना क्या कारण है के प्रति घृणा प्रगट करता है-प्रतिबन्ध तो क्या विरोधमें कि जो स्त्री एक बार अपहृत करली गई, वह कभी वापिस एक शब्द भी न कह सकी। इसका कारण निम्न उदाहरण न पाई और वह पातताइयों में घुलमिल एकाकार हो गई। से समझ में आयेगा।
और उन्हींको सन्तान अपनी माताओंके अपमानका बदला एक बार एक देशभकने व्याख्यान देते हुए कहा था- आतताइयोंसे लेने के बजाय निरन्तर हिन्दुओंकी जान-मालके
'चीनियों और जापानियोंकी शमोशयाहतमें यूं तो घातक बने रहते हैं। बकौल महात्मा गाँधी 'भारतीय मुसलकाफी फर्क होता है, पर हिन्दुस्तानियों के लिये यह मुश्किल मान ११ फीसदी ऐसी ही देवियोंकी सन्तान हैं।' है। उनकी पहचानका सरल उपाय यह है कि किसी चीनी सन २४ में जब साम्प्रदायिक उत्पात हो रहे थे एक के पाँवमें पीछेोठं.कर मार दी जाये तो वह पलटकर ठोकर हिन्दू नेताके यह कहनेपर कि मुसलमानी सल्तनतके जमाने में मा नेका कारण पूछेगा और जापानी ठोकरका जवाब ठोकरसे हिन्दुओंको बलात मुसलमान बनाया गया।' इसन निज़ामी दे चुकनेपर वजह दर्याफ्त करेगा । असावधानीके लिये ने कहा था कि ऐसा कहना हिन्दुओंका अपमान करना है। क्षमा मंगनेपर तो क्षमा करेगा, जानबूझकर शसारत की गई जो हिन्दू मुसलमानको छुअा पानी पीनेसे मरना बेहतर समतो फिर दुबारा प्रहार करेगा । तभी मेरे मुँहसे निकला झते हैं वह जबरन मुससमान क्योंकर बनाये जा सकते हैं। कि कोई यूरोपियन हिन्दुस्तानमें हिन्दू-मुसलमानको भी और यह जबर्दस्ती बनियों, ब्राह्मणोंपर तो मानी भी जा इसी तरह बाबासानी पहचान सकता है। हिन्दू ठोकर लगने सकती है, पर बे राजपूत जो बात-बातमें तलवार निकाल पर पूछेगा 'श्रापके चोट तो नहीं लगी, क्षमा करना ।' लेते थे, जबरन कैसे मुसलमान बनाये जा सकते थे। मुसलमान ठोकर लगानेवालेको कमजोर देखेगा तो हमला और नौ मुसलमानोंमें अधिकांश संख्य। राजपूतों की ही है करेगा, बलवान देखेगा तो ऊपरने हँसता हुया और मनमें ये कासके बाहर है कि वे कभी जबरन भी अपना धर्म खो गालियां देता हुश्रा बढ़ जायगा। सिक्ख इसी तरहके बल- सकते थे। वान लोगोंमें हैं।
बात चाहे हसन निजामी साहबने एक दम झूठ कही, जिन बंगलियोंने कलकरोसे उठकर अंग्रेजोंकी राजधानी पर हमारे पास इसका जवाब नहीं है। नेता कहते हैं-बंगदिल्ली फेंक दी। बंग भंगका नशा उतार कर जिन्होंने जूतेसे नारि को सीताका श्रादर्श उपस्थित करनेको । मै पूछता हूं नाक काटी, चटगांवके शस्त्रागारको लूटकर अंजोंके धाक सीताका वह कौन-सा श्रादर्श था, जो हिन्दु-ललनाएँ अमल की बुनियाद सु! दी, समूचे भारतमें बमों और पिस्तौलोंका में नहीं ला रही हैं। हिन्दु-नारियां तो आज उसी आदर्शपर आतंक फैलाकर शक्रिशाजी गवर्नमेण्टको छासी दहला की चल कर अपनी सन्तानका भक्षण कर रही हैं। और जिसके एक सपून 'सुभा' ने नाकों चने चबा दिये, सीताको हरण करनेके लिये रावण साधुका वेश बनाकर श्राज उन्हीं बंगवारों की माताएँ, बहनें और पुत्रियों क्यों प्राश तो वही मीता जो पर-पुरुषसे एकान्त में बात करना आतताइयों के बरोंमें चुपचाप आंसू बहा रही हैं । बलवान पाप समझती थी और अनेक घास दासियोंके समीप रहनेपर मार तो सकता है, पर जबरन बांधकर नहीं रख सकता। भी अशोक वाटिकामें तिनकेकी श्रोट देकर रावणको प्रत्युत्तर
मनुष्य तो मनुष्य, भेड़-बकी भी जबरन बाँधकर नहीं देती है उसी सीताने निर्जन बनमें एक पर-पुरुषसे बात करने रखी जा सकती, उनके मनमें ही जब दासता समा जाती का श्रा:र्श उपस्थित किया ! लक्ष्मणको शंकित रष्टिसे देखने है, तभी वह बँधी रहती है, अन्यथा वह ऐसा शोर मचाती वाली सीता उसकी बनाई रेखाके बाहर पाई । और रावण हैं कि बाँधनेवाला तो क्या, उसके पड़ौसियोंकी भी नींद के हरण करनेपर मौन सत्याग्रहका श्रादर्श उपस्थित किया। हराम हो जाती है। मनुष्य तो आखिर मनुष्य है। बचपनसे ग्रही आदर्श तो आज हिन्दू मारियां उपस्थित कर रही हैं सुनते आये हैं कि चौपाया तो बाँधकर रखा भीजा सकता है, फिर भी उन्हें उपदेश दिया जाता है! दोपाया नहीं। मगर अब तो इसके विपरीत हो रहा है। सीता शरीरसे अवश्य निर्बल थी, परन्तु उसके पास