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अनेकान्त
[वर्ष ८
राजनीति Politics), नागरिकशास्त्र (Civics श्रादिका कारण ही व्यवहारधर्मको श्रामधर्म या पारलौकिक धर्मकी गहरा अध्ययन करके मानव प्राणियोंके स्वभावों तथा सिद्धि कहा गया है। इसकी सिद्धिके बगैर हम कुछ नहीं प्राकृतिक नियमांको समझकर उनको धर्ममें सन्निहित कर कर सकते । इस ग्रा.र्शपर ही उनकी नई दुनियाकी लिया था। यही नहीं बल्कि दुनियावी जरूरतों र ध्यान बुनियाद खड़ी हो सकती है। परमार्थका बीज यहीं बोया देकर इन प्रा.शौं अपितु नैतिक गुणोंको-जिनका होना जा सकता है तथा कोई भी नागरिक त्याग, सेवा, दया, एक अच्छे नागरिकके लिए अन्त आवश्यक है- कर्तव्य श्रादिके नैतिक तत्त्वों द्वारा ही अपने जीवनमें स्वर्गक व्यवहारिक रू। यिा और यह चीजें लौकिक या व्यवहार मखीका अनुभव करके विश्वकी शान्ति में सहायक सिद्ध धर्नमें समाविष्ट हो गई। प्राचीन कालके श्रादर्श व्यक्ति हो सकता है। श्राने समय के अच्छे नागरिक कहलाये जा सकते हैं। किन श्राजकल अनेक देशोंके राज्यशासनने जिस ये-लौस होते थे, स्वार्य उन्हें बता नहीं था, दूसरोंपे लडना वे वातावरणको पैदा किया है. उससे नागरिकोंको न पाप समझते थे । दूसरोंकी सेवा करना, पड़ोसियोंकी तो उन्नति करने का मौका ही मिलता है और न विश्वकल्याण सहाता व अभ्यागतों, प्रवासियों व अतिथियोंका उचित तथा शान्ति का स्वग्न ही सस्यसष्टिमे परिणत किया अादर करना, उन्हें भोजन देना अा. पुण्य समझा जाता जा सकता है। इस मसीनों के युगमें इस प्रौद्योगिक तथा था। ये चीजें उनके निन्य तथा नैमित्तिक कार्यों में शुमार व्यावसायिक प्रतियोगिताके दौरमें खुदगरजीको विशेष (परिगणित) की जाती थीं। ऐसे ही शुद्ध व्यक्रि राज्य-शासनके महत्व दिया गया है। स्वार्थ भावनाएं प्रदीप्त होती जा जिम्मेदार होते थे। सारांश यह कि राज्य अपने सामने रही हैं तथा दूसरों के व्यत्रियको मिटाने पर राए तुले हुये उच्च श्रा.र्श रखता था और इसीलिए वह राष्ट्र, समाज नफरत की जहरीली भावना प्रधागतिकी तरफ उन्हें ले जा और देशकी हर प्रकारकी उरातिका जिम्मे.ार समझा जाता रही है. शक्ति और स्वार्थका बोलबाला है और तुर्फा यह है था । Proj Herold Laski का बयान है कि कि प्रत्येक राष्ट शान्ति-स्थापनकी दुहाई दे रहा है। बेचारी "प्रत्येक राज्यशासन उनके नागरिकों के चरित्रका बाईना है। जनता न तो अपने उद्धारका कोई ज्ञान रखती है और न उसके अन्तर्गत व्यक्ति तथा समानके नैतिक चरित्रका इस मार्ग पर अग्रसर ही हो सकती है। इन राजनीतिज्ञों की प्रतिविम्ब उसमें दिखाई देता है।" हम तत्वको जैन कूटनीतिने ही सारे विश्वमें सन्तोष की भावना पैदा कर साहित्यमें कथित पुराणों और कथागर देखें तो उपरत दी है। क्या ही अच्छा हो कि ये लोग तनिक विचारसे काम बातोंकी सत्ता अनापास ही सिद्ध हो जाती है। वास्तवमें लें और सच्ची मानवता का सबूत दें:श्रा.र्श राजनीतिज्ञों द्वारा ही सुशासन संचालित होता है। "कथनी मीठी खाँड सी करनी विष की लोय। यह उत्तम नरपुंगव-जिनके हृमार अपने अनुयायि की कथनी तज करनी को तो विप से अमृत होय ॥" चोट होती है-वातावरण को शुद्ध करने के लिए, फलप्रातिकी इसी तरह जो सुख-शान्तिकी स्थापनामें अनैतिक व प्राशा न रखते हुए, राज्यशासन या धर्मशासनको चलाते प्राकृतिक साधनों के अदलंबन द्वारा चिरस्थायी यश प्राप्त हैं । मानवप्राणी जिस समाज या राष्ट्रमें रहता हैं करना चाहते हैं, मानों वह पानशम्से फूल तंद कर लाने के उसका जीवन उसी राष्ट्रको उन्नते या अवनतिपर सदृश ही हास्यासद विचार रखते हैं । विय से अमृतफल निर्भर है । इसलिए राजनीतिज्ञ एवम् धार्मिक सिद्धान्तोंके की अाशा नहीं की जा सकती -बबूल को बोकर श्राम नहीं प्रचारक जनसाधारणके कल्याण की भावनाको लक्ष्यमें रखते खाये जा सकते, चालू से तेल नहीं निकाला जा सकता, जलको हुए बड़ी योग्यतासे शासनका रथ हाँकने में व्यस्त रहते हैं। मथकर नवनीत नहीं किकाला जा सकता। इसी तरह 'क्षेमं सर्वप्रजानां प्रभवतुबलवान् धार्मिको भूमिगलः' आदि हिंसा'मक उपायों द्वारा शान्ति स्थापित नहीं की जा सकती। पाठ इसी बातको ध्वनित करते हैं। व्यावहारिक जीवनकी जब हमारी नीयत ही बुरी हो तो अच्छे फलोंकी पाशा रखना कामयाबी ही उनका परमोच्च ध्येय रहता है। शायद इसी ही व्यर्थ है। अोल्डस हकसले के प्रसिद्ध, मान्य ग्रन्थ