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अनेकान्त
[वर्ष ८
ममता
द्रव्यस्त्रीकी तरह भावस्त्रीके भी अपर्याप्त अवस्थामें चौथा भावस्त्रीका प्रकरण सिद्ध नहीं हो गुणस्थान नहीं होता है, यह ऊपर बतला दिया गया है। परिहार-यह प्राक्षेप सर्वथा असंगत है । हम ऊपर और गोम्मटसार जीवकाण्डकी निम्न गाथासे भी स्पष्टत:
कह पाये है कि सम्यग्दृष्टि भावस्त्रियोमें भी पैदा नहीं होता, प्रकट है:-. ..
तब वहां सूत्रमें 'असंजद ठाणे' पदके जोड़ने व होनेका प्रश्न हेट्टिमछप्पुढवीणं जोइसि-वण-भवण- सम्बइत्थीणं ही नहीं उठता । स्त्रीवेदकर्मको लेकर वर्णन होनेसे पुण्णदरे ण हि सम्मो ण सासणे गारयापुरणे ॥ भावस्त्रीका प्रकरण तो सुतगं सिद्ध हो जाता है।
गा० १२७ ॥ - प्राक्षेप - यदि ८६, ६०, ६१ सूत्रोंको भाववेदी अर्थात् 'तीयादिक छह नरक, ज्योतिषी व्यन्तर पुरुषके मानोगे तो वैसी अवस्थामें ८६ वे सूत्र में 'असंजद भवनवासी देव तथा सम्पूर्ण स्त्रियाँ | इनकी अपर्याप्त सम्माइट्रि-ट्राणे यह पद है उसे हटा देना होगा क्योंकि अवस्थामें सम्यक्त नहीं होता । भावार्थ-सम्यक्त्व सहित- भाववेदी मनुष्य द्रव्यस्त्री भी हो सकता है उसके अपर्याप्त
के द्वितीयादिक छह नरक, ज्योतिषी, व्यन्तर, अवस्थामें चौथा गुणस्थान नहीं बन सकता है। इसी भवनवासी देवो और समग्र स्त्रियोंमें उत्पन्न नहीं होता।' प्रकार ६० वे सूत्रमें जो. 'संजद-टाणे' पद है उसे भी हटा मापने 'भावस्त्रीके असंतसम्यग्दृष्टि चौथा गुणस्थान भी देना होगा। कारण, भाववेदी पुरुष और द्रव्यस्त्री के संयत होना और हो सकता है। इस अनिश्चित बातको सिद्ध गुणस्थान नहीं हो सकता है । इस लिये यह मानना होगा करने के लिये कोई भी पागम प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया। कि उक्त तीनो सूत्र द्रव्यमनुष्य के ही विधायक है, भाव. यदि हो, तो बतलाना चाहिये, परन्तु अपर्याप्त अवस्थामें मनुष्यके नहीं ? भावस्त्रीके चौथा गुणस्थान बतलानेवाला कोई भी श्रागम परिहार-पण्डितजीने इस आक्षेपद्वारा जो श्रापत्तियाँ प्रमाण उपलब्ध नहीं हो सकता, यह निश्चित है। बतलाई हैं वे यदि गम्भीर विचारके साथ प्रस्तुत
की गई होती तो पण्डिमजी उक्त परिणामपर न पहुंचते । आक्षेप-जब ६२ वा सूत्र द्रव्यस्त्रीके गुणस्थानोंका
मान लीजिये कि ८६ वें सूत्र में जो 'असंजदसम्माइद्वि-हाणे' निरूपक है तब उससे श्रागेका ६३ वां सूत्र भी द्रव्यस्त्रीका
पद निहित है वह उसमें नहीं है तो जो भाव और द्रव्य निरूरक है। पहला ६२ वाँ सूत्र अपर्याप्त अवस्थाका निरूपक है, दूसरा ६३ वाँ पर्याप्त अवस्थाका निरूपक है,
दोनोंसे मनुष्य (पुरुष) हे उसके अपर्याप्त अवस्थामें चौथा इतना ही भेद है। बाकी दोनों सूत्र द्रव्यस्त्रीकं विधायक
गुणस्थान कौनसे सूत्रसे प्रतिपादित होगा ? इसीप्रकार मान
लीजिये कि ६० वे सूत्रमें जो 'संजद-टाणे' पद है वह हैं। ऐमा नहीं हो सकता कि अपर्याप्त अवस्थाका विधायक १२ वां सूत्र तो द्रव्यस्त्रीका विधायक हो और उससे लगा
उसमें नहीं है तो जो भाववेद और द्रव्यवेद दोनोंसे ही हुअा ६३ वा सूत्र पर्याप्त अवस्थाका भावस्त्रीका मान
पुरुष है उसके पर्याप्त अवस्थामें १४ गुणस्थानोंका उपपादन
कौनसे सूत्रसे करेंगे? अतएव यह मानना होगा कि ८६ लिया जाय ?
वां सूत्र उत्कृष्टतासे जो भाव और द्रव्य दोनोंसे ही मनुष्य . परिहार-ऊपर बताया जा चुका है कि ६२ वाँ (पुरुष) है, उनके अपर्याप्त अवस्थामें चौथे गुणस्थानका सूत्र 'पारिशेष्य' न्यायसे स्त्रीवेदी भावस्थाकी अपेक्षासे है।
प्रतिपादक है और ६० वा सूत्र, जो भाववेद और द्रव्यवेद और ६३ वां सूत्र. भावस्त्रीकी अपेक्षास है ही। अतएव दोनोंसे परुष है अथवा केवल द्रव्य वेदसे पुरुष हे उसके उक्त प्राक्षेप पैदा नहीं हो सकता है।
पर्याप्त अवस्था में १४ गुणस्थानोंका प्रतिपादक है। ये __आक्षेप-जैसे ६३ वे सूत्रको भावस्त्रीका विधायक दोनों सूत्र विषयकी उत्कृष्ट मर्यादा अथवा प्रधानताके मानकर उसमें 'संजद' पद जोड़ते हो, उसी प्रकार ६२३ प्रतिपादक है, यह नहीं भूलना चाहिये और इस लिये सूत्र में भी भावस्त्रीका प्रकरण मानकर उसमें भी असंयत प्रस्तुत सूत्रोंको भावप्रकरणके मानने में जो श्रापत्तियाँ प्रस्तुत (असंजद-ठाणे) यह पद जोड़ना पड़ेगा। बिना उसके जोड़े की हैं वे ठीक नहीं हैं । सर्वत्र 'इष्टसम्प्रत्यय' न्यायसे