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किरण ६-७]
भगवान महावीर और उनका सन्देश
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किन्तु विज्ञान जैसी पवित्र वस्तुका दुरुपयोग करने वाले नरह बुद्धिने निरे पाशविक बलपर फतह पाई थी, उसी स्वपिपासु नररूपी दानवोंको क्या कहें ? वे इष्ट दानव तरह अब त्यागके बलवूनपर लोभ और अहंकारका दमन अवश्य अपनी काली करतूतोंकी सजा पायेंगे, क्योंकि उन्हीं के करना होगा। प्रायो मानव ! अामाको कारागारले निकालने में निर्मित हथियार उन्हीं के विरद्ध उपयोगमें लाए जावेंगे।" मदद दो, मानवके प्रति श्रद्धा, त्याग और मानवताको प्रगट
गुरुदेवकी भविष्यवाणी सच निकली। जर्ममीने भयंकर करी" थादि। शस्त्र तथा अस्त्रोंये सुसजित होकर सारे धरातलको श्राश्चर्य
"यही है इबादत, यही दीनो ईमों। चकित कर दिया था. और ऐसा प्रतीत होरहा था कि इन कि काम पाये दुनियों में इनसा के इनसों।" ... नतनतासे परिपूर्ण अविष्कारोंसे बलपर सारे संसारपर उसकी
ऐतिहासिक दृष्टिले धर्मका जन्म विजय-पताका फहराने लगेगी। किन्तु अाज उसी शस्त्रास्त्र और उसी रणनीतिने जिमका वह निर्माता था उसको तहस
ऐतिहासिक दृष्टिसे यदि छानबीन की जाए तो इस नहस करके ही दम लिया DR सट हो गया है। ख्यात बातका पता चलता है कि सदियों पहिले इस स्नगर्भा नामा डाक्टर बालने भी इसी मतको प्रदर्शित किया है:- भारत-भूमिमें नैतिकताको आवाज गंजती थी, मनुष्यके "तुम्हारी तहजीब अपने खंजरमे श्रापही खुदकशी करेगी. प्रति मानवताका व्यवहार करना ही धर्म समझा जाता था। जो शारखे नाजपे याशियाना बना वो नारायदार होगा।" नैतिक जिम्मेदारीके अनुसार ही सांसारिक कार्य चलते थे।
सच तो यह है कि पाश्चिमात्य सभ्यता तथा संस्कृति मानव प्राणी जय दृसरोंको अपने प्रति सद्ग्यवहारसे पेश देखने में श्रयन्त सुन्दर प्रतीत होती है। इसका रूप तथा प्राने देखता तो वा भी स्वाभाविक तौरपर अनायास ही भंगार श्रोखोंमें चकाचौध पैदा करता है। यह एक नशा है दूसरेके प्रति प्रेम प्रकट करता, उसके न्याय्य अधिकारों के किन्तु इसका परिणाम अत्यन्त भयावह तथा प्रामगाशका संरक्षण व संवर्धनमें लग जाका अर्थात द्वेष और मरसर कारण है। यह भ्रान्त धारणा समस्त संसारका सर्वनाश प्रतियोगिता तथा मुकाबलेके बदले सरलता और प्रेम तथा करेगी, अतएव किसी तरह भी इसे पूर्वीय लिबास नहीं पारस्परिक सहायताके मार्गपर चलने लगता । किनु संसारको पहिनाया जा सकेगा। खुद पश्चिममें अाज अस्त्र तथा शस्त्रों गति सदा एकसी नहीं रही। शनैः शनै: नैतिक जिम्मेदारीको की झनकार तथा अनठे व रोचक वैज्ञानिक प्राविष्कारों में लोग भूलने लगे। सौंसारिक कार्योंमें बाधा उपस्थित होने जीवनका सुमधुर मगीत विलीन हो चुका है। मत्सर, लगी। चालाक और स्वार्थी लोग दूसरोंकी नैतिकतामे प्रतियोगिता तथा प्राण-घातक अार्थिक मुकाबलेकी काली फायदा उठाने लगे और समाजके नेताओंको व्यवहार के छायामें विकासका राजमार्ग भुला दिया है, और उन्हें अपनी लोप होने और अशान्तिका भयानक चित्र दिखाई देने ग्वामखथालीने कायल कर दिया है तथा यह समझने लग लगा। श्रतएव समाजको अनीतिक गहरे कृपमें गिरने से गये हैं कि वे गुमराह है और शान्ति तथा कल्यागाकी चान के लिए, सामाजिक शासनको सुसंगठित करने के लिए उनकी कल्पना एक ऐसा स्वप्न है जो कभी भी मन्यकी नैनिक नियमों को ही धार्मिक रूपमें एरिगत करनेकी श्राव मृष्टिमें परिणत नहीं किया जा सकता।
श्यकता प्रतीत हई। इन्हीं नैतिक नियमोंको संकलित, स्व. गुरुदेव इस श्रापत्तिजनक परिस्थितिसे बचनेके परिवधित और संशोधित करके धर्मका मौलिक रूप दिया लिए एकमात्र उपाय बतलाते रहे। उन्होंने की लिखा गया। पुण्य और पापकी परिभाषा इमीका परिणाम है। है:-"अब समयने पलटा खाया है, अतएव पाशविक तथा जब नैतिक बन्धनोंका भय जाता रहा तो प्राकृतिक तथा जड़ शनि जब असफल रही है तो अन्य शधिकी खोज सामाजिक नियमोंका उल्लंघन धार्मिक दृष्मेि अक्षम्य करार लगाना अवश्यम्भावि हो जाता है। दूसरोंको कष्ट पहुंचानेपे पाया ! नैनिक जिम्मेदारीकी जगह अब धार्मिक जिम्मेदारी अब काम नहीं चलेगा बल्कि अब स्वयं कष्टको सहन करते समाजका अाधार व विश्व-कल्याणका प्राण बन गई। हुए त्याग भावनाको अपनाना होगा। पिछले युगोंमें जिस मानवके कष्टोंका अन्त करनेके लिए नैतिक सिद्धान्त-धार्मिक