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फिरण ४-५]
जैनधर्म में वर्णव्यवस्था कर्मसे है, जन्मसे नहीं
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क्षत्रियसंभवः ? यथा पानेन निःक्षत्रीकृताऽसो तथा वह क्या सविकल्पक प्रत्यक्षसे मालूम पड़ती है अथवा केनचिनिब्राह्मणीकृतापि संभाव्येत । ततः क्रियाविशेष- निर्विकल्पक प्रत्यक्षमे १ निर्विकला प्रत्यक्षमे तो निबंधन एवायं ब्राह्मणादिव्यवहारः । तन्न परपरिकल्पि- मालूम पड़ती नहीं है। क्योंकि निर्विकल्पक प्रत्यक्ष में तायां जाती प्रमाणमस्ति यतोऽस्याः सदावः स्यात। जात्यादि विकल्पका ज्ञान नहीं होता। अगर जात्यादि
दाव वा वेश्यापटकादिप्रविष्टानां ब्राह्मणीनां ब्राह्मण्या- विकल्पका ज्ञान निर्विकल्पमें मानोगे तो वह निविकल्प भायो निन्दा प न स्यात् . जातियतः पवित्रताहेतुः। क प्रत्यक्ष न होकर सविकल्पक प्रत्यक्ष कहलायेगा। मा च तन्मते तदवस्थेव । अन्यथा गोत्वादपि ब्राह्मण्यं मविकल्पक प्रत्यक्षमे भी ब्राह्मणत्व जाति नहीं मालूम निकृष्टं स्यात् । गवादीनां हिचांडालादि हे चिरोषिता- पडनी है। जिस प्रकार मनुष्यों में मनुष्यत्व जाति नामपि इष्टं शिष्टगदानं न तु ब्राह्मण्यादीनाम । अथ मविकल्पक प्रत्यक्षसे नहीं मालूम होती उमी नरह क्रियाभ्रंशात तत्र ब्राह्मण्यादीनां निन्द्यता तहि किया- उनमें (ब्राह्मणों में) ब्राह्मगात्व जाति भी नहीं मालूम निबन्धनैव वर्णव्यवस्था न तु जन्मना सिद्धयेत्। पड़ती है। अगर कहो व्रह्मणत्व जाति अदृश्य हे नो
किं चेदं ब्राह्मण्यं जीवस्य शरीरस्याभयस्य वा वह प्रत्यक्ष कैसे सिद्ध हो सकती है । दमरी बात यह है संस्कारस्य वेदाध्ययनस्य वा ? गत्यन्तरासंभवात । न कि ब्राह्मण शब्द औपाधिक (उपाधियुक्त) शब्द है तावज्जीवस्य, क्षत्रियविडूश द्रादीनामपि ब्राह्मण्य य प्रसं- अतः उसका निमित्त बतलाना चाहिये । सो वह गात, तेषामपि जीवस्य विद्यमानत्वात् । नापि शरीर- निमित्त माता-पिताकी अविप्लुता-शुद्धि हे अथवा स्यास्य पंचभूतात्मकस्यापि घटादिवत् ब्राह्मण्यासंभवात। ब्रह्मासे पैदा होना है ? अगर माता-पिताकी शुद्धि नाप्युभय योभयदोषानुपंगात् । नापि संस्कारस्यास्य शूद्र- ब्राह्मणत्व (ब्राह्मण जाति) की पहचानका निमित्त है बालके कर्तुशक्तितस्तत्रापि तत्प्रसंगात् । नापि वेदा- तो वह वन नहीं सकता है क्योंकि इस अनादिकाल में ध्ययनस्य शूद्रेपि तत्संभवात् । शूद्रोपि कश्चिद्देशान्तरे उम शुद्धिका बना रहना अमम्भव है । कारण स्त्रियोंको गत्वा वेदं पठति पाठयति च, न तावता अस्य ब्राह्मगा- प्रायः कामातुर होनेसे इस जन्म में भी व्यभिचार त्वं भवद्भिरप्युपगम्यते । ततः सदृशक्रियापरिणामादि- करते देखा जाता है। इस लिये योनिशुद्धिकारक निवन्धनैवेयं ब्राह्मणक्षत्रियादिब्यवस्था।"
ब्राह्मणत्व (ब्राह्मगाजाति) का निश्चय कैसे हो सकता अर्थात-जिस तरह नित्य सामान्यका स्वरूप है? शुद्ध माता पिता और व्यभिचारी माता-पितासे नहीं ठहरता है उसी तरह सभी ब्राह्मणों में रहनेवाली पैदा हुई सन्तानोंमें विलक्षणता भी मालूम नहीं होती नित्य ब्राह्मणत्व जाति भी नहीं ठहरती है। शंकाकार दै क्योकि क्रिया दोनों सन्तानों में एकमी (शुद्धाशुद्ध) (मीमांसक) शंका करता है--यह ब्राह्मण है २? इस पायी जाती है। अतः यह शुद्ध ब्राह्मण है और यह अशुद्ध प्रकार प्रत्यक्षसे ही वह सिद्ध है। यह ज्ञान विपर्यय ब्राह्मण है ऐमा निश्चय कदापि नहीं हो सकता । जिस मान नहीं है क्योंकि बाधक प्रमाणका अभाव है। तरह घोड़ी और गधे के संसर्गसे पैदा हुई संतान संशय ज्ञान भी नहीं है क्योंकि उभयाँशोंको परामर्श खच्चर रूपसे देखने में विलक्षण नजर आती है उस नहीं करता है । तथा अनुमानसे भी मालूम पड़ता है तरह ब्राह्मण और शूद्रके संसर्गमे पैदा हुई और कि ब्राह्मणपद ब्राह्मण व्यक्तिसे जुदा ब्राह्मणत्व ब्राह्मण-ब्राह्मणीके संसर्गमे पैदा हुई संतानों में विलक्ष (जाति) के निमित्तसे है क्योंकि वह पद हे पटादि पदके णता नहीं मालूम होती है क्योंकि दोनोंमें एक मरी स्वा समान।
ही आकार, पाचारादि होता है। अतः माता-पिताकी इसका श्रीतार्किकशिरोमणि प्रभाचन्द्राचार्य शुद्धि ब्राह्मणत्व (ब्राह्मण जाति) का निश्वायक निमित्त खंडन करते हैं--जो यह कहा गया है कि प्रत्यक्षसे नहीं हो सकता है। दूसरे, मातापिताकी शुद्धि ब्रह्मब्राह्मणत्व जाति मालूम पड़ती है सो हम पूल ते हैं कि णत्वके पहचानने में निमित्तकारण मानने या कहनेपर