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अनेकान्त
विर्ष ८
खेदजनक है और एक समृद्ध धार्मिक समाजके लिये भारी तो दो भंगियोंकी नियुक्ति अवश्य ही होनी चाहिये । साथ लजाका विषय है ! इसकी भोर तीर्थक्षेत्रके प्रबन्धकोंका ही धर्मशालाके पीछे रहियोंका पानी फैलकर जो सड़ता ध्यान शीघ्र ही आकृष्ट होना चाहिये और उसे दर करनेके और सर्वत्र बदबू फैलाता है उसे एक दम बन्द करदेना लिये निम्न उपाय काममें लाने चाहियें:
चाहिये। उसके लिये श्वेताम्बर धर्मशालाके उस सिस्टमको १. इस तीर्थपर एक अच्छा औषधालय एवं चिकि- अपनाना अच्छा होगा जिससे मल-मूत्रादिक सब पृथ्वीके ल्यालय खुलना चाहिये जो बारहों महीने स्थानीय तथा प्राधेभागमें चला जाता है और ऊपर तथा श्रास पास कोई देहाती सर्वसाधारण जनताकी सेवा करता हा तीर्थयात्राको दुर्गन्ध फैलने नहीं पाती। और टट्टियोंकी नालीके पास मोसम (कातिकसे चैत्र तक) में यात्रियोंकी विशेष रूपये रेतीली जमीन तक गहरे गड्ढे खोदकर उन्हें इंट पन्थरों के सेवा करने में संलग्न रहे और उसमें एक अनुभवी वैद्य तथा दकड़ोंसे भर देना चाहिये । इससे गन्दा पानी गडटेके गस्ते डाक्टर चिकित्सकके रूपमें रहने चाहियें। यदि इनमेसे और जमीनमें जज़ब होजायगा और उपर दुर्गन्ध नहीं फैलाएगा। महीनों में कोई एक ही रहे तो भी यात्राके दिनों में तो दोनों ५. हरमाल, यात्राका सीजन प्रारंभ होनेसे पहले ही की ही नियुक्रि वहाँपर होनी चाहिये । साथ ही चिकित्सालय श्रासपासके सब कश्नोंकी सफाई पूरी तौरसे होनी चाहिये। में एक दो नर्स भी उन दिनों रहनी चाहिये ।
धर्मशाला तथा बंगलोंके पासके कुओंका जल अच्छा नहीं २. यात्राको मौसममें अनेक स्थानोंकी सेवा समितियों पाया गया और इस लिये कुछ दृग्ग्ये पानी मंगाना होता था। से कुछ ऐसे स्वयंसेवकोंके बैच प्रयत्न करके बलाने चाहियं अत: जिन कारा पानी वैसे ही खराब है उन्हें कुछ गहरा " जो यात्रियोंकी सेवामें तत्पर हों और इस पनीत कार्य के लिये करादेना चाहिये अथवा उनमें नल डलवाकर गहराई मेंसे अपने १०.२० दिनके समयका खशीसे उत्सर्ग कर सकें। निर्दोष जलको ऊपर लानेका यन्न करना चाहिये। ऐसे मेवकोंके आने जाने और ठहरने आदिका सब प्रबन्ध ६. देहली वालोंके मन्दिर और श्री सग्बीचन्द के तीर्थक्षेत्र कमेटीको करना चाहिये।
बंगलेके बीच में जो एक पुख्ता अहाता पड़ा हुआ है और ३. यदि एक विद्यालय अथवा गुरुकुल भी यही खोल जिसमें कुत्रा भी बना है उसमें शीघ्र ही धर्मशाला या दिया जाय तो उससे यात्रियोंकी सेवामें विशेष सुविधा हो औषधालय श्रादि की विल्डिग बना देना चाहिये । और सकती है। साथ ही वीर भगवानके जिस पर्वोदय तीर्थकी जब तक ऐसी कोई बिल्डिग न बने तब तक उस अहाने पवित्र धारा यहाँसे प्रवाहित हुई है उसका कुछ रसास्वादन की दोनों तरफी दीवारोंको और ऊँचा उठाकर उसमें ताला भी स्थानीय, प्रासपासकी तथा दूसरी सम्पर्कमें आनेवाली डाले रखना चाहिये, जिसस्पे कोई भी टट्टी श्रादिके द्वारा जनताको सहजमें ही मिल सकता है, जिसके मिलनेकी उस स्थानको गन्दा तथा वातावरणको दृषित न कर सके। जरूरत है और वह उस संस्कृतिका एक प्रतीक हो सकता ७. धर्मशालाके पीछे जो एक बड़ा प्लाट पड़ा हुश्रा है जिसने वहांपर जन्म लिया अथवा प्रचार पाया। है और जिसपर एक तरफ कुछ टट्टियां बनी हैं तथा टहियों
४. मन्दिर, धर्मशाला और बंगलोंके पास पास निरंतर का गन्दा पानी फैलकर वातावरणको दुर्गन्धित एवं दृषित सफाईका पूरा प्रबन्ध होना चाहिये और इसके लिये पूर्ण करता है उसकी शीघ्र ही एक अच्छी प्रहाताबन्दी होजानी वेतनभांगी दो भंगी जरूर रखे जाने चाहिये। मुनीमजीका चाहिये और उस अहातेमें अच्छा नक्शा तय्यार कराकर यह कहना कि नगर भग्में कुल चार वर भंगियों के हैं और ऐसी बिल्दुिगका डौल डालदेना चाहिये जो विद्यालय, गुम्कल उनके पास काम बहुत ज्यादा है अत: पूर्ण समयके लिये श्रौषधालय और म्यूजियम (अजायबघर) जैसी किसी किसी एक की भी योजना नहीं की जा सकती कुछ भीर्थ बड़ी संस्था अथवा संस्थाओंके लिये उपयुक्र हो। रखता हुश्रा मालूम नहीं होता; क्योंकि राजगृहमें यदि अाशा है प्रबन्धक जन इन सब बातोंकी और शीघ्र ही भंगियोंकी कमी है तो पूर्ण वेतन देकर दूसरे भंगियोंको ध्यान देनेकी कृपा करेंगे और तीर्थक्षेत्र कमेटी अपना विशेष बाहरसे बुलाया जा सकता है। कमसे कम तीर्थयात्राके दिनों में कर्तव्य समभेगी।
(शेष फिर)