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ॐ अर्हम्
वस्ततत्त्व-सघातक
श्वतत्त्व-प्रकाशक
वाषिक भूल्य ४)
इम किरण का मूल्य )
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नीतिविरोधध्वंसीलोकव्यवहारवर्तकः सम्यक् । |परमागमस्य पीज भुल्नैकगुर्जयत्यनेकान्तः।
वर्ष ८ । वीरसेवामन्दिर (समन्तभद्राश्रम) सरसावा जि. सहारनपुर किरगा ६-७ ( मार्गशीर्ष-पौष शुक्ल, वीरनिर्वाण मं० २४७३, विक्रम सं० २००३
नवम्बर-दिसम्बर । १६४६
समन्तभद्र-भारतीके कुछ नमूने
युक्त्यनुशासन अभेद-भेदात्मकमर्थत वं तव स्वतन्त्राऽन्यतगतग्व-पुष्पम् ।
अवृत्तिमत्वात्पमवाय-वृत्तेः संसर्गहानेः सकलाऽर्थ-हानिः ॥ ७ ॥ '(हे वीरभगवन ! ) भापका अर्थतत्त्व-आपके हाग मान-प्रतिपादित अथवा श्रापके शासनमें वर्गि त जीवादि-वस्तुतत्व-अभेद-भेदात्मक -परसरतन्त्रता (अपेक्षा, दृष्टिविशेष) को लिये हुए अभेद और भेद दोनों रूप है अर्थात कथञ्चित द्रव्य-पर्यायरूप, कथञ्चित् सामान्म-विशेषरूप, कथञ्चित् एकानेकर प और कथञ्चित निन्याऽनित्यरूप है; न सर्वथा अभेदरूप (द्रव्य, सामान्य, एक अथवा निन्यरूप) है, न सर्वथा भेदरूप (पर्याय, विशेष, अनेक अथवा अनियरूप) है और न सर्वथा उभयरूप (परस्पर निरपेक्ष द्रव्य-पर्यायमात्र, मामान्य-विशेषमात्र, एक अनेकमात्र अथवा निन्य-अनित्यमात्र) है।श्रभेदात्मकतत्त्व-द्रव्यादिक और भेदात्मकत्त्व-पर्यायादिक दोनोंको खतम्च-पारस्परिक तन्त्रता से रहित सर्वथा निरपेक्ष-स्वीकार करनेपर प्रत्येक-द्रव्य, पर्याय तथा उभय; सामान्य, विशेष तथा उभय; एक, अनेक तथा उभय और नित्य, अनित्य तथा उभय-माकाशक पुष्प-समान (श्रवस्तु) हो जाता है-प्रतीयमान (प्रतीतिका विषय) म हो सकनेसे किसीका भी तब अस्तित्व नहीं बनता।'
(इसपर यदि यह कहा जाय कि स्वतंत्र एक द्रव्य प्रत्यक्षादिरूपसे उपलभ्यमान न होनेके कारण क्षणिकपर्याय की तरह प्राकाश-कुसुमके समान अवस्तु है सो तो ठीक, परन्तु उभय तो द्रव्य-गुण-कर्म-सामान्य-विशेष-समवायरूप सत् तत्त्व है और प्रागभाव-प्रध्वंसाऽभाव-अन्योन्याऽभाव-अत्यन्ताऽभावरूप असत तत्व है, वह उनके स्वतंत्र रहते हुए