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साम्प्रदायिक दंगे और अहिंसा (लेखक बा० राजकुमार जैन)
- -- EARNERAज यह किसीसे भी छिपा नहीं कि साधारण सी कहावतसे मी यह स्पष्ट हो जाता है कि
जगह २ पर साम्प्रदायिक दंगे होरहे जो बड़ा है, जो शक्तिशाली है, जिसके भुजदण्डोंमें
हैं। यह दंगे साम्प्रदायिक हैं या बल है, वही क्षमा कर सकता है। एक पतित, दलित PADMPAN राजनैतिक ? इस प्रश्न का सम्बन्ध तथा शक्तिविहीन पुरुप, जिसे कुछ भी चारा नहीं, राजनीतिसे है और इस प्रभपर मुझे कुछ नहीं क्या करेगा ? वह क्षमाके सिवा और कर भी क्या लिखना है। देखना तो इस बातका है कि इन दंगों सकता है ? क्या एक से पुरुपकी क्षमा ही 'उत्तम से अहिंसाका क्या सम्बन्ध है।
क्षमा' हैं ? नहीं-नहीं। यह तो उसकी कायरता है। अहिंसा अभयका ही एक अंग है तथा इन एक ऐसा पुरुप जो उन्नति तथा वीरताकी सीढ़ीपर दोनों में एक विशेष सम्बन्ध है। जब तक हम अभय सबसे ऊंचे हो वह क्षमा करे, वह अहिंसक हो तो नहीं हैं तब तक हमारा असिक होना एक सीमा बात दूसरी; परन्तु एक सा पुरुप जिसने किसी भी तक निरर्थक है और हम भी उसी सीमाके अन्दर दिन उस सीढ़ीपर चढ़ने तकका साहस न किया ही हैं। क्या हमारा अाततायियोंको क्षमा कर देना हो, किस प्रकार क्षमा कर सकता है ? वह तो वाध्य
और उनको इस प्रकार प्रेरणा देना ही अहिंसा है ? है क्षमा करने के लिये। आज ठीक यही अवस्था क्षमा करनेसे पहले यह बात अवश्य ध्यानमें रक्खी जैनसमाजकी है। हमें वैसी अहिंसा नहीं चाहिये । जानी चाहिये कि क्षमा वही कर सकता है जिसमें हमें आजकल क्षमा करनेका अधिकार प्राप्त नहीं है, शत्र से बदला लेनेकी शक्ति हो । वे पुरुप जो उनसे इसके लिये हमें अधिकार प्राप्त करना होगा । मैं डरकर अपने २ घरों में भयभीत हुए बैठे हैं यह कहता है कि अगर हम दंगोंस अभय हो जाएं, तो नहीं कह सकते कि हम तो अहिंसक हैं। उनका इस किसी भी शक्तिका साहस दंगा करने का नहीं हो प्रकार अहिंसाकी आडमें बैठा रहना सर्वदा दोपपूर्ण सकता है। आज जब हम अपना मान खो चुके हैं, है। इस प्रकारसे वह अहिंसाको कायरतामें परिव- बल, वीरता तथा शीर्य खो चुके हैं, अपनी उन्न तक तित कर रहे हैं और जो दोप अन्य समाजोंने जैन सिंहासनसे च्युत हो गये हैं, आज जब हम अभयक
और बौद्ध धर्मकी अहिंसापर लगाया और भारतीय मार्गको भूल गये हैं और कायरताक पथपर अग्रसर परतन्त्रता उसीका फल बतलाया है, उसके योग्य हैं, तब ही नीच, पतित, अत्याचारी पुरुपोंको जिन बन रहे हैं। याद रक्खें इस प्रकार वे केवल अहिंसा का कि इतिहास उनके काले कारनामोंसे भरा पड़ा पर बल्कि अपने जैनधर्मपर भी कलंक लगा रहे हैं। है, दंगा करनेका साहस हुआ है। जैनधर्म अभयका 'क्षमा बड़नको चाहिये छोटनको अपराध' इस सन्देश देता है और अभय हम तब ही हो सकते हैं